तिब्बती संसद दलाई लामा के संन्यास के खिलाफ
१६ मार्च २०११तिब्बती संसद में बेहद भावुक माहौल के बीच बहस शुरू करते हुए सांसदों ने 75 वर्षीय दलाई लामा से आग्रह किया कि वे अपने फैसले पर फिर से विचार करें और तिब्बती समुदाय के व्यापक हित में अपना फैसले पर अमल न करें. दलाई लामा ने सोमवार को तिब्बती संसद को औपचारिक तौर पर राजनीतिक जिम्मेदारी छोड़ने के अपने फैसले के बारे में बताया. चार दिन पहले ही उन्होंने अपने इस फैसले की घोषणा की ताकि तिब्बतियों का नया नेता चुने जाने का रास्ता साफ हो सके. दलाई लामा का कहना है कि वह तिब्बतियों के आध्यात्मिक नेता बने रहेंगे.
राजनीतिक संकट का डर
मंगलवार को संसद की कार्यवाही के दौरान लगभग सभी 43 सदस्यों ने इस मुद्दे पर अपनी राय रखी. तिब्बती निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री सामधोंग रिनपोची ने कहा कि सभी सांसद इस बात पर एकमत थे कि दलाई लामा उनके आध्यात्मिक और राजनीतिक नेता बने रहें. दलाई लामा के संन्यास लेने से गतिरोध पैदा हो सकता है क्योंकि सीधे तौर पर लोकतांत्रित तरीके से नेता चुनने के लिए संविधान में बदलाव करना होगा और इसके लिए बहुतम की जरूरत होगी.
रिनपोचे कहते हैं, "बहुत संभव है कि संसद उनके पद से हटने को स्वीकार नहीं करेगी." एक सांसद उगेन तोपग्याल का कहना है कि दलाई की राय समुदाय की राय के मुताबिक नहीं है. वहीं कुछ सांसद इस बारे में लगभग दो लाख की आबादी वाले तिब्बती समुदाय में जनमत संग्रह कराने की बात कर रहे हैं. कुछ सांसदों ने यह भी सुझाव किया कि दलाई लामा फिलहाल अपने पद पर बने रहें और संसद को ज्यादा अधिकार दे दिए जाएं.
मैं न रहा तो...
तिब्बती संसद को भेजे गए दलाई लामा के पत्र में कहा गया है कि सांसद राजनीतिक जीवन से संन्यास लेने के उनके फैसले को स्वीकार करें. साथ ही उन्होंने इस बात के लिए भी चेताया है कि अगर एक दिन अचानक वह नहीं रहे तो क्या होगा. हालांकि उन्होंने भरोसा दिलाया कि जब तक वह स्वस्थ्य और सक्षम हैं अपने समुदाय की सेवा करते रहेंगे.
यह पहला मौका नहीं है जब दलाई ने राजनीतिक पद छोड़ने की बात कही है, लेकिन तिब्बती संसद इस तरह की पेशकशों के सीधे सीधे खारिज करती रही है. बुधवार को बजट पेश होने के बाद संसद में फिर इस मुद्दे पर बात होगी. लेकिन इस बार दलाई लामा पद छोड़ने के अपने फैसले पर अडिग दिखते हैं. निर्वासित तिब्बतियों ने 1959 से भारत के धर्मशाला में अपना ठिकाना बना रखा है. चीनी शासन के खिलाफ विद्रोह के बाद इन तिब्बतियों ने भाग कर भारत में शरण ली.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः वी कुमार