काम के लिए उत्साहित बूढ़े जर्मन
२६ नवम्बर २०१२नौकरी में रहने का मतलब है बॉस से लड़ाई, डेडलाइन का झगड़ा और ऊर्जा खाने वाली मीटिंगों में हिस्सा लेना. ऐसा क्या है जो बूढ़े लोगों को आकर्षित कर रहा है कि वह ये रोजमर्रा की आपाधापी और लंबे समय तक करते रहें. 2011 की तुलना में आज जर्मनी में 60 से 64 साल के बीच काम करने वालों की संख्या करीब दोगुनी है. यह रिपोर्ट आर्थिक विकास और सहयोग संगठन ओईसीडी ने दी है.
इस उम्र में काम करने वाले लोगों की संख्या 2001 के 21.4 फीसदी से बढ़ कर अब 44.2 प्रतिशत हो गई है. इसका मतलब है कि जर्मनी में 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के लिए रोजगार दर औसत ओईसीडी और ईयू स्तर से ज्यादा है. क्या इसके लिए नीति बनाने वालों की पीठ ठोंकनी चाहिए.
ओईसीडी का कहना है, हां. संगठन जर्मनी में सेवानिवृत्ति की बढ़ती उम्र की ओर इशारा करते हैं. जिसमें जल्दी रिटायरमेंट लेने की संख्या लगातार कम हो रही है. हालांकि कानूनी बदलावों के अलावा भी ऐसे कई कारण हैं जो इस स्थिति का कारण हैं. इसमें काम के प्रति नए नजरिए का होना भी शामिल है.
संतुलन
बर्नहार्ड स्विताइस्की और क्लाउस फॉन होल्ट, दोनों ही 60 से ज्यादा के हैं और दोनों काम करते हैं. स्विताइस्की जॉब प्लेसमेंट से जुड़े हुए हैं जबकि होल्ट को अभी अभी काम मिला है. दोनों के मुताबिक बूढ़े हो चुके कर्मचारियों को पेंशन के बाद पैसों की कमी की काफी चिंता होती है. इसलिए लोग नौकरी जब तक हो सके तब तक करते हैं. इतना जो अनुभव इकट्ठा किया है उसे आगे इस्तेमाल नहीं कर पाने पर दुख होता.
होल्ट 61 साल के हैं और उनका बायोडेटा काफी बड़ा है. उन्होंने बॉन यूनिवर्सिटी से भौतिक विज्ञान की पढ़ाई की और पीएचडी के लिए फोरेंसिक साइंस को चुना. इसके बाद उन्होंने टॉक्सिकोलॉडी में विशेषज्ञता हासिल की. कई साल काम करने और स्वतंत्र रूप से काम करने के बाद उन्होंने बॉन के रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर न्यूरोडिजनरेटिव डिसीज में काम शुरू किया है. वह छोटी सी शोध टीम का हिस्सा हैं. वह बूढ़े लोगों में दवा के बुरे प्रभावों के बारे में शोध करते हैं.
स्विताइस्की होल्ट से दो साल सीनियर हैं. वह बॉन में क्षेत्रीय एम्प्लॉयमेंट एजेंसी के साथ काम करते हैं. हर हफ्ते 19 घंटे वह काम करते हैं क्योंकि उनकी पत्नी नर्स हैं. अगले साल जून में वह रिटायर होंगे. "मैं किसी अनिश्चय की स्थिति से नहीं घबराता. मैं मानद की तरह काम करता हूं और सोशल नेटवर्किंग में जुड़ा हूं. लेकिन मैं रिटायरमेंट के दिन नहीं गिन रहा. मुझे अपना काम पसंद है."
1960 से आज की तारीख के बीच जर्मनी में औसत उम्र 10 साल से बढ़ी है. इसलिए ऐसे लोगों की संख्या भी ऊपर गई है जो रिटायर हो चुके हैं. स्विताइस्की कहते हैं, "बूढ़े लोगों के लिए जरुरी है कि वह ज्यादा काम करें. नहीं तो पेंशन कम होंगी और बुढ़ापे में गरीबी की समस्या बढ़ जाएगी."
जर्मनी में बुढ़ापे के दौरान आराम और विलासिता से रहने की मानसिकता काफी दिन रही. इसलिए रिटायर लोग की क्षमता अक्सर इस्तेमाल नहीं हो पाती. नीति बनाने वालों ने रिटायरमेंट की उम्र में आने वाले लोगों के लिए वीआरएस का प्रस्ताव रखते हैं. इसके पीछे दलील दी जाती कि ऐसा करने पर युवा लोगों के लिए रोजगार के मौके बढ़ेंगे. लेकिन 2005 से जर्मनी में काफी अहम सुधार किए गए और ओईसीडी की सलाह को मानते हुए उम्रदराज लोगों को नौकरी देने की शुरुआत की.
हालांकि लोगों का नजरिया भी नौकरी के प्रति बदला. स्विताइस्की कहते हैं, "एक समय में 55 साल के व्यक्ति के लिए काम करना सामान्य नहीं था. कुछ ही लोग ऐसा करते थे. लेकिन अब बहुत लोग 65 साल की उम्र में भी काम करते हैं."
इसमें आर्थिक चिंता तो एक मुद्दा है ही. कई लोग सामाजिक जीवन से जुड़े रहना चाहते हैं, यह भी सच है.
फॉन होल्ट याद करते हैं कि उन्हें इंटरव्यू के लिए बुलाए जाने में सिर्फ दो या तीन हफ्ते लगे. छह महीने बाद उन्हें नई नौकरी मिली. लेकिन सामान्य तौर पर बूढ़े लोगों के लिए काम ढूंढना इतना आसान नहीं. "मैं एक ऐसे शोध संस्थान में काम कर रहा था जो साल भर पहले बंद हो गया. मेरे कुछ साथी जो 40 से 55 के बीच थे उन्हें नई नौकरी ढूंढने में काफी मुश्किल हुई." वह मानते हैं कि अगर कोई ज्यादा उम्र का व्यक्ति नौकरी में आता है तो उसे अक्सर प्रबंधक के लिए खतरा समझा जाता है. "इसलिए कई लोगों ने उनके अनुभव से काफी कम स्तर पर नौकरी करना स्वीकार किया."
स्विताइस्की भी कुछ ऐसा ही मानते हैं, "बूढ़े लोगों में बेरोजगार होने की आशंका युवाओं जितनी नहीं है लेकिन अगर उनकी नौकरी छूट जाती है और वह 60 के ऊपर हैं तो उन्हें नुकसान ही होगा." उनका कहना है कि जर्मन मार्केट अभी तक समझ नहीं पाया है कि बूढ़े लोगों का अनुभव कितना अहम हो सकता है.
फॉन होल्ट काम करना चाहते हैं और उनकी उम्र और प्रोफाइल अच्छे हैं. वह अधिकारिक उम्र तक काम करते रहना चाहते हैं और उसके बाद भी पार्ट टाइम सलाहकार के तौर पर काम करने की उम्मीद रखते हैं.
रिपोर्टः रायना ब्रॉयर/एएम
संपादनः ओंकार सिंह जनौटी