जापानी अर्थव्यवस्था की चुनौतियां
जापान में नए सम्राट के साथ नया काल शुरू हो रहा है. लेकिन वह औसत उम्र में वृद्धि और जन्म दर में लगातार कमी के कारण कामगारों की संख्या में भारी कमी का सामना कर रहा है. कमी को विदेशी कामगारों से पूरा करना भी आसान नहीं.
बूढ़ी होती आबादी
जापान की आबादी लगातार बूढी होती जा रही है. आबादी का एक तिहाई हिस्सा ऐसे लोगों का है जो 60 की उम्र पार कर चुके हैं और समय से पहले पेंशन पर जा सकते हैं.
कम जन्म दर
बूढ़ी होती आबादी की भरपाई बच्चों के पैदा होने से हो सकती है, लेकिन जापान में जन्म दर भी लगातार कम हो रही है. 2017 में जापान में प्रति महिला सिर्फ 1.43 बच्चे पैदा हुए जो जरूरत से कम हैं.
बूढ़े कामगार
जापान में 70 फीसदी उद्यम रिटायरमेंट के बाद नौकरी की पेशकश करते हैं लेकिन रिटायर करने वाले लोगों को नया काम और कम वेतन दिया जाता है. देश में जीवन दर 1960 के 67 फीसदी के मुकाबले बढ़कर 2016 में 84 साल हो गई है.
काम में दिलचस्पी
इसके बावजूद बहुत से लोग रिटायरमेंट के बाद भी काम करते हैं. एक तो वे बुढ़ापे में भी सक्रिय रहना चाहते हैं और काम करना चाहते हैं. दूसरे सरकारी पेंशन इतनी नहीं कि अच्छी तरह गुजारा हो सके.
मुश्किल मु्द्दा
आप्रवासन का मुद्दा जापान में विवादों भरा रहा है. सरकार लंबे समय तक कामगारों में कमी की भरपाई के लिए विदेशी कामगारों की भर्ती का विरोध करती रही है.
नई वीजा नीति
शिंजो आबे सरकार की नई वीजा नीति के तहत हजारों लोगों को जापान में काम करने के लिए वीजा मिलेगा. लेकिन उन्हें सिर्फ पांच साल का वीजा मिलेगा. आगे काम करने के लिए उन्हें फिर से अपने देश वापस लौटना होगा.
नहीं सुलझेगी समस्या
विशेषज्ञों का मानना है कि जापान की नई नीति से कामगारों की कमी की समस्या में सुधार नहीं होगा. विदेशियों को जापान में स्थायी रूप से रहने का अधिकार तभी मिलेगा जब वे लगातार दस साल काम करें.
स्वचालन का सहारा
जापान ने कामगारों की कमी पूरी करने के लिए काफी समय तक स्वचालित मशीनों और रोबोटों पर जोर दिया. लेकिन मशीन इंसानों की कमी को पूरी तरह समाप्त नहीं कर सकते. जापान को बाध्य होकर विदेशी कामगारों का सहारा लेना पड़ा है.