1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

कश्मीर के जंगलों से बेदखल किए जा रहे हैं गरीब लोग

८ मार्च २०२१

कश्मीर के जंगलों में रहने वाले गरीब लोगों को उनके घरों से निकाला जा रहा है. ये लोग कई पीढ़ियों से इन्हीं जंगलों में रहते और बागवानी करते आए हैं.

https://p.dw.com/p/3qML8
Kaschmir Konflikt l Ghulam Jeelani Khatanas Familie in Dardpora
तस्वीर: Tauseef Mustafa/AFP

गुलाम खटाना के परिवार ने अपनी आधी जिंदगी कश्मीर के जंगलों में छोटी सी झोपड़ी में गुजार दी, अचानक एक दिन करीब 200 लोग बंदूक और सरिया लेकर आए और उन्हें कड़ाके की ठंड में उनके घर से निकाल कर भगा दिया.

घर से बेघर

भारत इस पहाड़ी इलाके पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में है और दूर दराज के जंगलों में रहने वाले कह रहे हैं कि उन्हें उनके पुश्तैनी घरों से बाहर निकाला जा रहा है. जंगल में बसे छोटे छोटे गांवों के हजारों पेड़ों को काट दिया गया है. पुलिस, जंगल के गार्ड और वन अधिकारी उनके लकड़ी के घरों को गिरा रहे हैं.

पहलगाम में 30 साल के खटाना ने कहा, "उन्होंने हमारे जीने का पारंपरिक तरीका खत्म कर दिया. ऐसा लगता है जैसे मुझे किसी ने जिंदा दफन कर दिया हो. वह (जंगल) हमें बीमारियों से बचाता है, पालता है लेकिन उन्होंने हमें बाहर निकाल दिया." लीद्रू गांव में दूसरे पड़ोसियों के साथ उनके परिवार के आठ लोग मवेशियों के साथ गर्मियां बिताते थे और फिर सर्दियों में इन झोपड़ियों में बसेरा डालते. 90 साल की उनकी दादी जन्नत बेगम समेत इन सब लोगों को अपने रिश्तेदारों के एक छोटे से घर में शरण लेनी पड़ी है.

Kaschmir Konflikt l Ghulam Jeelani Khatanas Familie in Dardpora
तस्वीर: Tauseef Mustafa/AFP

जंगल का कानून

पूरे भारत में करीब 10 करोड़ लोग जंगलों में रहते हैं. इन लोगों पर जंगल के कानून लागू होते हैं और उसके मुताबिक अगर तीन पीढ़ियों से वो जंगलों में रह रहे हों तो उन्हें उस जमीन से बेदखल नहीं किया जा सकता. हालांकि बीते नवंबर में अधिकारियों ने इन लोगों को जगह खाली करने के लिए नोटिस भेजना शुरू किया. सरकार का कहना है कि कश्मीर के जंगलों में रहने और खेती करने वाले 60 हजार से ज्यादा लोग अवैध हैं.

भारत सरकार ने कई दशकों से कश्मीर में चले आ रहे अलगाववाद के कारण इलाके में 5 लाख से ज्यादा सैनिकों को तैनात कर रखा है. कश्मीर के चरमपंथी आंदोलन और आतंकवाद की चपेट में आ कर दसियों हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई है. इनमें ज्यादातर आम लोग हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए 2019 में उस कानून को खत्म कर दिया जिसके आधार पर प्रांत को सीमित स्वायत्तता मिली हुई थी. भारत सरकार के इस कदम के बाद बड़ी संख्या में स्थानीय नेताओं और विरोध करने वाले लोगों की गिरफ्तारी हुई और इलाके में महीनों तक फोन और इंटरनेट बंद रहा.

Kaschmir Konflikt l Ghulam Jeelani Khatanas Familie in Dardpora
तस्वीर: Tauseef Mustafa/AFP

आबादी का पैटर्न

इस कानून के हटने के बाद कश्मीर से बाहर के भारतीय लोगों के लिए यहां पहली बार जमीन खरीदना संभव हो गया. इसके साथ ही यह इलाका राष्ट्रीय कानून के दायरे में आ गया जो यह तय करता है कि जंगलों में किसे रहने और जमीन पर हक जताने का अधिकार है. कश्मीर के अधिकारियों ने समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में कहा कि हजारों एकड़ जंगल को एक सूची में शामिल किया गया है. इस जमीन को बाहर के व्यापारियों को कारोबार शुरू करने के लिए दिया जाएगा.     

स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता राजा मुजफ्फर भट्ट का कहना है, "इन लोगों को जंगल से निकालना इन्हें सीधे तौर पर बेदखल करना है." कई लोग आरोप लगाते हैं कि मोदी सरकार देश के अकेले मुस्लिम बहुल राज्य में स्थानीय लोगों की आबादी में हिस्सेदारी घटाना चाहती है.

Kaschmir Konflikt l Ghulam Jeelani Khatanas Familie in Dardpora
तस्वीर: Tauseef Mustafa/AFP

कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को 2019 में कश्मीर का दर्जा बदलने के बाद एक साल से ज्यादा समय तक हिरासत में रखा गया. वो केंद्र सरकार पर इलाके की आबादी के पैटर्न को बदलने की कोशिश का आरोप लगाती हैं. उनका कहना है सरकार यहां औपनिवेशिक जंगल कानून लागू कर रही है.

भारत सरकार पेड़ों को काटने और झोपड़ियों को गिराने पर पूछे सवाल का जवाब नहीं दे रही है. सरकार के प्रवक्ता से बात करने की कोशिशें नाकाम रहीं. हालांकि एक वरिष्ठ वन अधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर समाचार एजेंसी एएफपी से कहा कि अधिकारियों पर "जमीन के मामलों में निर्मम रवैया अख्तियार करने के लिए ऊपर से दबाव बनाया जा रहा है."

दूसरे अधिकारियों ने बताया कि फॉरेस्ट गार्ड का काम जंगल के जमीन की सुरक्षा और पेड़ों की तस्करी रोकना है लेकिन अब उन्हें राष्ट्रीय कानून का पालन कराने और अपने इलाके में समुदायों का संरक्षण करने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है. सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है यह भी लोगों को निकालने के प्रति विरोध बढ़ने के बाद हुआ है.

Kaschmir Konflikt l Ghulam Jeelani Khatanas Familie in Dardpora
तस्वीर: Tauseef Mustafa/AFP

जंगलवासियों की मुश्किल 

स्थानीय लोगों में भारतीय शासन के प्रति गुस्सा पहले से ही है अब उन्हें जंगल से बेदखल किए जाने के बाद यह और बढ़ गया है. सुदूर कानिदाजान इलाके में रहने वाली 45 साल की बिया बानो का कहना है कि फॉरेस्ट गार्डों ने उनके पति और आठ बच्चो को धमकी दी कि अगर उन्होंने झोपड़ियां खाली नहीं कि तो वो उन्हें उनके लकड़ी के घरों में "जिंदा जला देंगे." अधिकारियों ने कानिदजान के पहाड़ों पर चढ़ाई की और 11 हजार फलों के पेड़ गिरा दिए. इन पेड़ों को दर्जनों गरीब परिवारों ने लगाया था और इन्हीं से उनका जीवन चलता था.

कानिदजान जंगल के किनारे पर रहने वाले अब्दुल गनी ने बताया कि उनके बाग के 300 पेड़ काट दिए वो भी बिना किसी चेतावनी की. 70 साल के अब्दुल गनी ने कहा, "वो धोखे से आए नहीं तो हम अपनी जान कुर्बान कर देते लेकिन पेड़ों को नहीं काटने देते." गनी के बेटे शकील अहमद ने कहा, "हम यहां भारत की आजादी के पहले से रहते आए हैं. यहां और कोई संसाधन नहीं है."

एनआर/एमजे(एएफपी)

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore