1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

अगर मोदी से सहमत हैं तो क्यों जा रही हैं मीडिया में नौकरियां

१४ अप्रैल २०२०

भारतीय प्रधानमंत्री की 'छठी बात' को मीडिया कंपनियों के मालिकों, संपादकों ने रीट्वीट तो किया लेकिन फिर उन्हीं कंपनियों में काम करने वालों को नौकरी से निकाल भी दिया. कोरोना संकट में मीडिया का भला ये कैसा दोहरा आचरण.

https://p.dw.com/p/3asEC
Indien Modi Ansprache wegen Corona-Krise
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Ajit Solanki

भारत की जनता को किए अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाथ जोड़ कर अपील की कि वे अपने व्यवसाय, अपने उद्योग में अपने साथ काम करने वाले लोगों के प्रति संवेदना रखें, किसी को नौकरी से ना निकालें. कोरोना वायरस के संक्रमण के इस दौर में उनकी यह अपील उन करोड़ों लोगों को ढांढस बंधाने वाली लगती है जो नौकरियों पर निर्भर हैं. लेकिन मुनाफे को भगवान मानने वाले कारोबारी सिद्धांत उनकी उम्मीदों को जमीन पर ला पटकते हैं.

अगर मीडिया सेक्टर की बात करें तो इसे लॉकडाउन में अनिवार्य सेवा बताया गया है और इसके कारण आप अपने अपने घरों में सुरक्षित रहते हुए देश दुनिया की खबरें पा रहे हैं. आपको हैरानी होगी कि इस वायरस के संक्रमण से महामारी के फ्रंटलाइन पर रहकर अपना काम करने वाले खुद को बेरोजगारी से नहीं बचा पा रहे हैं. इंडियन एक्सप्रेस और बिजनेस स्टैंडर्ड ने अपने स्टाफ की सैलरी घटा दी. न्यूजनेशन चैनल ने अपनी अंग्रेजी डिजिटल सेवा में काम करने वाले सभी 16 लोगों को नौकरी से निकाल दिया. टाइम्स ऑफ इंडिया जैसे बड़े मीडिया हाउस ने संडे मैगजीन की अपनी पूरी टीम को काम से बाहर कर दिया. मुंबई में पत्रकारों के एक संघ, बृहनमुंबई यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स ने इस समय इतने सारे मीडियाकर्मियों को नौकरी से बाहर निकालने को ना केवल अवैध और अनैतिक बल्कि मानवता के खिलाफ बताया है.

कांग्रेस नेता और 2012 से 2014 के बीच सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय संभालने वाले मनीश तिवारी ने एक चिट्ठी लिख कर केंद्र सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से अनुरोध किया है कि मंत्रालय सभी मीडिया संस्थानों को सलाह जारी करे कि वे "अपने कर्मचारियों की छंटनी ना करें और उन्हें समय पर वेतन दें." न्यूजलॉन्ड्री की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि हाल ही में मीडिया कंपनियों से निकाले गए कर्मचारियों को ना तो इसका नोटिस दिया गया और ना ही नोटिस पीरियड सर्व करने का मौका. कुछ कंपनियां एक महीने की बेसिक सैलरी देकर उनकी छुट्टी कर रही हैं. यह सब इसका कारण कोरोना महामारी के चलते पैदा हुए आर्थिक संकट को ठहरा रहे हैं. डिजिटल मीडिया वेबसाइट चलाने वाली कंपनी द क्विंट ने फिलहाल अपने आधे कर्मचारियों को बिना वेतन के छुट्टी पर भेज दिया है.

अपनी चिट्ठी में केवल मीडियाकर्मियों का ही सवाल उठाने के औचित्य के बारे में पूछे जाने पर तिवारी ने 'द प्रिंट' अखबार को बताया कि "यह किसी संस्था-विशेष, न्यूज चैनल-विशेष के बारे में नहीं है बल्कि यह ध्यान दिलाने के लिए है कि पूरी इंडस्ट्री में इससे जो ट्रेंड फैल रहा है, उसे रोका जा सके.” श्रम एवं रोजगार मामलों का मंत्रालय एक एडवाइजरी नोटिस जारी कर चुका है जसमें नौकरी से ना निकाले जाने और वेतन ना काटने की अपील की गई है. इसमें कहा गया है, "इन परिस्थितियों में कर्मचारियों को नौकरी से निकाला जाना, या पैसे काटना इस संकट को और गहराएगा और ना केवल उनकी आर्थिक बल्कि महामारी से लड़ने की हिम्मत भी तोड़ेगा.”

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शशिकांत दास ने हाल ही में कोरोना वायरस को ऐसा "अदृश्य हत्यारा" बताया था जो भारत की अर्थव्यवस्था को उथल पुथल कर सकता है. लेकिन ऐसा नहीं कि कोरोना महामारी ने केवल भारत में लोगों की नौकरियां छीन ली हैं. चीन से लेकर अमेरिका तक, ऑस्ट्रेलिया से न्यूजीलैंड तक - ये सभी देश कोरोना संकट के चलते अपनी अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ने वाले बुरे असर का लगातार अनुमान लगा रहे हैं. इनमें से ज्यादातर देशों में महामारी फैलने के पहले जहां बेरोजगारी दर 4-5 से लेकर 10 फीसदी तक थी, उसके जून में खत्म होने वाली छमाही में बढ़ कर 24 से 30 फीसदी हो जाने की आशंका है. 2008 के वित्तीय संकट के समय चीन में 2 करोड़ से अधिक लोगों की नौकरी गई थी. इस बार विशेषज्ञ कम से कम 3 करोड़ की नौकरी जाने का अनुमान लगा रहे हैं.

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

एडिटर, डीडब्ल्यू हिन्दी
ऋतिका पाण्डेय एडिटर, डॉयचे वेले हिन्दी. साप्ताहिक टीवी शो 'मंथन' की होस्ट.@RitikaPandey_