ऐतिहासिक लम्हे में झूमता जिम्बाब्वे
२२ नवम्बर २०१७संसद में महाभियोग की सुनवाई शुरू होते ही 93 साल के रॉबर्ट मुगाबे इस्तीफा देने के लिए मजबूर हो गए. कभी "मुझे सिर्फ ईश्वर ही हटा सकता है" कहने वाले मुगाबे को महाभियोग के बाद सजा का डर सताने लगा. 1980 में आजादी के बाद देश पर राज करने वाले मुगाबे ने मंगलवार को तुरंत प्रभाव से इस्तीफा देने का एलान किया. मुगाबे ने कहा कि, "यह स्वेच्छा से लिया गया फैसला है." साथ ही उन्होंने देश में सत्ता के शांतिपूर्ण परिवर्तन का आश्वासन दिया.
मुगाबे का इस्तीफा एक ऐतिहासिक लम्हा था. लोकतांत्रिक व्यवस्था के बीच पनपे एक तानाशाह का अंत था. एक ऐसे दौर में जहां मुअम्मर गद्दाफी जैसे शासकों का बुरा अंत हो, सीरिया के बशर अल असद को विदेशी ताकतों की मदद से जान बचानी पड़े, वहां मुगाबे ने शांति से इस्तीफा देना बेहतर समझा.
37 घंटे में ढही मुगाबे की 37 साल की सत्ता
मुगाबे के इस्तीफा देने के बाद जिम्बाव्बे में जश्न की लहर दौड़ पड़ी. लंबे वक्त तक अश्वेत और श्वेत रंग के बीच बंटा समाज फिर साथ आ गया. राजधानी हरारे की सड़कों पर लोग एक दूसरे के रंग की परवाह किये बगैर झूमने और एक दूसरे को गले लगाने लगे. सन 2000 में मुगाबे ने श्वेत लोगों के फॉर्मों और संपत्तियों को जब्त कराने का आदेश दिया. इस मौके को मुगाबे ने नस्लीय विभाजन के लिए इस्तेमाल किया. लेकिन उनके इस कदम से देश की अर्थव्यवस्था बैठ गयी. उसके बाद हुए चुनावों में मुगाबे ने बड़े पैमाने पर धांधली की और तानाशाही पर उतर आए. मुगाबे के लिए इस व्यवहार ने विभाजित समाज को धीरे धीरे करीब आने का मौका दिया.
अब नए चुनाव तक देश की कमान मुगाबे द्वारा बर्खास्त किये गये पूर्व उपराष्ट्रपति एमर्सन मनांगाग्वा को मिलेगी. क्रोकोडायल के नाम से मशहूर मनांगाग्वा बर्खास्ती के फौरन बाद मोजाम्बिक और फिर वहां से दक्षिण अफ्रीका चले गए थे. असल में बेहद खराब छवि वाली मुगाबे की पत्नी ग्रेस मुगाबे उप राष्ट्रपति बनना चाहती थी. ग्रेस मुगाबे की यह मंशा सेना, जनता और प्रशासन को बिल्कुल रास नहीं आई. उप राष्ट्रपति की बर्खास्तगी के साथ ही जिम्बाब्वे की सेना ने राजनीतिक घटनाक्रम में हस्तक्षेप किया और मुगाबे की ताकत निचोड़ दी.
(इंसानी इतिहास के सबसे क्रूर तानाशाह)
ओएसजे/एनआर (एएफपी, रॉयटर्स)