डिजिटल लुटेरों का गढ़ है झारखंड का जामताड़ा
२५ सितम्बर २०२०झारखंड की राजधानी रांची से 250 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है आर्थिक दृष्टिकोण से राज्य का काफी पिछड़ा जिला जामताड़ा. जी हां, यह वही जामताड़ा है जिसकी कहानियों पर आधारित वेब सीरिज आपने देखी होगी. परंतु हकीकत वाकई उससे कहीं ज्यादा भयावह है. जामताड़ा से 17 किलोमीटर की दूरी पर है करमाटांड़. यह जगह कभी महान समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर की कर्मस्थली रही थी. उन्होंने यहां 18 साल बिताए थे, किंतु पूरा इलाका आज साइबर क्राइम का सबसे बड़ा गढ़ बन चुका है. यहां के युवाओं ने न तो कोई तकनीकी तालीम ली है और न ही वे काफी पढ़े-लिखे हैं, परंतु लैपटॉप व स्मार्ट फोन पर थिरकती उनकी अंगुलियां स्वयं में एक आश्चर्य से कम नहीं हैं.
दिल्ली-हावड़ा मेन लाइन पर स्थित करमाटांड़ स्टेशन 1970-80 में ट्रेन लूट, स्नैचिंग व नशाखुरानी के लिए कुख्यात था. इसके अगले 20 साल तक इसे बैगन ब्रेकिंग स्टेशन के नाम से जाना जाता था. इसके बाद 2004-05 में जैसे ही स्मार्ट फोन आया, यहां का अपराध माड्यूल बदल गया. देखते-देखते पूरा इलाका साइबर क्राइम का गढ़ बन गया. पुलिस की नजर पड़ते-पड़ते करीब सात-आठ साल बीत गए. पहली बार 2013 में करमाटांड़ थाने में साइबर क्राइम का मामला दर्ज किया गया. पुलिस ने कार्रवाई की और कुछ अपराधी पकड़े भी गए लेकिन पुलिस आज तक इन शातिरों पर नकेल नहीं कस सकी है. पुलिस सूत्र बताते हैं कि करमाटांड़ के कुछ लोगों ने दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में जाकर साइबर क्राइम की बकायदा ट्रेनिंग ली और फिर यहां लौट कर पूरा गैंग बना लिया. फिर क्या था एक से एक तरीके अपना कर यहां कई गिरोह खड़े हो गए.
ऑफर के नाम से शुरू ठगी ऑनलाइन में तब्दील
सबसे पहले इन शातिरों ने ऑफर के नाम पर ठगी का धंधा शुरू किया. लकी ड्रॉ व ईनाम निकलने की बात कह कर ये लोगों को विश्वास में लेते और फिर उनसे पार्सल या अन्य किसी नाम पर निश्चित रकम अपने अकाउंट में डलवाते थे. जैसे ही पैसे अकाउंट में आ गए, संपर्क खत्म या ईनाम की वस्तु की जगह ईंट-पत्थर भेज देते थे. समय के साथ-साथ अपराध का माड्यूल भी बदल गया. अब बैंक अधिकारी बनकर ये लोगों को फोन करने लगे और उनको झांसे में लेकर उनकी गोपनीय सूचनाएं इकट्ठा कर सीधे बैंक खाते में सेंध लगाने लगे. ये हाईटेक अपराधी फर्जी फेसबुक आइडी, फर्जी सिम, फर्जी वेबसाइट लिंक की आड़ में अपराध को अंजाम देते हैं. फर्जी बैंक अधिकारी बनकर ये शातिराना अंदाज में लोगों को उनके डेबिट-क्रेडिट कार्ड या अकाउंट ब्लॉक होने की सूचना देते हैं और उनकी सहायता के नाम पर उनके हमदर्द बनने का नाटक कर बातों-बातों में जन्मतिथि, पैन नंबर, पिन नंबर या पासवर्ड जान लेते हैं. लोग उन्हें सही व्यक्ति समझ कर सब कुछ बताते जाते हैं और जब तक उन्हें असलियत का पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है, उनके खाते से पैसे गायब हो चुके होते हैं.
ये कस्टमर केयर के नाम पर भी लोगों को झांसा देते हैं. सर्च इंजन गूगल पर शातिरों द्वारा फर्जी लिंक डाल दिया जाता है. लोग उसे संबंधित कंपनी का सही लिंक समझ कर जैसे ही खोलते हैं, उनकी सारी निजी व गोपनीय जानकारी शातिरों तक पहुंच जाती है. इनके गिरोह के लोग कार्ड क्लोनिंग में भी माहिर होते हैं. एटीएम स्कीमिंग डिवाइस के जरिए ये उस एटीएम से लेन-देन करने वाले की सारी जानकारी इकट्ठा कर कार्ड की क्लोनिंग करते हैं और फिर उस अकाउंट से पैसे निकाल लेते हैं. आजकल फर्जी फेसबुक आइडी के सहारे ये लोगों से मदद के नाम पर पैसे मांगते हैं. जैसे ही कोई व्यक्ति इनकी मदद को तैयार होता है वे उसकी अकाउंट को अटैच कर चूना लगा देते हैं. डेटा हैक करने में भी इन्हें महारत हासिल है. जामताड़ा के कुछ साइबर अपराधियों ने तो पेटीएम कर्मचारी को मिलाकर उपभोक्ताओं का पूरा डेटा ट्रांसफर करा लिया और लिंक भेजकर ठगी शुरू कर दी. इसी साल जनवरी में इस सिलसिले में तत्कालीन पुलिस कप्तान अंशुमान कुमार ने जितेंद्र मंडल व उसके दो सहयोगियों को गिरफ्तार किया था. इनलोगों ने मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद, चेन्नई जैसे शहरों के पेटीएम के खाताधारकों को खासी चपत लगाई थी.
बड़ी हस्तियों को भी नहीं बख्शा
जामताड़ा के साइबर अपराधी कई बड़े राजनेताओं, फिल्म कलाकारों, अधिकारियों व व्यवसायियों को चूना लगा चुके हैं. कई छोटे-बड़े लोग इनके कारण कंगाल हो गए. उनकी बरसों की गाढ़ी कमाई मिनटों में लुट गई और इसका एहसास तक न हो सका. इसी सिलसिले में कुछ दिनों पहले सीताराम मंडल, रामकुमार मंडल, अजय मंडल, संतोष मंडल नामक साइबर अपराधियों को दिल्ली पुलिस ने पकड़ा था. ये सभी शातिर फोन कर लोगों को झांसे में लेने में माहिर हैं. पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार सीताराम मंडल ने मुंबई से लौटने के बाद न केवल अपना गिरोह तैयार किया बल्कि इसी फ्रॉड के सहारे करोड़ों की संपत्ति खड़ी कर ली. बताया जाता है कि उसने करीब 400 से ज्यादा युवाओं को साइबर अपराध में सिद्धहस्त बना दिया. दिल्ली-नोएडा समेत कई बड़े शहरों की पुलिस का वह वांछित है.
उसके अलावा इस इलाके के करीब सौ से ज्यादा शातिरों को पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है. अभी हाल में ही नई दिल्ली की मैदानगढ़ी पुलिस ने छतरपुर निवासी एक व्यक्ति से ठगी करने वाले जामताड़ा गिरोह के एक सदस्य संदीप को पंजाब के होशियारपुर से गिरफ्तार किया. संदीप का मुख्य काम गिरोह के लिए नए सदस्य बनाना और बैंक के खातों का इंतजाम करना था. संदीप ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि उसका सरगना झारखंड के जामताड़ा से ऑपरेट करता है और गिरोह के लोग कमीशन पर पंजाब, राजस्थान, बिहार, गुजरात व बंगाल में काम करते हैं. उसने बताया कि इस काम से वह 25 लाख से ज्यादा की कमाई कर लेता है.
महिलाओं का भी है गिरोह
ऐसा नहीं है कि जामताड़ा के पुरुष ही ऑनलाइन ठगी कर रहे हैं. कई गिरोहों को महिलाएं भी चला रहीं हैं. कुछ साल पहले तत्कालीन एसपी जया राय ने पर्दाफाश किया था कि कई गिरोहों की कर्ता-धर्ता तो केवल महिलाएं हैं. अपनी सुरीली आवाज व बातूनी अदाओं से वे खास अंदाज में आसानी से लोगों को झांसे में ले लेतीं हैं. बीते तीन साल में आधा दर्जन से अधिक ऐसी महिलाएं पकड़ी गईं हैं. दूसरों के उड़ाए पैसों से ये महिलाएं पूरे एशो-आराम की जिंदगी बसर करती हैं.
पहली बार पिंकी नाम की महिला ठग का पता पुलिस को चला जिसका पति भी साइबर अपराधी था. उसके कब्जे से पुलिस को करीब पांच सौ से ज्यादा एटीएम कार्ड के नंबर मिले थे. उसके मोबाइल फोन की जांच से यह खुलासा हुआ कि मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के इलाके में ऑनलाइन ठगी की अधिकतर वारदातों को उसने अंजाम दिया था. पुलिस ने बाद में सोनी व मनका देवी को गिरफ्तार किया. कई महिलाएं अभी जामताड़ा पुलिस की रडार पर हैं.
आलीशान मकान व महंगी गाड़ियां
जंगलों व पहाड़ियों से घिरे जामताड़ा जिले के करमाटांड़ व नारायणपुर ब्लॉक के सौ से अधिक गांव या टोले ऐसे हैं, जो अपनी संपन्नता की कहानी खुद कहते हैं. इन गांवों में आलीशान मकान के आगे महंगी गाडिय़ां लगीं रहती हैं. लेकिन आश्चर्य, इन पर ताला जड़ा रहता है. दरअसल कई घर तो ऐसे हैं जिनका पूरा परिवार इस धंधे में लिप्त है. पुलिस के छापे के डर से दिन में ये गांव या टोले से हटकर बांस या अन्य पौधे के झुरमुट में बैठ लैपटॉप व मोबाइल फोन के सहारे हाईटेक लूट की वारदात को अंजाम देते हैं. इनके मुखबिर इन्हें पुलिस की गाड़ी के गांव की ओर मुड़ने की सूचना पुलिस के पहुंचने से पहले दे देते हैं. इस वजह से पुलिस की गिरफ्त से ये दूर रहते हैं.
इन गांवों के शातिर दूसरे के अकाउंट से पैसे उड़ाकर इतने समृद्ध हो चुके हैं कि रियल इस्टेट व जमीन जैसी प्रॉपर्टी के अलावा कई अन्य धंधों में भी खासा निवेश कर रखा है. जामताड़ा साइबर थाने द्वारा पुलिस मुख्यालय को भेजी गई एक रिपोर्ट के अनुसार करीब दो दर्जन से अधिक शातिरों के नाम की सूची प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को भेजी गई है. संतोष मंडल, गणेश मंडल, प्रदीप मंडल व पिंटू मंडल के खिलाफ ईडी की कार्रवाई चल रही है. जामताड़ा के निवर्तमान एसपी अंशुमान कुमार कहते हैं, "डेढ़ दर्जन से ज्यादा साइबर लुटेरों की संपत्ति की जांच कर कार्रवाई का प्रस्ताव प्रवर्तन निदेशालय व आयकर विभाग को भेजा गया है. कई तो बीपीएल परिवार हैं जिन्होंने ऑनलाइन ठगी के जरिए अकूत संपत्ति जमा कर रखी है."
संसाधनों की कमी झेल रही पुलिस
ऐसा नहीं है कि पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है. देशव्यापी बदनामी के बाद झारखंड सरकार ने जनवरी 2018 में जामताड़ा में साइबर थाना स्थापित किया. करीब दो सौ मामले दर्ज किए गए तथा तीन सौ ज्यादा शातिरों को गिरफ्तार किया गया. किंतु इन साइबर अपराधियों पर पुलिस अभी तक नियंत्रण नहीं पा सकी है. जो अपराधी पकड़े भी जाते हैं वे संसाधनों की कमी, अनुसंधान की धीमी रफ्तार व सिस्टम की खामियों के चलते जल्द ही जमानत पर छूटकर बाहर आ जाते हैं और फिर अपराध में लिप्त हो जाते हैं. वैसे साइबर अपराध को रोकने व सूचनाएं यथाशीघ्र साझा करने के उद्देश्य से ऑनलाइन इंवेस्टिगेटिंग कॉपरेशन रिक्वेस्ट प्लेटफॉर्म (ओआइसीआर) बनाकर एक बेहतर कोशिश की गई है. इससे अन्य राज्यों से यहां की पुलिस का संवाद बढ़ा है. उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, दिल्ली व महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों ने ओआइसीआर के जरिए शातिरों की गिरफ्तारी के लिए उनसे संबंधित सूचनाएं व लोकेशन जामताड़ा पुलिस को भेजी है. जिस पर अनुसंधान या कार्रवाई कर जामताड़ा पुलिस इसकी सूचना संबंधित राज्यों को भेजती है.
इन शातिरों की करतूतों की वजह से ही रिजर्व बैंक समेत सभी बैंक या इंश्योरेंस कंपनियां लोगों को कई प्रकार से जागरूक कर रहीं हैं. इनका संदेश साफ है कि कोई भी बैंक अधिकारी या कर्मचारी कभी की भी निजी जानकारी नहीं पूछता है. किसी परिस्थिति में किसी से भी पासवर्ड या पिन नंबर शेयर न किया जाए. अभी हाल में ही एटीएम से पैसे निकालने में ओटीपी अनिवार्य कर दिया गया है. हालांकि सरकारी तंत्र को अभी और कारगर बनाने तथा वित्तीय संस्थाओं के डेटा को सुरक्षित करने की जरूरत है. लेकिन इतना तो तय है कि केवल सरकारी प्रयासों से ऐसे वारदातों पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता, हरेक व्यक्ति को सतर्क रहना होगा अन्यथा एक फर्जी फोन कॉल से उनकी गाढ़ी कमाई यूं ही लुटती रहेगी.
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