एशिया की धुरी में पांव जमाता अमेरिका
१५ नवम्बर २०१२पिछले साल राष्ट्रपति बराक ओबामा ने विदेश, आर्थिक और सुरक्षा नीतियों के लिहाज से इस इलाके को धुरी कहा. तब से अमेरिकी सेना के बेड़े उमड़े चले आ रहे हैं. अमेरिका हालांकि बार बार कह रहा है कि उसका मकसद चीन को चुनौती देना या पुराने सैनिक अड्डों पर स्थायी रूप से जमना नहीं है. बावजूद इसके सुबिक खाड़ी के गहरे पानी में जिस दक्षिण चीन सागर की लहरों पर चीन और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों की संगीनें निकल रही हैं, वहां अमेरिकी सैनिक अड्डे की और कोई वजह नहीं दिखती.
पुराने अमेरिकी सैनिक अड्डों पर बन रहे इकोनॉमिक जोन का काम देखने वाले सुबिक बे मेट्रोपॉलिटन अथॉरिटी के चेयरमैन रॉबर्टो गार्सिया बताते हैं, "हर महीने हमारे पास जहाज चले आ रहे हैं, कुछ हफ्ते पहले पनडुब्बियां आईं. उसके पहले विमानवाहक पोत आए. इस तरह की सुविधा उन्हें एशिया में और कहीं नहीं मिलेगी." आने वाले दिनों में जब राष्ट्रपति बराक ओबामा दक्षिण पूर्वी एशिया का दौरा करेंगे, क्षेत्रीय तनाव और अमेरिकी के इस ओर बढ़ते कदम उनके एजेंडे में सबसे ऊपर होंगे.
मनीला से उत्तर में करीब 80 किलोमीटर दूर तटीय शहर सुबिक में किसी अमेरिकी उपनगर जैसा ही माहौल है. शॉपिंग मॉल, फास्ट फूड की दुकानें और रोशनी से चमकती सड़कें इसे देश के बाकी हिस्से से थोड़ा अलग करती हैं. पिछले तीन अमेरिकी बेड़े जब यहां आए तो उनके साथ 50 लाख डॉलर का कारोबार हुआ.
इस साल अक्टूबर तक अमेरिकी नौसेना के 70 जहाज सुबिक से गुजर चुके हैं, 2010 में यह आंकड़ा 55 और 2010 में 51 जहाजों का था. पेंटागन के मुताबिक क्लार्क के हवाई अड्डे पर हर महीने 100 से ज्यादा अमेरिकी जहाज उतरते हैं. क्लार्क मनीला और सुबिक के बीच अमेरिका का एक और सैनिक अड्डा है. हालांकि इस पर भी अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन का कहना है, "उसका इरादा फिलीपींस में फिर से सैनिक अड्डा कायम करना नहीं है."
फिलीपींस के सबसे बड़े और आखिरी सैनिक अड्डे सुबिक और क्लार्क से अमेरिकी सेनाएं 1992 में चली गईं थी. 2000 में सैनिक अभ्यास, कम्युनिस्ट और मुस्लिम चरमपंथियों से निबटने में मदद के नाम पर अमेरिकी सेना की आमदरफ्त फिर तेज हुई. दक्षिण कोरिया की हानजिन हेवी इंडस्ट्रीज ने यहां पोर्ट के शिपयार्ड को बनाने में दो अरब डॉलर का निवेश किया है. इसी कंपनी ने इस साल पेंटागन के कॉन्ट्रैक्टर हंटिंगटन इंगाल्स के साथ अमेरिकी जंगी जहाजों की मरम्मत और रखरखाव का सेंटर बनाने के लिए बड़ा करार किया है. पेंटागन की प्रवक्ता मेजर कैथरीन विल्किंसन कहती हैं, "इलाके में हमारी सैनिक मौजूदगी एशिया प्रशांत में शांति और समृद्धि बनाए रखने में मदद करती है."
चीन नहीं मानता
दोबारा चुने जाने के महज जो हफ्ते बाद ही बराक ओबामा कम्बोडिया में पूर्वी एशिया सम्मेलन में शामिल हो रहे हैं. साथ ही थाईलैंड और म्यांमार का दौरा भी करेंगे. उधर विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन और रक्षा मंत्री लियोन पैनेटा ऑस्ट्रेलिया, थाईलैंड, सिंगापुर, म्यांमार और कंबोडिया के दौरे पर इस हफ्ते थे, कहीं अकेले तो कहीं साथ साथ. क्लिंटन के साथ मौजूद एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने कहा, "हम चीन के साथ काम करना चाहते हैं. हम मानते हैं कि एशिया प्रशांत हम दोनों के लिए पर्याप्त रूप से बड़ा है."
अमेरिका के इरादों से वाकिफ चीन अपनी सेना खड़ी कर रहा है और इन इलाकों पर अपनी संप्रभुता के दावे मजबूत कर रहा है. चीन का मानना है कि अमेरिका की धुरी जापान, वियतनाम, फिलीफींस, ताईवान और क्षेत्रीय विवाद में शामिल दूसरे देशों को मजबूत करेगा.
अमेरिका पहले से ही ऑस्ट्रेलिया के साथ संयुक्त सैन्य कार्रवाइयां कर रहा है जिनका खर्च अमेरिका उठाता है. इनमें सिग्नल इंटेलिजेंस, सेटेलाइट कम्युनिकेश की सुविधाएं भी शामिल हैं. इसके साथ ही अमेरिकी सेना की नजर वियतनाम की कैम रान्ह के पोर्ट पर भी है. फ्रांस, जापान, अमेरिका और रूस की सेनाओं के लिए पिछली सदी में यह बेहद अहम रहा था. इसी साल जून में पैनेटा के रूप में वियतनाम युद्ध के बाद पहली बार कोई अमेरिकी रक्षा मंत्री कैम रान्ह पहुंचा.
फिलीपींस के लिए अमेरिका की ज्यादा मौजूदगी दक्षिणी चीन सागर में चीन के साथ तनाव की स्थिति में उसकी वायु सेना और नौसेना के लिए रक्षा कवच का काम करेग. इसी दौरान उसे अमेरिकी मदद से अपनी समुद्री ताकत को आधुनिक बनाने और तटवर्ती रडार सिस्टम को मजबूत करने का मौका भी मिल जाएगा. यह वहां की अर्थव्यवस्था के लिए भी यह अच्छा साबित हो रहा है. अभी तीन अमेरिकी बेड़े जब यहां आए तो उनके साथ 50 लाख डॉलर का कारोबार हुआ.
एनआर/एमजी (रॉयटर्स)