कश्मीर से बाहर भेजे गए हैं कश्मीर के कैदी
८ अक्टूबर २०१९उजैर मकबूल मलिक और नजीर अहमद रोंगा की पृष्ठभूमि बिल्कुल अलग है लेकिन वे उन सैकड़ों लोगों में शामिल हैं जिन्हें कश्मीर में बिना किसी मुकदमे के गिरफ्तार किया गया है और घर से बहुत दूर किसी जेल में रखा गया है. उजैर मकबूल मलिक 19 साल के छात्र हैं और निर्माण क्षेत्र में मजदूरी करते हैं. उन पर आतंकवादियों की मदद करने का आरोप है. दूसरी तरफ नजीर अहमद रोंगा कश्मीर के सबसे प्रभावशाली वकीलों में एक हैं और उन पर ऐसे "अलगाववादी होने का आरोप है जिसे सुधारा नहीं जा सकता."
5 अगस्त को राज्य का विभाजन करने और विशेषाधिकार खत्म होने के बाद सरकार ने 4000 से ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया है. सरकार के मुताबिक इनमें से ज्यादातर को रिहा किया जा चुका है. कम से कम 300 लोगों को पब्लिक सिक्योरिटी एक्ट यानी पीएसए के तहत गिरफ्तार किया गया है. इस कानून में लोगों को 2 साल तक बिना मुकदमा चलाए गिरफ्तार रखने का प्रावधान है. इनमें से ज्यादातर लोगों को उत्तर प्रदेश की जेलों में रखा गया है. इनमें से बहुत सारे मलिक जैसे युवा हैं. इनके साथ ही रोंगा जैसे कई दर्जनों प्रमुख वकील, शिक्षक और राजनीतिक दलों के नेता हैं. रोंगा कश्मीर बार एसोसिएशन के पूर्व प्रमुख भी हैं.
भारतीय अधिकारियों का कहना है कि हिरासत में लिए लोगों को यहां से बाहर ले जाने की नीति जो पिछले साल लागू की गई वह 5 अगस्त के बाद तेजी से बढ़ गई है. यह उग्रवादियों को उनके नेटवर्क से दूर करने के लिए इस्तेमाल की जा रही है. कैदियों को राज्य से बाहर ले जाने का काम बिना चेतावनी दिए हो रहा है. परिवार वालों का कहना है कि एक बार यह पता लग जाने के बाद कि वे कहां हैं, उन्हें उनसे संपर्क का बहुत कम मौका मिल रहा है. इन कैदियों के लिए अकसर यह साबित करना भी मुश्किल है कि वे निर्दोष हैं, खासतौर से राज्य में संचार बंद होने की वजह से.
जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल का कहना है कि कश्मीर के प्रमुख शहर श्रीनगर में दो जज पीएसए के तहत पकड़े गए लोगों की 300 अपीलों पर सुनवाई कर रहे हैं.
आतंकवादियों की मदद के आरोपी
19 साल के मलिक शोपियां में पले बढ़े हैं. यहां की आबादी करीब 16,000 है. बचपन में ही उनके दो दोस्त एक आतंकवादी समूह से जुड़े गए जो कश्मीर में भारतीय शासन के खिलाफ लड़ रहे थे. बचपन की वही दोस्ती उनके खिलाफ मुकदमे का आधार बनी है. ऐसा कोर्ट के दस्तावेजों से पता चलता है. दस्तावेजों के मुताबिक मलिक आतंकवादियों की मदद करने के आरोपी हैं. यह भी कहा गया है कि वह फरवरी 2018 से जुलाई 2019 के बीच सुरक्षा बलों के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुए. एक दस्तावेज में लिखा है, "आप खुद पत्थर फेंकने में शामील नहीं हुए लेकिन दूसरों को इसके लिए भड़काया."
मलिक का परिवार इन आरोपों से इनकार करता है और उसका कहना है कि जब से उसके दोस्त घर छोड़ कर गए, वह उनसे नहीं मिला है. उसका यह भी कहना है कि 2016 में वह एक विरोध प्रदर्शन में शामिल हुआ और पैलेट गन से जख्मी हो गया. इसके बाद उसकी आंख की रोशनी कम हो गई. मलिक को स्कूल छोड़ना पड़ा और परिवार वालों ने जमीन बेच कर उसका इलाज कराया. मलिक की मां हसीना मलिक कहती हैं, "उसने उसके बाद से कुछ नहीं किया, उसने कोई गलती नहीं की."
जम्मू कश्मीर के पुलिस प्रमुख दिलबाग सिंह का कहना है कि पीएसए के तहत जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया है, वे तोड़ फोड़ और आतंकवादी गतिविधियों में शामिल थे और सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ रहे थे. उन्होंने यह भी कहा, "पीएसए एक्ट के तहत हिरासत में लेने के लिए सभी प्रक्रियाओं और कानूनों का पालन किया गया है."
दिलबाग सिंह का कहना है कि कई लोगों को कश्मीर की जेलों में जगह नहीं होने की वजह से राज्य के बाहर ले जाया गया है. उनका यह भी कहना है कि अधिकारी मलिक और रोंगा के बारे में जानकारी जुटा रहे हैं लेकिन फिलहाल उनके पास इस मामले में कोई अतिरिक्त जानकारी नहीं है.
दूर दराज की जेल
मलिक की गिरफ्तारी के दो हफ्ते बाद परिवार उससे एक दिन दो बार मिला. अधिकारी बार बार कहते रहे कि उसे तुरंत रिहा किया जाएगा लेकिन अचानक उसे 50 किलोमीटर दूर कश्मीर सेंट्रल जेल भेज दिया गया. जब उसका परिवार उससे मिलने वहां गया तो बताया गया कि उसे दूसरे 84 कश्मीरी कैदियों के साथ उत्तर प्रदेश के आगरा की एक जेल में भेज दिया गया है. आगरा की छह जेलों में कश्मीरी कैदियों को रखा गया है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने मलिक समेत कई परिवारों के साथ पिछले महीने आगरा जा कर मुलाक कात की. दर्जनों परिवारों और कैदियों को दोस्तों ने बताया कि उन्हें बिना बताए इन लोगों को राज्य से बाहर भेजा गया. राज्य में लगभग कर्फ्यू की स्थिति होने और यात्रा का खर्च ज्यादा होने के साथ ही मुलाकात के सीमित घंटों की वजह से उनका कैदियों के साथ संपर्क नाम मात्र का ही है.
17 सितंबर को मलिक के पिता मोहम्मद और उसके भाई दानिश कई घंटों तक इंतजार करने के बाद आखिरकार उससे मिले. दानिश ने बताया, "वह डरा नहीं है. उसने हमसे कहा कि परिवार का ख्याल रखना." दानिश ने यह भी कहा कि उसके साथ अच्छा व्यवहार किया जा रहा है.
कानूनी पेंच
67 साल के रोंगा जैसे प्रभावशाली कश्मीरी लोग भी सरकार की कार्रवाई की चपेट में आए हैं. रोंगा को श्रीनगर से 9 अगस्त को हिरासत में लिया गया. कोर्ट के दस्तावेजों के मुताबिक रोंगा को "हिंसा, हड़ताल, आर्थिक परेशानी और सामाजिक अव्यवस्था" रोकने के लिए हिरासत में लिया गया.
रोंगा को कुछ देर के लिए एक स्थानीय पुलिस स्टेशन में रखा गया और फिर कश्मीर के सेंट्रल जेल लाया गया. उनके वकील बेटे उमैर रोंगा को उनकी तलाश करने में एक हफ्ता लग गया. कोर्ट के दस्तावेजों के मुताबिक रोंगा को "ऐसा अलगाववादी बताया गया है जिसे सुधारा नहीं जा सकता."
उनके बेटे इन आरोपों से इनकार करते हैं. उन्होंने बताया कि उनके पिता ने प्रमुख अलगाववादी मीरवाइज उमर फारुक का केस लड़ा है लेकिन उनके राजनीतिक संगठन हुर्रियत कांफ्रेंस के साथ उनका कोई संबंध नहीं है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट में इलाके की स्थिति के बारे में चल रहे मुकदमों में वे शामिल हैं. उमैर रोंगा ने कहा, "हम लोग भारतीय सुप्रीम कोर्ट में मुखर हैं. सड़कों पर नहीं और यह कोई जुर्म नहीं है."
3 सितंबर को जब उमैर कश्मीर सेंट्रल जेल गए तो पता चला कि उनके पिता को आगरा भेज दिया गया है. उमैर ने कहा, "उन्होंने हमेशा कानून के शासन और न्यायपालिका की प्रमुखता की वकालत की. अब उसी तंत्र को उनके खिलाफ इस्तेमाल किया जा रहा है."
ट्रैवल एडवायजरी
इसी बीच ताजा घटनाक्रम में भारत सरकार ने कहा है कि वह कश्मीर के लिए ट्रैवल एडवायजरी जारी करेगी. अगस्त की शुरुआत में सिक्योरिटी अलर्ट जारी होने के बाद हजारों सैलानी, तीर्थयात्री और मजदूर राज्य से बाहर निकल गए थे. राज्य में अभूतपूर्व सुरक्षा के इंतजाम किए गए और साथ ही संचार और लोगों पर कई तरह की दूसरी पाबंदियां लगा दी गईं. सरकार का कहना है कि बहुत सी पाबंदियां हटा दी गई हैं. मीडिया ने खबर दी है कि नेशनल कांफ्रेंस के नेताओं को दो वरिष्ठ नेताओं से मिलने की इजाजत दी गई. ये दोनों नेता फिलहाल हिरासत में हैं.
मोबाइल और इंटरनेट सेवा अभी भी कश्मीर घाटी में लगभग बंद है. जम्मू कश्मीर सरकार का कहना है कि 2 अगस्त को जारी ट्रैवल एडवायजरी गुरुवार से हटा ली जाएगी.
एनआर/आईबी (रॉयटर्स)
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