अब पूंजीवाद पर छिड़ी दावोस में बहस
२६ जनवरी २०१२स्विट्जरलैंड में दावोस शहर ने दुनिया भर के अखबारों में काफी जगह घेरी है. दुनिया के नेता जहां आर्थिक संकट, सुधारों और वित्तीय अनुशासन की बात कर रहे हैं, वहीं उनके आलोचक दावोस बैठक को जमीनी सच्चाइयों से परे बता रहे हैं. दावोस के पास ही ऑक्यूपाई आंदोलन के नेताओं ने अपने तंबू गाड़े हैं, बैठक में उनका कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं है और ब्राजील के पोर्तो आलेग्रे में चल रहे विश्व सामाजिक फोरम में उन्हीं के कार्यकर्ता और नेता आर्थिक मंदी के इस दौर में नए विकल्पों और लोकतांत्रिक सुधारों की मांग कर रहे हैं.
आर्थिक मंदी के बारे में मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल के सलिल शेट्टी कहते हैं, "यह संकट हमने खुद खड़ा किया है और जिन लोगों की वजह से यह मंदी आई है, जिनमें से कई दावोस में है, उन्हें इसका जवाब देना होगा." यही नहीं, विश्व आर्थिक फोरम के संस्थापक क्लाउस श्वाब ने खुद कहा है कि "पूंजीवाद, जिस तरह से अब देखने को मिल रहा है, वह हमारे आसपास की दुनिया से मेल नहीं खाता."
पूंजीवाद बचाओ
ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन "असली पूंजीवाद" की वकालत कर रहे हैं. उन्होंने चीन और रूस की आर्थिक प्रणालियों पर निशाना साधते हुए कहा है कि जिन देशों में कानून हैं, जहां मुक्त बाजार है और जहां सरकारों को भी अदालत तक घसीटा जा सकता है, उन देशों को अपने मूल्यों के लिए खड़ा होना चाहिए. कैमरन का देश यूरो मुद्रा का इस्तेमाल नहीं करता, लेकिन ब्रिटेन यूरोपीय मुक्त बाजार का हिस्सा है और फिसलते यूरो के नतीजे भुगत रहा है.
उन्होंने कहा कि यूरो क्षेत्र के देशों को वित्तीय अनुशासन सहित अपनी बजट नीतियों को और कड़ा करना होगा ताकि इस मुश्किल वक्त को कुछ आसान किया जा सके. जर्मन चांसलर मैर्केल ने भी कहा है कि जर्मनी पर यूरो संकट की वजह से दबाव बढ़ता जा रहा है. मैर्केल का साथ दे रहे कैमरन का कहना है कि यूरोप और अमेरिका के बीच मुक्त व्यापार पर समझौता होना चाहिए जिससे दोनों क्षेत्रों को फायदा होगा.
एशिया की ओर
लेकिन एक बात तो तय है कि आर्थिक मंदी को रोकने के लिए पुराने साझेदार यूरोप और अमेरिका को ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को मिलकर काम करना होगा. विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक हम एक और आर्थिक मंदी की दौर के कगार पर हैं. एशिया के देशों को भी यूरो मुद्रा की घटती दर के बुरे असर झेलने पड़ रहे हैं.
दावोस में आए भारतीय कंपनी एचसीएल के प्रमुख ने एलान किया है कि उनकी कंपनी आने वाले पांच सालों में यूरोप और अमेरिका में 10,000 नौकरियां पैदा करना चाहती है. कंपनी के सीईओ विनीत नायर ने कहा कि उनकी कंपनी समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझती है. नायर ने कहा, "बदलती दुनिया को देखते हुए कंपनियों से उम्मीद की जा रही है कि वे सामाजिक और निजी जरूरतों के साथ मुनाफा भी कमाएं ताकि लंबे समय तक विकास हासिल हो सके."
नया चीन, नया पूंजीवाद
व्यापार में साझेदारी के सिलसिले में यूरोपीय देशों के नेताओं ने चीन पर भी अपनी नजरें टिका कर रखी हैं. चीन की कंपनियां और वहां की सरकार अपनी धनराशि का इस्तेमाल विदेशी कंपनियों को खरीदने में लगा रही हैं और विदेशी सरकारों के बॉन्ड में भी निवेश कर रही हैं.
हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि चीन कई देशों की आर्थिक कमजोरी का फायदा उठा रहा है और कम दामों में तकनीक और प्राकृतिक संसाधन हासिल करने की ताक में है. चीन के अपने विश्लेषकों का कहना है कि चीन की आलोचना का कोई मतलब नहीं है, चीन वही सीख रहा है जो बाकी विकसित देश कई दशकों से कर रहे हैं.
रिपोर्टः एपी, एएफपी, डीपीए/एमजी
संपादनः एन रंजन