आदर्श भारतीय दुल्हन: गोरे रंग के साथ गोरों की भाषा भी जाने
६ मई २०२०भारत समेत पूरे दक्षिण एशिया में अरेंज्ड मैरेज होना आम बात है. यहां शादी के लायक लड़की का गोरा होना उसे अच्छे रिश्ते दिलाने में मददगार माना जाता है. इस बात का सबूत आपको अपने आस पास से लेकर किसी भी मैट्रिमोनियल में शादी के इश्तेहारों में मिल जाएगा. कई समाजशास्त्री बताते हैं कि इसकी जड़ें कहीं ना कहीं भारत में ब्रिटिश राज के औपनिवेशिक अतीत से जुड़ी हैं. इस मानसिकता में गोरे रंग को बेहतर माना जाता है और बाकी सबके साथ एक तरह की "हीन भावना" जुड़ी होती है.
जैसे कि त्वचा के रंग को लेकर ऐसी अजीब सोच काफी ना हो, इसके ऊपर से अंग्रेजी बोलना भी अच्छा रिश्ता पाने के लिए एक जरूरी गुण बनता जा रहा है. खासकर पंजाब जैसे राज्य में तो इसे लेकर एक तरह का जुनून देखने को मिलता है. नतीजा यह हो रहा है कि राज्य में सैकड़ों ऐसे कोचिंग सेंटर खुल गए हैं जो अंग्रेजी भाषा के अंतरराष्ट्रीय टेस्ट (IELTS) में लड़कियों को अच्छे नंबर दिलाकर शादी के अच्छे मौकों के लिए रास्ता खोलने में मदद कर रहे हैं.
कैसी होती हैं 'IELTS शादियां'?
22 साल की सिमरप्रीत को ही लीजिए. दो साल पहले अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद से ही वह नियमित तौर पर 60 किलोमीटर की दूरी तय कर अमृतसर के IELTS कोचिंग सेंटर आती जाती हैं. अपनी अंग्रेजी सुधार कर वह अंग्रेजी भाषा के टेस्ट में अच्छे से अच्छा स्कोर हासिल करना चाहती हैं. अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्हें 9 में से कम से कम 6 का स्कोर लाना है.
दूसरी ओर करनवीर जैसे कई लोग हैं जो किसी भी तरह भारत छोड़कर किसी पश्चिमी देश में बसना चाहते हैं. पढ़ाई में ज्यादा मन ना लगने के कारण उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई पूरी नहीं की. पंजाब के तरन तारन जिले में उनके माता पिता की कुछ जमीन भी है जिस पर उनकी अपनी खेती है लेकिन करनवीर की खेती करने में दिलचस्पी नहीं है. वह विदेश जाकर कुछ करना चाहते हैं.
जब एक पेशवर मैचमेकर ने सिमरप्रीत और करनवीर का रिश्ता कराने के लिए उनके परिवारोंको संपर्क किया तो वहां भी अंग्रेजी के सर्टिफिकेट की मुख्य भूमिका देखने को मिली. विदेश में स्टूडेंट वीजा पाने के लिए सिमरप्रीत को IELTS का अच्छा स्कोर चाहिए और उसके बाद वह अपने भावी पति को अपने साथ विदेश में ले जा सकेंगी. इसके बदले में करनवीर का परिवार शादी के खर्च के अलावा, सिपरप्रीम की पढ़ाई का और उन्हें देश से बाहर भेजने का खर्च उठाने को तैयार है. यह एक मौखिक समझौता था और दोनों ने शादी तभी की जब करनवीर को भी वीजा मिल गया.
कुछ दूसरे मामलों में देखने को मिलता है कि लड़कियों से शादी के बाद अंग्रेजी का टेस्ट दिलवाया जाता है और अगर वे अच्छा स्कोर लाकर अपने पतियों को अपने साथ विदेश ना ले जा पाएं तो कइयों का इस वजह से तलाक हो जाता है.
कहां जाने का देखते हैं सपना
कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका - ये पंजाब के ज्यादातर लोगों के पसंदीदा ठिकाने रहे है. बीते कुछ सालों से इन देशों के वीजा नियमों में काफी सख्ती आ गई है. जैसे कि कहीं कहीं स्टूडेंट वीजा पर जाने वालों के पति या पत्नी को विदेश में काम करने की अनुमति नहीं होती, खासतौर पर अगर वे कोई फुलटाइम कोर्स ना कर रहे हों तो.
न्यूजीलैंड में ऐसे वीजा केवल उन स्टूडेंट्स को मिलते हैं जो "लेवेल 7 या 8" की डिग्री ले रहे हों. यह उन विषयों की पढ़ाई है जिसमें उस देश में शिक्षित लोगों की कमी है जैसे इंजीनियरिंग, मेडिकल वगैरह. इसके अलावा ऐसा वीजा उनको मिल सकता है जो "लेवेल 9 या 10" की पढ़ाई कर रहे हों जिसमें मास्टर्स, डॉक्टरेट या उससे ऊंची पढ़ाई आती है. पंजाब से जाने वाली ज्यादातर लड़कियां इन शर्तों को पूरा नहीं करतीं और आम तौर पर शॉर्ट टर्म वोकेशनल या लैंग्वेज कोर्स में दाखिला लेना चाहती हैं. अपने काफी उदार वीजा नियमों के कारण ऑस्ट्रेलिया जैसे देश पंजाबी युवाओं का नया पसंदीदा ठिकाना बनते जा रहे हैं.
राज्य के महिला अधिकार संगठनों को इस तरह के चलन के बढ़ने पर काफी चिंता है. डीडब्ल्यू से बातचीत में पंजाब महिला आयोग की अध्यक्षा मनीषा गुलाटी ने बताया, “मैंने ऐसे कई मामले देखे हैं जिनमें IELTS में विदेश जाने लायक स्कोर ना आने पर ससुराल वालों ने लड़की को प्रताड़ित करना शुरु कर दिया.” इनकी चिंता है कि जिन मामलों में महिलाएं शादी को लेकर हुए मोलभाव में अपने वादे को पूरा नहीं कर पातीं वहां उन्हें घरेलू हिंसा का शिकार बनने की संभावना बढ़ जाती है. गुलाटी ने बताया कि कई मामलों में “दहेज की मांग आने लगती है क्योंकि लड़की ने शादी की प्रमुख शर्त पूरी नहीं की.” इनका मानना है कि ऐसे मामलों में सरकारी हस्तक्षेप और जागरुकता फैलाने से ही ऐसे चलन पर काबू पाया जा सकता है.
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