'अमेरिकी अर्थव्यवस्था में संरक्षणवाद से नुकसान'
२१ फ़रवरी २००९भारत अमेरिकी आर्थिक नीतियों में आ रहे संरक्षणवादी रुझान से चिंतित है और इस विषय में अपनी चिंताओं को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर व्यक्त करने की सोच रहा है. शुक्रवार को नई दिल्ली में 42वें भारतीय श्रम सम्मेलन का उदघाटन करते हुए विदेशमंत्री प्रणब मुखर्जी ने इसके संकेत दिए.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अस्वस्थ होने के कारण वह ही इन दिनों वित्त मंत्रालय का कामकाज भी देख रहे हैं.
अंतरराष्ट्रीय मंच पर बहस ज़रूरी
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में हम संरक्षणवाद के संकेत देख रहे हैं और हमें इसके ख़िलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बहस छेड़ने की ज़रूरत है. उन्होंने किसी देश का नाम तो नहीं लिया पर उनका स्पष्ट इशारा अमेरिका की ओर था क्योंकि वहां की सरकार ने जिन कंपनियों को आर्थिक संकट से उबरने के लिए आर्थिक सहायता दी है, उन पर यह शर्त भी लगा दी है कि वे अमेरिकियों की जगह विदेशियों को नौकरी नहीं देंगी. चालू वित्तीय वर्ष में लगभग एक लाख दक्ष भारतीय कर्मचारियों ने अमेरिका में नौकरियों के लिए आवेदन किया है. ज़ाहिर है इस बंदिश से उन्हें नौकरी मिलना बहुत मुश्किल हो जायेगा.
नौकरियां बचाएं
इसलिए भारत में ही रोज़गार के अवसर पैदा करने के लिए मुखर्जी ने अपने भाषण में बुनियादी ढाँचे में अधिक निवेश करने और ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना को शहरों में भी लागू करने पर बल दिया. उन्होंने कहा कि यदि इस क्षेत्र में निर्माण कार्य को काफ़ी हद तक बढाया जा सके, तो न केवल लोगों को रोज़गार मिलेगा बल्कि अर्थव्यवस्था के भीतर मांग भी बढेगी. मुखर्जी ने कहा कि यदि बेहतर सड़कें बनेंगी तो उससे इस्पात और सीमेंट आदि की ज़रूरत पड़ेगी और रोज़गार पैदा होगा. प्रणब मुखर्जी ने यह भी कहा कि लोगों की नौकरियाँ नहीं जानी चाहियें. यदि ज़रूरत पड़े तो उनका वेतन कम किया जा सकता है, लेकिन नौकरियां बचाई जानी चाहियें.
चीन की भी यही चिंता
अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की चीन यात्रा के दौरान बहस का एक बड़ा मुद्दा अमेरिका की संरक्षणवादी नीति भी होगा. चीन और अमेरिका के बीच व्यापार संबंध बहुत व्यापक है. ताज़ी मीडिया रिपोर्टों के अनुसार आर्थिक मंदी और संकट के कारण चीन में दस हज़ार से ज़्यादा लोगों को नौकरी खोनी पड़ी है.