एक फुटबॉलर के लिए प्रेम का इजहार है एमेजॉन प्राइम की फिल्म
१२ जून २०२०बास्टियान श्वाइनश्टाइगर जर्मनी के सफलतम फुटबॉलरों में से एक हैं. वे 2014 में विश्व कप जीतने वाली जर्मन फुटबॉल टीम के अहम स्तंभ थे. 18 साल की उम्र में जब श्वाइनश्टाइगर ने 2002 में बायर्न म्यूनिख की टीम के लिए खेलना शुरू किया था, तो उसे जर्मन फुटबॉल का बच्चा कहा जाता था. पुकारने का नाम श्वाइनी और वैसा ही व्यवहार. तब वे खेल के बदले अपने हेयरस्टाइल के लिए चर्चा में रहते थे. उस समय बायर्न म्यूनिख के भीष्म पितामह माने जाने वाले उली होएनेस ने कहा था कि श्वाइनश्टाइगर को एक्टिंग नहीं करनी चाहिए, अपने पैर जमीन पर रखने चाहिए.
उस समय किसी को पता नहीं था कि बास्टी के निकनेम वाले बास्टियान श्वाइनश्टागर का भविष्य में क्या होगा. लेकिन 2014 में विश्व कप जीतने तक उनका जो रूप निखर कर सामने आया, वह समय के साथ खेल को बेहतर बनाने वाले खिलाड़ी, साथियों को प्रोत्साहित करने वाले, मैदान पर करिश्माई खेल दिखाने वाले और टीम को नेतृत्व देने वाले खिलाड़ी का रूप था. 15 साल के खेल ने श्वाइनी को मैदान के ऊपर और मैदान के बाहर विनम्र बना दिया था. यही हाल कुछ कुछ भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली का भी है.
बायर्न म्यूनिख के लिए पहली बार मैदान पर उतरने के बाद 17 साल बीत चुके हैं. उसके साथ स्कैंडल के दिन भी. 35 साल की उम्र खिलाड़ियों के लिए बहुत ज्यादा नहीं होती. लेकिन इन सालों में उन्होंने वह सब कुछ हासिल किया है जो एक फुटबॉल खिलाड़ी कर सकता है और पा सकता है. कई बार राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीती, चैंपियंस ट्रॉफी जीती, यूरो कप और विश्व कप भी जीता. और क्या बचता है? 2016 में यूरोकप खेलने के बाद उन्होंने अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल से संन्यास ले लिया. कुछ साल पहले उन्होंने पूर्व टेनिस खिलाड़ी अना इवानोविच के साथ शादी की और अब उनके दो बच्चे हैं. चालीस का होने से पहले जिंदगी का पहला हिस्सा पूरा.
अब एमेजॉन प्राइम के लिए जर्मनी के प्रसिद्ध फिल्मकार टिल श्वाइगर ने श्वाइनश्टाइगर के ऊपर एक दस्तावेजी फिल्म बनाई है, मेमरीज. टिल श्वाइगर जर्मनी के अक्षय कुमार हैं. सबसे सफल अभिनेता और प्रोड्यूसर. उन्होंने फिल्में तो अच्छी अच्छी बनाई ही हैं, दुनिया में खूब नाम और पैसा भी कमाया है. लेकिन न तो पत्रकार के रूप में और न ही डॉक्यूमेंट्री फिल्मकार के रूप में वह कभी सामने आए हैं. ऐसे में श्वाइनश्टाइगर पर उनकी फिल्म में न तो पत्रकारिता वाली खोजी निगाहें हैं और ना ही डॉक्यूमेंट्री के लिए जरूरी दूरी. उनकी फिल्म फुटबॉलर श्वाइनश्टाइगर के लिए खेलप्रेमी फिल्मकार का प्रणय निवेदन है, प्यार का इजहार.
देश की सेलेब्रिटी शख्सियतों का एक दूसरे को जानना, एक दूसरे की इज्जत करना नया नहीं है. इस क्रम में दोस्तियां होना भी स्वाभाविक है. ऐसी ही दोस्ती टिल श्वाइगर और बास्टियान श्वाइनश्टाइगर की हो गई. जब 2006 में फुटबॉल विश्वकप जर्मनी में हो रहा था, तो गर्मियों में उत्सव का माहौल था. उसे परीकथाओं वाली गर्मियां कहा जाता था. जर्मन टीम अच्छा कर रही थी, लोग इतने उत्साहित थे कि सारे मैच स्टेडियमों के अलावा सिनेमाघरों में भी दिखाई जा रहे थे और उनकी पब्लिक स्क्रीनिंग भी हो रही थी. जब फाइनल में जर्मनी की टीम हारी तो टिल श्वाइगर भी राष्ट्रीय टीम और देश के बहुत से फुटबॉल फैंस के साथ रोए. और 2014 के विश्व कप फाइनल में अपने दोस्त के प्रदर्शन के बारे में वे कहते हैं कि हाल ही चोट से ठीक हुए श्वाइनश्टाइगर ने अपने शरीर की सीमाओं तक जाकर खेला और अपनी टीम को जीत तक पहुंचाया, "इसे हीरो कहते हैं. हीरो जान की बाजी लगा देते हैं."
2014 की सबसे अच्छी और मार्मिक कहानी उली होएनेस के लिए सुरक्षित है. श्वाइनश्टागर को पैर जमीन पर रखने की सलाह देने वाले बायर्न म्यूनिख के बेताज बादशाह 2014 में कर चोरी के अपराध के लिए जेल में थे. बाकी कैदी फाइनल मैच उनके साथ देखना चाहते थे लेकिन जेल अधिकारियों ने अनुमति नहीं दी और जर्मन फुटबॉल का बड़ा नाम रहे उली होएनेस ने वह मैच जेल के अपने सेल में ही देखा. जीत के बाद श्वाइनश्टागर ने अपने पुराने बॉस को जेल में संदेश भेजा, "आपके बिना हम सब यहां नहीं होते. उली होएनेस, आपके समर्थन के लिए शुक्रिया."
बास्टियान श्वाइनश्टागर का नाम भारत के साथ भी जुड़ा रहा है. बायर्न म्यूनिख भारत में फुटबॉल को लोकप्रिय बनाने के प्रयासों में शामिल रहा है. उन प्रयासों के तहत बायर्न की टीम भारत जाती रही है और उसने वहां मैच भी खेले हैं. 2012 में नई दिल्ली में भारतीय टीम के खिलाफ हुए एक्जीबिशन मैच में जर्मनी 4 गोल से जीता था. एक गोल श्वाइनश्टागर ने भी किया था. बायर्न म्यूनिख भारत में नियमित रूप से यूथ कप का आयोजन करता है जिसमें स्कूली टीमें हिस्सा लेती हैं.
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