जर्मनी भी करता है नेट जासूसी
२६ जून २०१३जर्मनी की विदेशी खुफिया एजेंसी बीएनडी ने 2010 में 3.7 करोड़ ईमेल, एसएमएस और टेलिकम्युनिकेशन डाटा की जांच की. संसदीय नियंत्रण आयोग के अनुसार अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के क्षेत्र में ही करीब 1 करोड़ संदेश थे. इस बीच यह संख्या तेजी से गिरी है. 2011 में सिर्फ 29 लाख और पिछले साल 9 लाख इलेक्ट्रॉनिक डाटा की जांच की गई. सिर्फ उन समाचारों की ही जांच नहीं की गई जिनमें कुछ खास शब्द थे, बल्कि संदिग्ध टेलिफोन नंबरों और आईपी एड्रेस को भी खंगाला गया.
जर्मनी की विदेशी खुफिया एजेंसी का काम जर्मनी की सुरक्षा पर बाहर से खतरे को रोकने के लिए सूचना जुटाना है. इसके लिए बीएनडी आतंकी योजनाओं, हथियारों के अवैध कारोबार, मानव तस्करों की गतिविधियों और ड्रग अपराध की जांच करता है. अपनी जासूसी की कार्रवाई में बीएनडी को कड़े कानून का पालन करना पड़ता है. उसकी गतिविधियों की निगरानी संसद का एक विशेष आयोग करता है, जिसके 11 सदस्य हैं. उनमें एसपीडी के मिषाएल हार्टमन, एफडीपी की गिजेला पिल्त्स और सीएसयू के हंस-पेटर ऊल शामिल हैं. आयोग के सदस्य बीएनडी से सवाल जवाब कर सकते हैं, फाइल देख सकते हैं.
अंधाधुंध जासूसी नहीं
ये राजनीतिज्ञ जर्मन में बिग ब्रदर वाली स्थिति नहीं देखते. उनका कहना है कि सुरक्षा एजेंसियों के जमा किए डाटा में कमी इसका सबूत है. निगरानी की तकनीक को बेहतर बनाने में कामयाबी मिली है. मिषाएल हार्टमन स्वीकार करते हैं कि बीएनडी के पास अभी भी सबसे बड़ा डिजीटल नेटवर्क है, लेकिन वे इस पर जोर देते हैं कि वह मनमर्जी से डाटा नहीं इकट्ठा करता, "समाचार या टेलिफोन पर होने वाली बातचीत की जांच अपराध के ठोस संदेह की हालत में ही होती है." दोस्ताना देशों में भी जासूसी नहीं की जाती.
हंस-पेटर ऊल टेलिफोन टेपिंग के बारे में कहते हैं कि जर्मन नागरिकों के टेलिफोन न तो देश में और न ही विदेश में बिना ठोस संदेह के सुने जा सकते हैं. यदि किसी विदेशी का टेलिफोन टेप किया जा रहा हो और वह किसी जर्मन से बातचीत कर रहा हो तो टेप को नष्ट कर दिया जाता है. इसे रजिस्टर किया जाता है ताकि डाटा सिक्योरिटी अधिकारी इसकी जांच कर सके. अदालत के फैसले के बिना टेलिफोन टेपिंग नहीं की जा सकती. जर्मनी में रहने वाले सभी लोगों की निजता की संवैधानिक गारंटी है. यदि खुफिया एजेंसी के लिए इस निजता पर अंकुश लगाना होता है तो इसका फैसला गोपनीयता की निगरानी करने वाला जी 10 आयोग करता है. 2011 में जी 10 ने 156 मामलों में टेपिंग की अनुमति दी.
जासूसी का व्यापक विरोध
जर्मन कानून में इसकी भी व्यवस्था है कि जिस पर निगरानी रखी जाती है या जिसका फोन टेप किया जाता है, उसे खुफिया कार्रवाई के खत्म होने के बाद इसकी सूचना दी जाती है. इसका नतीजा अक्सर शिकायत के रूप में सामने आता है जर्मनी कानून का राज्य होने के नाते इसकी इजाजत देता है. शिकायत की प्रक्रिया सार्वजनिक होती है. इस समय बर्लिन और कोलोन की प्रशासनिक अदालतों में 16 मुकदमे चल रहे हैं. संसदीय निगरानी आयोग की गिजेला पिल्त्स कहती हैं, "हमारे पास इन शिकायतों की सूची होती है और हम इन पर एक के बाद एक विचार करते हैं. मुझे नहीं लगता कि एजेंसियां इन मामलों में बहुत ज्यादा गैरकानूनी कदम उठा रहीं थीं."
खुफिया एजेंसियों ने पिछले सालों में विभिन्न सरकारों से इंटरनेट और टेलिफोन डाटा पर लगातार ज्यादा नियंत्रण के अधिकार पाने की कोशिश की है. हमेशा इस दलील के साथ कि आधुनिक साधनों से आतंकवादियों और अपराधियों का बेहतर सामना किया जा सकता है. बहुत सी कोशिशें नाकाम रही हैं. मसलन बिना किसी ठोस संदेह के डाटा को लंबे समय तक सुरक्षित रखने की कोशिश. संवैधानिक न्यायालय ने इसकी अनुमति नहीं दी. अदालत के फैसले के बाद 2008 से 2010 तक लागू एक कानून को वापस लेना पड़ा.
यूरोपीय संघ का एक कानून अब जर्मनी को टेलिकम्युनिकेशन डाटा छह महीने तक जमा रखने की अनुमति देगा. जर्मन कानून मंत्री अब तक यूरोपीय अधिनियम को जर्मन कानून का रूप देने से इंकार कर रही हैं. ईयू ने इसके लिए जर्मनी के खिलाफ मुकदमा किया है. इसी तरह इंटरनेट प्रोवाइडरों को खुफिया एजेंसियों के लिए डाटा को छह महीने से ज्यादा जमा रखने के निर्देश को अब तक लागू नहीं किया जा सका है.
डाटा से बहुत कम जानकारी
जर्मनी के एसेन स्थित संकट रोधी संस्थान के निदेशक रॉल्फ टॉपहोफेन का कहना है कि टेलिकम्युनिकेशन डाटा के तकनीकी आकलन पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं करना चाहिए. वे कहते हैं, "एकत्रित सूचना के विशाल भंडार की तुलना में खुफिया तौर पर प्रासंगिक जानकारी बहुत मामूली है." संसदीय नियंत्रण आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में इस सिलसिले में आंकड़े दिए हैं. बीएनडी के जांच किए 25 लाख ईमेल में सिर्फ 300 खुफिया जानकारी पाई गई.
रॉल्फ टॉपहोफेन का कहना है कि स्थिति के आकलन के लिए और ज्यादा विशेषज्ञों को नियुक्त किया जाना चाहिए. उनकी दलील है, "आतंकवादियों का आधुनिक वर्ग छुपे तौर पर रैडिकल बन रहा है. वह सुरक्षा एजेंसियों के हाइटेक कम्प्यूटर से बच निकलता है." वे बॉस्टन मैराथन के हमलावर का उदाहरण देते हैं. टॉपहोफेन कड़े कानूनों की वजह से इस शंका को निराधार मानते हैं कि जर्मनी खुफिया एजेंसियां औपचारिक रूप से ज्ञात मामलों से ज्यादा जासूसी कर रही हैं. "जर्मन इतने व्यापक रूप से जानकारी जमा नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उनके पास इसके लिए पर्याप्त कर्मचारी और तकनीकी तथा वित्तीय साधन नहीं हैं."
रिपोर्ट: डिर्क वोल्फगांग/एमजे
संपादन: निखिल रंजन