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कोरोना के साए तले चुनाव से पश्चिम बंगाल के आम लोगों में आतंक

प्रभाकर मणि तिवारी
२७ अप्रैल २०२१

पश्चिम बंगाल में तेजी से बढ़ते कोरोना के ग्राफ ने आम लोगों को आतंकित कर दिया है.

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तस्वीर: Indranil Aditya/NurPhoto/picture alliance

राजधानी कोलकाता समेत राज्य के हर नुक्कड़ और चौराहे पर जहां हाल तक हार-जीत के कयास लगाए जा रहे थे, वहां अब चर्चा का मुद्दा चुनाव से बदल कर कोरोना हो गया है. मद्रास हाईकोर्ट ने कोरोना की दूसरी लहर के लिए सीधे चुनाव आयोग को दोषी ठहराते हुए कहा है कि उसके अधिकारियों के खिलाफ हत्या का मामला चलाया जाना चाहिए. इसके साथ ही सातवें चरण में कोलकाता की जिन चार सीटों पर मतदान हुआ, वहां आंकड़ा 60 फीसदी से भी कम रहा. जबकि इससे पहले किसी भी चरण में कहीं 80 फीसदी से कम मतदान नहीं हुआ था. इससे लोगों में फैले आतंक का पता चलता है. चुनाव आयोग भी ऐसे समय सक्रिय हुआ है जब संक्रमण बेकाबू हो चुका है. उसने पहले तमाम राजनीतिक दलों की चुनाव कम चरणों में कराने और रैलियों पर पाबंदी लगाने की मांग पर कोई ध्यान नहीं दिया था.

पश्चिम बंगाल की हालत

इस साल जनवरी से ही पश्चिम बंगाल के चुनाव सुर्खियों में थे. लेकिन बीते दो सप्ताह के दौरान तस्वीर तेजी से बदली है. अब चुनावों की बजाय सिर्फ और सिर्फ कोरोना ही सुर्खियों में है. पश्चिम बंगाल में बीते पंद्रह दिनों से कोरोना के नए मामले लगातार बढ़ रहे हैं और यह तादाद बढ़ कर रोजाना 16 हजार तक पहुंच गए हैं. राज्य में पॉजिटिविटी रेट यानी संक्रमण की दर अब 32.93 प्रतिशत तक पहुंच गई है यानी हर तीन में से एक व्यक्ति संक्रमित निकल रहा है. स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी बताते हैं कि बीते साल अक्टूबर में जब कोरोना की पहली लहर चरम पर थी, तब भी राज्य में पॉजिटिविटी रेट 9.70 फीसदी ही थी.

बीते चौबीस घंटे के दौरान 16 हजार नए मामले सामने आए हैं और 68 लोगों की मौत हो चुकी है. इस दौरान अकेले कोलकाता में 26 की मौत हुई जो बीते साल से अब तक का रिकॉर्ड है. इसके साथ ही कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा भी 11 हजार के पार पहुंच गया है. दो सप्ताह पहले तक सौ में से एक व्यक्ति संक्रमित मिलता था. लेकिन अब हर तीन में एक व्यक्ति की रिपोर्ट पॉजिटिव आ रही है. मरीजों की तादाद लगातार बढ़ने की वजह से स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराने लगी है. सरकार ने 10 जिलों के 24 निजी अस्पतालों के 1387 बेडों के अधिग्रहण करने का आदेश जारी किया है.

Indien Kolkatta | Sauerstoffflaschen
तस्वीर: PRABHAKAR/DW

कोरोना से संक्रमित होकर मुर्शिदाबाद जिले की जंगीपुर और शमशेरगंज सीट के संयुक्त मोर्चा उम्मीदवारों की मौत तो पहले ही हो गई थी. अब ताजा मामले में उत्तर 24 परगना जिले की पानीहाटी सीट, जहां 22 अप्रैल को मतदान हुआ था, के टीएमसी उम्मीदवार काजल सिन्हा की मौत भी इसी संक्रमण की वजह से हो गई है. इनके अलावा दर्जन से ज्यादा उम्मीदवार इसकी चपेट में हैं. ऐसे लोगों में बाबुल सुप्रियो के अलावा कई अभिनेता और अभिनेत्रियां भी शामिल हैं. अस्पतालों में बेड की मारामारी है. हालांकि राहत की बात यह है कि बंगाल में ऑक्सीजन की कोई किल्लत नहीं है. यहां रोजाना करीब 480 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन होता है जबकि मांग है करीब तीन सौ मीट्रिक टन की. अतिरिक्त ऑक्सीजन को दूसरे राज्यों में भेजा जा रहा है.

दूसरी ओर, इस मुद्दे पर तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी आरोप-प्रत्यारोप में उलझी हैं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आरोप लगाया है कि राज्य में बढ़ते संक्रमण के लिए प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह और चुनाव आयोग ही जिम्मेदार है. उनका कहना है कि चुनावी ड्यूटी पर आए केंद्रीय बलों के करीब तीन लाख जवानों की कोरोना जांच नहीं हुई है. वह लोग ग्रामीण इलाकों में संक्रमण फैला रहे हैं. यहां इस बात का जिक्र प्रासंगिक है कि ममता बनर्जी पहले से ही आखिरी तीन चरणों के मतदान को एक साथ कराने की मांग करती रही हैं. लेकिन आयोग केंद्रीय बलों की कमी की दलील देते हुए उस मांग को खारिज करता रहा है.

अब रोजाना इतने लोग कोरोना की जांच के लिए सामने आ रहे हैं कि उनको रिपोर्ट के लिए एक-एक सप्ताह का इंतजार करना पड़ रहा है. रिपोर्ट नहीं आने तक कोई भी अस्पताल ऐसे मरीजों को भर्ती नहीं करता और तब तक यह लोग न जाने और कितने लोगों तक संक्रमण फैला रहे हैं. कई मामलों में तो इसी वजह से शवों के अंतिम संस्कार में भी देरी हो रही है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने अंदेशा जताया है कि कोरोना संक्रमण और इससे होने वाली मौतों के वास्तविक आंकड़े कहीं ज्यादा हो सकते हैं. इसकी वजह यह है कि बिना लक्षण या कम लक्षण वाले लोग जांच के लिए सामने नहीं आ रहे हैं. इसके अलावा महानगर में रोजाना औसतन डेढ़ सौ शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है जबकि सरकार के मुताबिक कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा 60 से 70 के बीच रहा है.

Indien Kolkatta | Covid-19 Patient
तस्वीर: PRABHAKAR/DW

आयोग की भूमिका पर सवाल

बंगाल में बढ़ते संक्रमण के बीच चुनाव आयोग की भूमिका पर भी लगातार सवाल उठ रहे हैं. बीते सप्ताह कलकत्ता हाईकोर्ट ने आयोग की भूमिका पर सवाल उठाते हुए उसे उसके संवैधानिक अधिकारों और जिम्मेदारियों की याद दिलाई थी. उसके बाद अब मद्रास हाईकोर्ट ने बेहद सख्त टिप्पणी की है. अदालती रवैये की वजह से ही आयोग ने रैलियों, रोड शो और पदयात्राओं पर पाबंदी लगाई और उसके बाद अब दो मई को विजय जुलूस निकालने पर पाबंदी लगा दी है.

महामारी विशेषज्ञ प्रोफेसर रमाकांत मंडल कहते हैं, "अगर शुरू से ही चुनावी रैलियों, रोड शो और पदयात्राओं में कोविड प्रोटोकॉल को सख्ती से लागू किया गया होता तो हालात बेकाबू नहीं होते." केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से लेकर बीजेपी के तमाम नेता यह मानने को तैयार नहीं है कि राज्य में तेजी से बढ़ते संक्रमण का चुनावी रैलियों के साथ कोई संबंध है. अमित शाह ने तो हाल में एक टीवी चैनल पर अपने इंटरव्यू में उल्टे सवाल किया था कि सबसे बुरी हालत तो महाराष्ट्र में है, वहां कौन से चुनाव हो रहे हैं? लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य में चुनाव अभियान के साथ संक्रमण बढ़ने का सीधा संबंध है. विशेषज्ञों ने कहा है कि आयोग ने अब जैसी सक्रियता दिखाई है, वैसी पहले दिखाई होती तो हजारों लोगों को संक्रमित होने से बचाया जा सकता था और सैकड़ों जानें बचाई जा सकती थीं.

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हाइजीन एंड पब्लिक हेल्थ के पूर्व निदेशक गिरीश कुमार पांडेय कहते हैं, "चुनाव प्रचार के दौरान कोविड प्रोटोकॉल का पालन नहीं करने की वजह से तीन-तीन उम्मीदवारों की मौत की बात तो सब जानते हैं. लेकिन उन रैलियों में होने वाली लापरवाही की वजह से कितने लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा है, इसका कोई ठोस आंकड़ा नहीं है. ऐसे में चुनावी रैलियों और कोरोना संक्रमण में तेजी के बीच सीधा संबंध है."

विशेषज्ञों ने पहले ही चेताया था कि विधानसभा चुनाव खत्म होने पर बंगाल में कोरोना संक्रमण का नया रिकॉर्ड बना सकता है. द ज्वाइंट फोरम ऑफ डाक्टर्स - वेस्ट बंगाल नामक डॉक्टरों के एक समूह ने अप्रैल को पहले सप्ताह में ही चुनाव आयोग को पत्र भेज कर चुनाव अभियान के दौरान कोरोना प्रोटोकॉल की सरेआम धज्जियां उड़ाने पर गहरी चिंता जताते हुए उससे हालात पर नियंत्रण के लिए ठोस कदम उठाने की अपील की थी. लेकिन प्रदेश बीजेपी के नेता दलील देते रहे हैं कि कोरोना के बीच अगर बिहार में चुनाव हो सकते हैं तो बंगाल में क्यों नहीं.

बीजेपी के नेता और चुनाव आयोग भले इस बात को नहीं मानें, राज्य में संक्रमण के आंकड़ों से तस्वीर शीशे की तरह साफ हो जाती है. मार्च के पहले सप्ताह में जब चुनाव अभियान की शुरुआत हुई थी तो दो मार्च को संक्रमण के दैनिक मामलों की संख्या महज 171 थी. यह अब बढ़ कर 16 हजार के पार पहुंच गई है. अब कोरोना ही बंगाल में सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है. अब भी 29 अप्रैल को आखिरी चरण में 35 सीटों पर मतदान होना है.

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