अलग से सो सकता है थोड़ा सा दिमाग
१ मई २०११चूहों पर किए गये एक अध्ययन से इसका पता चला है. इस अध्ययन के अनुसार अगर मस्तिष्क थक जाए, तो इसके कुछ हिस्से एक सेकंड से भी कम समय के लिए नींद में डूब सकते हैं, जबकि बाकी हिस्से पूरी तरह से जगे होते हैं.
इस रिसर्च से जुड़े वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके नतीजे खासकर उस हालत में निर्णायक हो सकते हैं, जब कोई ऐसा काम किया जा रहा है जिसमें लगातार सजग रहना जरूरी है. मिसाल के तौर पर गाड़ी चलाना.
अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन में मनोरोग चिकित्सा के प्रोफेसर चियारा सिरेल्ली का कहना है, "थकावट महसूस करने से पहले भी मस्तिष्क में ऐसे संकेत देखे जा सकते हैं. न्यूरॉन के कुछ ग्रुप नींद में ढल सकते हैं, जिनका घातक असर पड़ सकता है."
ब्रिटिश जर्नल नेचर में प्रकाशित इस अध्ययन में अब तक प्रचलित इस धारणा का खंडन किया गया है कि सोते समय सारा मस्तिष्क प्रभावित होता है. इलेक्ट्रो एन्सेफालोग्राम या ईईजी के आधार पर ऐसे निष्कर्ष निकाले गए थे. लेकिन ईईजी की सीमाएं होती हैं.
इस नई रिसर्च में 11 वयस्क चूहों के मस्तिष्क में बारीक तार डालकर अलग अलग हिस्सों में इलेक्ट्रो एक्टिविटी की जांच की गई और साथ ही ईईजी भी किया गया. नतीजे में देखा गया कि कुछ हिस्सों में न्यूरॉन निष्क्रिय होने के बाद भी ईईजी पर कोई असर नहीं पड़ा. लेकिन चूहों के सामान्य व्यवहार में परिवर्तन देखे जा सके.
इस रिसर्च का दावा है कि चूहों की तरह मनुष्य के व्यवहार पर भी आंशिक नींद का असर पड़ता है.
रिपोर्टः एजेंसियां/उभ
संपादनः वी कुमार