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कैसे और क्यों गोपनीय बनता है भारतीय बजट

२७ फ़रवरी २०११

सोमवार को भारत का आम बजट आ रहा है. इसकी एक एक बात एक एक भारतीय की जिंदगी को सीधे सीधे प्रभावित करेगी. इसके बावजूद अब तक कोई नहीं जानता कि बजट में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी क्या कहेंगे. क्यों इतना गोपनीय होता है बजट?

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तस्वीर: UNI

भारत में अगर सबसे गोपनीय कोई सार्वजनिक चीज है तो बजट है. बजट भाषण में कही गई बातें या बजट में पेश किए जा रहे प्रस्तावों को बेहद गोपनीय माना जाता है और उन्हें ठीक उसी तरह ढका छिपाकर, संभालकर रखा जाता है जैसे हर आदमी अपने घर में सोने को रखता है. दिल्ली का नॉर्थ ब्लॉक यानी वित्त मंत्री का दफ्तर सरकार के लिए तिजोरी की तरह है और बजट आने से कुछ दिन पहले से तो इस तिजोरी की सुरक्षा इतनी कड़ी कर दी जाती है कि परिंदा भी वहां पर नहीं मार सकता.

कितनी सुरक्षा

बजट की सुरक्षा के लिए सरकार कितनी सचेत है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2006 से भारत की जासूसी एजेंसी आईबी के एजेंट की इसकी निगरानी करते हैं. वे लोग दफ्तर के, बजट के लिए काम कर रहे लोगों के घरों और मोबाइल फोनों को टैप करते हैं. बजट तैयार करने में लगभग एक दर्जन लोग काम करते हैं और वे लोग कहां जा रहे हैं, किससे मिल रहे हैं, क्या कर रहे हैं, हर बात पर आईबी की नजर रहती है.

भारत के वित्त सचिव तक की निगरानी की जाती है जो इस वक्त अशोक चावला हैं. बजट से पहले वित्त सचिव को जेड सिक्योरिटी उपलब्ध कराई जाती है और आईबी नजर रखती है कि उनके आसपास क्या हो रहा है.

Pranab Mukherjee Finanzminister Indien
तस्वीर: AP

छपाई से पहले और उसके बाद

इलेक्ट्रॉनिक युग में मुश्किलें बढ़ गई हैं क्योंकि अब हर काम कंप्यूटरों के जरिए होता है. इसलिए कई बार तो बजट से पहले वित्त मंत्रालय से ईमेल भेजने तक की सुविधा भी छीन ली जाती है. बजट तैयार हो जाने के बाद उसे छपाई के लिए जाना होता है. यह बात सार्वजनिक नहीं की जाती कि बजट भाषण की छपाई कब होती है. माना जाता है कि बजट पेश होने से एक या दो दिन पहले ही इस छपाई के लिए प्रेस में भेजा जाता है. लेकिन यह कोई सामान्य सरकारी प्रेस नहीं है.

केंद्रीय बजट की छपाई एक विशेष प्रेस में होती है जो नॉर्थ ब्लॉक यानी सबसे सुरक्षित जगह पर मौजूद है. बेसमेंट में बनाई गई यह विशेष प्रेस आधुनिक है. जहां सारी सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं.

बजट के छपाई के लिए जाने से लेकर बजट भाषण के पढ़े जाने तक इसे तैयार करने वाले अधिकारी लगभग कैद में रहते हैं. उनके लिए बाहर से ही खाना जाता है और शायद तब तक वे किसी से बात भी नहीं करते.

कई मंत्रालयों का काम

लेकिन बजट तैयार करना सिर्फ वित्त मंत्रालय का काम नहीं है. इसके लिए कम से कम पांच और मंत्रालयों के अधिकारी और अलग अलग क्षेत्र के विशेषज्ञ वित्त मंत्रालय के अधिकारियों की मदद करते हैं. मसलन कानून के जानकार पूरे बजट को पढ़ते हैं और बताते हैं कि कहीं एक भी शब्द संविधान के बाहर तो नहीं है. यह काम कानून मंत्रालय का होता है. इसीलिए वित्त मंत्री जब बजट भाषण पढ़ने संसद में जाते हैं तो अपना मरून रंग का ब्रीफकेस फोटोग्राफरों को दिखाते हैं. उस ब्रीफकेस की अहमियत यही है कि उसके अंदर देश का सबसे गोपनीय दस्तावेज बंद होता है.

इतनी गोपनीयता क्यों

Indien Börse Panik in Asien Makler in Bombay
आम आदमी को क्या मिलेगा?तस्वीर: AP

भारत में कई सालों से यह बहस चल रही है कि बजट के लिए जिस तरह की गोपनीयता बरती जाती है वह फिजूल है और उससे बाजार में सिर्फ डर पैदा होता है. जब प्रशासन में पारदर्शिता की बात की जा रही है तो इस तरह की गोपनीयता बरतना अंतर्विरोध है. ऐसा इसलिए भी है कि कई देशों में बजट ऐसा गोपनीय मुद्दा नहीं है जैसा भारत में है. मसलन अमेरिका में तो राष्ट्रपति लोगों का समर्थन जुटाने के लिए अक्सर सार्वजनिक रूप से बताते हैं कि वह बजट में क्या करना चाहते हैं.

बजट की गोपनीयता के समर्थक कहते हैं कि बजट के बारे में पहले जान जाने से जमाखोरों और कर चोरों को मदद मिलती है. लेकिन जाने माने अर्थाशास्त्री स्वामीनाथन अंकलेश्वर अय्यर सालों पहले से इसका विरोध कर रहे हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया के एक लेख में उन्होंने लिखा था कि यह भारत को ब्रिटिश साम्राज्यवाद की देन है जिसे फौरन खत्म कर दिया जाना चाहिए. डॉ. अय्यर ने लिखा, “साम्राज्यवाद की इस बेवकूफाना विरासत को खत्म कर दिया जाना चाहिए. सरकार को चाहिए कि बजट की बातें और कर प्रस्ताव जनवरी की शुरुआत में ही पेश कर दे. विपक्षी दलों को अगले महीने अपने प्रस्ताव पेश करने चाहिए. तब दोनों पर बहस और फिर फैसला हो कि भारत का अगले साल का बजट क्या होगा.”

विभिन्न देशों में सालाना बजट को बड़े खुलासे करने वाले अहम मौके के तौर पर नहीं देखा जाता. इसे सरकारें सालभर का लेखा जोखा पेश करने और यह बताने के लिए इस्तेमाल करती हैं कि अगले साल कहां कहां वह किस तरह खर्च करना चाहती है. लेकिन कब क्या और कहां खर्च करना है इसका फैसला साल के किसी भी वक्त हो सकता है. भारत में पिछले दो तीन साल में ऐसा होने भी लगा है.

रिपोर्टः विवेक कुमार

संपादनः ओ सिंह

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