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काल कोठरी बनीं टेक्सटाइल फैक्ट्रियां

१० मई २०१८

तीन महीने के भीतर 20वीं मौत. दक्षिण भारत का टेक्सटाइल उद्योग महिला कामगारों के लिए मौत का कुआं सा बन गया है. आए दिन होती मौतें अब वहां आम बात है.

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Indien Kinderarbeit Textilindustrie
तस्वीर: picture-alliance/Godong

तमिलनाडु भारत के टेक्सटाइल उद्योग का गढ़ है. राज्य में 1000 से ज्यादा मिलें हैं. निर्यात के आंकड़े देखने पर लगता है कि उद्योग बढ़िया चल रहा है. लेकिन गहराई से झांके तो कामगारों की सिसकियां सुनाई पड़ती हैं. फरवरी, मार्च और अप्रैल 2018 में ही में वहां अब तक 20 टेक्सटाइल कामगारों की मौत हो चुकी है. ज्यादातर कर्मचारी या तो फैक्ट्रियों के भीतर मारे गए या फिर हॉस्टल में. पुलिस ने ज्यादातर मामलों को खुदकुशी करार दिया.

स्थानीय अधिकारियों के मुताबिक गारमेंट उद्योग के कर्मचारियों को काम के दबाव से लेकर यौन उत्पीड़न तक का सामना करना पड़ता है. सामाजिक जागरुकता का अभियान चलाने वाले एक संगठन के अलोयसियस अरोकियाम के मुताबिक, "फैक्ट्रियों के भीतर बहुत ही ज्यादा तनाव और मानसिक चोटें मिलती हैं. काम के दबाव और भावनात्मक मुद्दों को दरकिनार कर कामगारों को सिर्फ मशीन की तरह समझा जाता है. उन्हें कोई सलाह मशविरे संबंधी मदद नहीं मिलती और जब किसी की मौत होती है तो किसी को जिम्मेदार नहीं माना जाता."

अप्रैल 2018 में 17 साल की नाबालिग महिला कामगार की मौत हुई. उसका शव हॉस्टल में मिला. तमिलनाडु टेक्सटाइल एंड कॉमन लेबर यूनियन के अध्यक्ष थिवयराखिनी सेसूरज के मुताबिक, "परिवार को आशंका है कि मिल के भीतर उसका यौन उत्पीड़न किया गया, जिसके चलते उसने आत्महत्या की. इस बात की गंभीरता से कभी जांच ही नहीं हुई कि युवा क्यों मारे जा रहे हैं. हम वरिष्ठ अधिकारियों की अगुवाई में ठोस जांच की मांग कर रहे हैं."

कर्मचारियों के हितों की बात करने वाले संगठनों के मुताबिक तिरुपुर और इरोड जिले में भी कर्मचारियों की मौत के 10 नए मामले सामने आए हैं. इन जिलों को भारत की टेक्सटाइल वैली कहा जाता है. गारमेंट उद्योग से जुड़ी ज्यादातर फैक्ट्रियां यहीं हैं. इरोड में चैरिटी का काम करने वाली संस्था रीड के डायरेक्टर करुप्पु सामी प्रशासन पर भी गंभीर आरोप लगा रहे हैं, "जिन हॉस्टलों में ये लड़कियां रहती हैं वे ठीक से रजिस्टर्ड ही नहीं हैं. कर्मचारियों की संख्या की भी एकाउंटिंग नहीं की गई. 2015 से 2017 के बीच हमने कर्मचारियों की मौत के 55 मामले दर्ज किए, सभी मिल के हॉस्टल में आत्महत्या के मामले थे. यह कोई आम बात नहीं है."

मिल मालिक इन आरोपों का खंडन करते है. 650 से ज्यादा फैक्ट्रियां तमिलनाडु मिल एसोसिएशन की सदस्य हैं. एसोसिएशन के मुताबिक वह कर्मचारियों को परामर्श सेवाएं मुहैया करा रही है. एसोसिएशन के अधिकारी के वेंकटचलम कहते हैं, "मौत के सारे मामले काम से जुड़े नहीं हैं. कई मामलों में पारिवारिक समस्या से चलते वो ऐसा करते हैं. हम नियोक्ता के तौर पर अपनी भूमिका से दूर नहीं भाग रहे हैं, हाल ही में हमने लड़कियों से सीधे बात करने के लिए सीनियर डॉक्टरों को भी बुलाया."

भारत का टेक्सटाइल उद्योग हर साल करीब 42 अरब डॉलर का निर्यात करता है. इसकी धुरी तमिलनाडु है, जहां फैक्ट्रियों में बड़ी संख्या में महिलाएं काम करती हैं. निर्धन परिवारों से आने वाली ये महिलाएं फै्क्ट्री मालिकों द्वारा बनाए गए या किराये पर लिए गए हॉस्टलों में रहती हैं. घर से दूर आईं इन महिलाओं को फैक्ट्रियों में बहुत ज्यादा देर तक काम करने के लिए मजबूर किया जाता है. इस दौरान यौन उत्पीड़न और गाली गलौज भी आम है. दिन भर के काम काज के बाद थकी हारी महिलाएं जब हॉस्टल लौटती हैं तो अकेलापन उन्हें घेर लेता है.

तमिलनाडु की महिला टेक्सटाइल कर्मचारियों की कहानियां अब अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी जगह पा रही हैं. अगर हालत ऐसे ही बने रहे तो टेक्सटाइल उद्योग की छवि को गहरा धक्का लगना तय है. इस आशंका को टालने के लिए डिंडीगुल जिले में स्थानीय प्रशासन अब पहली बार वर्कशॉप आयोजित करने जा रहा है. वर्कशॉप का मकसद 200 बुनाई मिलों में काम काज की परिस्थितियों को बेहतर बनाना है. डिंडीगुल के अधिकारी टीजी विनय कहते हैं, "आइडिया यह है कि महिलाओं को उत्पीड़न की शिकायत करने के लिए प्रेरित किया जाए, काम के दबाव से निपटने में उनकी मदद की जाए. साथ ही उन्हें पढ़ाई जारी रखने का मौका भी देने की कोशिश है.

ओएसजे/एमजे (थॉमस रॉयटर्स फाउंडेशन)