चीन और ऑस्ट्रेलिया के बीच बढ़ता तनाव
२९ अप्रैल २०२१चीन ने ऑस्ट्रेलिया से कहा है कि ‘शीत युद्ध वाली मानसिकता' से बाहर आए. चीन का यह बयान ऑस्ट्रेलिया के गृह सचिव माइकल पजुलो के उस बयान के जवाब में आया है जिसमें पजुलो ने क्षेत्र में युद्ध का खतरा होने की बात कही थी. बुधवार को चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता शाओ लीजियान ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ऑस्ट्रेलिया के नेताओं को ‘असली उपद्रवी' बताया. उन्होंने कहा, "जिस देश को चीन से सहयोग से हमेशा से फायदा होता रहा है, उस ऑस्ट्रेलिया द्वारा चीन को खतरा बताने की बात कहना अनैतिक है. इससे वे अपना ही नुकसान करेंगे.”
ऑस्ट्रेलिया की सेनाओं के शौर्य और इतिहास को मनाने के मौके ऐनजैक डे पर अपने स्टाफ को एक संदेश में माइकल पजुलो ने चीन का नाम लिए बगैर कहा था कि "युद्ध के नगाड़े बजते हैं, कभी धीमे-धीमे कहीं दूर तो कभी बहुत पास और बहुत जोर से.” हिंद-प्रशांत क्षेत्र की राजनीति के बहुत से विशेषज्ञ चीन के इस रवैये को दोमुंहापन मानते हैं. चीन मामलों के विशेषज्ञ मेलबर्न यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंध पढ़ाने वाले डॉ. प्रदीप तनेजा कहते हैं कि चीन कई साल से यही भाषा इस्तेमाल कर रहा है.
वह कहते हैं, "अगर दूसरे देश अपनी सुरक्षा को लेकर बंदोबस्त करते हैं तो चीन कहता है कि यह शीत युद्ध की मानसिकता है. लेकिन चीन खुद जितनी रफ्तार से अपन सेनाओं का आधुनिकीकरण कर रहा है, उसे वह शीत युद्ध की मानसिकता नहीं मानता.” यह सच है कि पिछले कुछ वर्षों में चीन का सैन्य आधुनिकीकरण अभूतपूर्व रहा है. बीते हफ्ते चीन ने एक साथ तीन नौसैनिक युद्धपोत समुद्र में उतारे हैं, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक बड़ा संकेत है. इनमें एक परमाणु-क्षमता संपन्न पनडुब्बी, एक लक्ष्य-भेदी मिसाइल चला सकने वाला क्रूजर और एक हेलिकॉप्टर कैरियर जहाज शामिल हैं.
चीन की तैयारी
इन जहाजों को नौसेना को सौंपने का समारोह चीन के दक्षिणी हाइनान द्वीप पर सान्या शहर नौसैनिक अड्डे के पास पूरे गाजे-बाजे के साथ हुआ जिसमें चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने भी हिस्सा लिया. डॉ. तनेजा कहते हैं कि इस तरह के कदमों से दुनियाभर को संकेत तो जाता ही है. डॉयचे वेले से बातचीत में उन्होंने कहा, "तीन लड़ाकू जहाजों को एक साथ उतारने का काम पहले किसी देश ने नहीं किया है. मानी हुई बात है कि चीन की सैन्य क्षमता बहुत बढ़ती जा रही है. इसे लेकर बाकी देशों को भी उसी तरह तैयारी करनी होगी. इसलिए नहीं कि चीन हमला करने वाला है, बल्कि इसलिए कि संतुलन बना रहे.”
शायद इसीलिए ऑस्ट्रेलिया जैसे देश जो आमतौर पर सैन्य क्षमताओं के लिए अमेरिका के भरोसे रहते आए हैं, अपनी जमीन पर बड़ी तैयारियां कर रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया ने इसी हफ्ते अपने सैन्य अड्डों के आधुनिकीकरण पर 581 मिलियन डॉलर खर्च करने का ऐलान किया है. यह धन नॉर्दर्न टेरिटरी में एक हवाई पट्टी को आधुनिक बनाने के अलावा वहां मौजूद ऑस्ट्रेलियाई सैन्य बेस में सुविधाएं बढ़ाने पर खर्च किया जाएगा. नॉर्दर्न टेरिटरी में ही अमेरिका का सैन्य अड्डा भी है जहां हजारों अमेरिकी सैनिक मौजूद रहते हैं.
ऑस्ट्रेलियन असोसिएटेड प्रेस के मुताबिक डार्विन में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा कि उनका देश अमेरिका के साथ मिलकर एक आजाद और स्थिर हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए काम करता रहेगा. मॉरिसन ने कहा, "अमेरिका और हिंद-प्रशांत में अपने पड़ोसियों के साथ सहयोग करते हुए हम ऑस्ट्रेलिया के हितों को बढ़ाते रहेंगे. इसके लिए हम ऑस्ट्रेलिया की सेना पर, खासकर उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में निवेश करेंगे.”
संतुलन की जरूरत
डॉ तनेजा कहते हैं कि इसे युद्ध की तैयारी नहीं मानना चाहिए. वह कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि ऑस्ट्रेलिया युद्ध की तैयारी कर रहा है. लेकिन अपनी रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. इसकी जरूरत इसलिए पड़ रही है क्योंकि हिंद और प्रशांत महासागर को मिलाकर जो बड़ा क्षेत्र बनता है, उसमें सुरक्षा का परिदृश्य बदल रहा है. चीन की सामरिक क्षमताएं और इस क्षेत्र में गतिविधियां बढ़ती जा रही हैं. उसे लेकर नीति-निर्माताओं को लगता है कि हमें भी तैयारी करनी चाहिए. हालांकि युद्ध की संभावनाएं बिल्कुल नहीं हैं.”
बीते दो-तीन साल में चीन और ऑस्ट्रेलिया के संबंध काफी खराब हुए हैं. दोनों ही देशों की ओर से एक-दूसरे के खिलाफ तीखी बयानबाजी हुई है. ऑस्ट्रेलिया ने जापान, अमेरिका और भारत के साथ मिलकर क्वॉड नाम से रणनीतिक संगठन में गतिविधियां बढ़ाई हैं, जिसे चीन अपने हितों के खिलाफ देखता है. इसका नतीजा ऑस्ट्रेलिया को बड़े व्यापारिक प्रतिबंधों के रूप में भुगतना पड़ा है जबकि चीन आज भी ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है.