तख्ता पलट के बाद नजर आए मुगाबे
१७ नवम्बर २०१७93 साल के मुगाबे ने शुक्रवार को जिम्बाब्वे ओपन यूनिर्सिटी के दीक्षांत समारोह का उद्घाटन किया. नीले और पीले रंग की यूनिवर्सिटी गाउन और हैट पहने मुगाबे समारोह के दौरान कुर्सी पर शायद सो गये थे क्योंकि उनकी आंखें बंद थीं और सिर एक तरफ झुक गया था.
मुगाबे ने जिम्बाब्वे की स्वाधीनता के संघर्ष का नेतृत्व किया और 1980 में आजादी मिलने के बाद यहां की राजनीति पर अपनी पकड़ जमा ली. उनका कहना है कि वह अब भी देश और सत्ता के प्रमुख हैं लेकिन सत्ताधारी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पार्टी अब उनसे छुटकारा चाहती है. सूत्रों से मिली जानकारी में कहा गया है, "अगर वे अड़ियल बने रहे तो रविवार को हम उन्हें हटाने का इंतजाम करेंगे. जब यह हो जायेगा तो मंगलवार को उन पर महाभियोग चलेगा."
दूसरी तरफ सेना ने राष्ट्रीय टेलिविजन पर अपने बयान में कहा है कि मुगाबे के साथ बातचीत हो रही है. बयान में मुगाबे को कमांडर इन चीफ कहा गया और कहा गया कि इस बातचीत का नतीजा जल्दी ही सार्वजनिक किया जाएगा. मुगाबे को वरिष्ठ राजनीतिज्ञ और अफ्रीका की आजादी के नायकों की पीढ़ी का माना जाता है लेकिन इसके साथ ही उनकी उन नेताओँ में भी गिनती होती है जिन्होंने लंबे समय तक सत्ता अपनी मुट्ठी में रखी. वह खुद को अफ्रीकी राजनीति के बूढ़े दादा कहते हैं.
जिम्बाब्वे के सरकारी अखबार द हेराल्ड ने ऐसी कई तस्वीरें छापी हैं जिनमें उन्हें सेना प्रमुख जनरल कोन्सटान्टिनो चिवेंगा के साथ हाथ मिलाते और मुस्कुराते देखा जा सकता है. इन तस्वीरों ने जिम्बाब्वे के लोगों को हैरान किया है. उन्हें लगता है कि इसका मतलब है कि मुगाबे तख्तापलट को रोकने में कामयाब हो जाएंगे. कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि इसका मतलब यह भी हो सकता है कि मुगाबे अपनी विदाई को चुनावों का एलान होने तक के लिए टाल दें.
सत्ताधारी पार्टी जानू पीएफ से जुड़े सूत्रों का कहना है कि ऐसा नहीं है. पार्टी के नेता मुगाबे के सत्ता छोड़ने से इनकार करने की सूरत में उन्हें बर्खास्त करने की योजना बना रहे हैं. समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में पार्टी से जुड़े एक सूत्र ने कहा, "पीछे हटने का सवाल नहीं है. यह भारी बारिश के कारण देर से होने वाले मैच जैसा है जिसमें होम साइड 89वें मिनट में 90-0 से लीड कर रहा है."
सेना ने मुगाबे के घर के बाहर घेरा डाल रखा है. उनकी पत्नी ग्रेस भी नजरबंद हैं और उनके प्रमुख राजनीतिक सहयोगी सेना की गिरफ्त में हैं. पुलिस ने भी समर्थन दिखाते हुए किसी तरह का प्रतिरोध नहीं किया है. इसके साथ ही यह भी सच है कि राजधानी में मुगाबे के बहुत कम ही समर्थक हैं. यहां विपक्षी पार्टियों का दबदबा है. अर्थव्यवस्था की स्थिति को लेकर मुगाबे से लोग काफी नाराज हैं. 2000 में गोरे लोगों के फार्मों पर कब्जा करने के बाद से अर्थव्यवस्था एक तरह से बैठ गयी है. बेरोजगारी तकरीबन 90 फीसदी तक चली गयी है और मुद्रा की कमी के कारण देश में महंगाई की दर बहुत ऊंची है. आयात होने वाली चीजों की कीमतें हर महीने तकरीबन 50 फीसदी तक बढ़ जा रही हैं.
एनआर/एमजे (रॉयटर्स)