क्यों नदारद हैं अफगान शांति प्रक्रिया से महिलाएं
१९ मार्च २०२१मॉस्को में हुई बैठक में अधिवक्ता और राजनेता हबीबा सराबी एकलौती महिला थीं. उनके अलावा अफगान सरकार के नुमाइंदों और दूसरे अफगान नेताओं के प्रतिनिधि मंडल में 11 और सदस्य थे, लेकिन सभी पुरुष थे. तालिबान के 10-सदस्यीय समूह में एक भी महिला नहीं थी.
गुरूवार 18 मार्च को सराबी ने मॉस्को के एक होटल में एक बड़ी सी गोल मेज के इर्द गिर्द बैठे जिन लोगों के सामने युद्धविराम की मांग की वो सभी पुरुष थे. उनके एक सहयोगी ने ट्वीट करके बताया कि उन्होंने वहां पर कहा, "मैं इस कमरे में अकेली महिला क्यों हूं? हम युद्ध का हिस्सा नहीं रही हैं, हम अवश्य ही शांति में योगदान कर सकती हैं. 51 प्रतिशत आबादी को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए."
अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों को हटाने की समय सीमा खत्म होने में सिर्फ छह सप्ताह रह गए हैं. देश के स्वतंत्र मानवाधिकार आयोग की प्रमुख शाहरजाद अकबर का कहना है कि ऐसे समय में हुई इतनी महत्वपूर्ण बैठक में सिर्फ एक महिला का होना बिल्कुल अस्वीकार्य है. ये भविष्य के लिए एक चिंता भरा संकेत भी है. उन्होंने कहा, "समावेश के दृष्टिकोण से आने वाले समय में हालात कैसे होंगे यह उसकी शुरुआत है."
स्थानीय सरदारों की भूमिका
राजदूतों का कहना है जैसे जैसे समय सीमा नजदीक आ रही है, अमेरिका की अफगान रणनीति बदल रही है. उनका कहना है अमेरिका चाहता है कि इस प्रांत की बड़ी शक्तियां अफगानों पर एक ऐसी सरकार बनाने के लिए दबाव डालने जिसमें सत्ता में दोनों पक्षों की साझेदारी हो. महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह रणनीति शांति प्रक्रिया में महिलाओं की भूमिका को और कमजोर कर देगी.
कई मामलों में इस प्रांत की बड़ी ताकतों का अफगानिस्तान में दबदबा सिर्फ यहां के उन स्थानीय सरदारों से करीबी की वजह से है जिनका वर्चस्व संघर्ष के पिछले चार दशकों में बना रहा. वो सब के सब पुरुष हैं. दोहा में शांति वार्ता में जो 42 अफगान वार्ताकार शामिल हैं उनमें से सिर्फ चार महिलाएं हैं. फौजिया कूफी उनमें से एक हैं. वो कहती हैं, "अंतरराष्ट्रीय समुदाय में हमारे कई सहयोगी उन्हीं नेताओं के पास जा रहे हैं जिनका 20 साल पहले अफगानिस्तान पर शासन था.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा है कि वॉशिंगटन की यह कामना थी कि मॉस्को वाले प्रतिनिधि मंडल में एक से ज्यादा महिला होती. उन्होंने कहा कि आगे की बैठकों में अमेरिका महिलाओं की "सार्थक सहभागिता" की वकालत करेगा.
क्या बदल गया है तालिबान
उन्होंने यह भी कहा, "अफगानिस्तान में महिलाओं, लड़कियों और अल्पसंख्यकों के लिए हालात असाधारण रूप से बदले हैं...और इन बदलावों को बचा कर रखना बाइडेन प्रशासन के लिए उच्च प्राथमिकता का विषय है. अफगान राष्ट्रपति के महल के प्रवक्ता ने टिप्पणी के अनुरोध पर तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
1996-2001 तक तालिबान ने अपने शासन के दौरान इस्लामी कानून का एक ऐसा रूप लोगों पर थोपा जो महिलाओं के अधिकारों के प्रति पूरी दुनिया में सबसे कठोर कानूनों में से था. महिलाओं को अपने शरीर और चेहरे को पूरी तरह से बुर्के में ढकना अनिवार्य था. उनके लिए पढ़ना, कमा करना, यहां तक कि बिना किसी मर्द रिश्तेदार को साथ लिए घर से बाहर निकलना तक वर्जित था.
तालिबान का कहना है कि वो बदल गए हैं, लेकिन कई महिलाओं को इस पर संदेह है. अंतरराष्ट्रीय संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच की अंतरिम सह-निदेशक हेदर बार का कहना है, "यह बेहद मूर्खतापूर्ण है कि एक कमरा जो कि ना सिर्फ पुरुषों से भरा हुआ है, बल्कि उसमें ऐसे पुरुष हैं जिनका महिलाओं के प्रति अत्याचार-पूर्ण नजरिया और आचरण है, उस कमरे में आप उम्मीद करें की सभी महिलाओं के अधिकारों का भार सिर्फ एक महिला के कन्धों पर है." हालांकि बार ने विश्वास जताया कि सराबी जो भी कर सकती हैं, वो जरूर करेंगी.
सीके/एए (रॉयटर्स)