1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

त्रिपुरा में ब्रू शरणार्थियों को बसाने का विरोध

प्रभाकर मणि तिवारी
१८ नवम्बर २०२०

पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में वर्षों से शरणार्थी शिविरों में रहने वाले करीब 32 हजार ब्रू शरणार्थियों को त्रिपुरा में स्थायी तौर पर बसाने की सरकारी योजना का भारी विरोध शुरू हो गया है.

https://p.dw.com/p/3lTRa
Indien Flüchtlingskind Waffe
हिंसा के बचने के लिए ब्रू लोग मिजोरम से भागकर त्रिपुरा आएतस्वीर: picture-alliance/dpa/EPA

कुछ संगठनों की अपील पर कंचनपुर सबडिवीजन में सोमवार से ही बेमियादी हड़ताल चल रही है. पड़ोसी मिजोरम में हिंसा के बाद ब्रू समुदाय के हजारों लोग लंबे अरसे से त्रिपुरा के कंचनपुर इलाके में रह रहे हैं. केंद्र ने इस साल जनवरी में इन शरणार्थियों को स्थायी तौर पर बसाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और छह सौ करोड़ के पुनर्वास पैकेज का एलान किया था.

ब्रू समस्या

ब्रू जनजाति का विवाद दशकों पुराना है. दरअसल, इस समुदाय के लोग पड़ोसी मिजोरम के रहने वाले हैं. ज्यादातर ब्रू परिवार मामित और कोलासिब जिले में रहते हैं. ब्रू-रियांग और बहुसंख्यक मिजो समुदाय के बीच 1996 में हुआ सांप्रदायिक दंगा इनके पलायन का कारण बना था. मिजोरम में हिंसक झड़पों के बाद ब्रू जनजाति के हजारों लोग भाग कर पड़ोसी राज्य त्रिपुरा के शरणार्थी शिविरों में चले गए थे.

इस तनाव ने ब्रू नेशनल लिबरेशन फ्रंट (बीएनएलएफ) और राजनीतिक संगठन ब्रू नेशनल यूनियन (बीएनयू) को जन्म दिया, इन दोनों संगठनों ने राज्य के चकमा समुदाय की तरह एक स्वायत्त जिले की मांग की. इस मुद्दे पर विवाद वर्ष 1995 में उस समय शुरू हुआ जब मिजोरम के ताकतवर संगठनों यंग मिजो एसोसिएशन और मिजो स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने ब्रू समुदाय के लोगों की चुनावों में भागीदारी का विरोध किया. इन संगठनों का कहना था कि ब्रू समुदाय के लोग मिजोरम के मूल निवासी नहीं हैं.

केंद्र और राज्य सरकारें त्रिपुरा के राहत शिविरों में रहने वाले ब्रू शरणार्थियों की मिजोरम वापसी के लिए लंबे समय से प्रयास कर रही थी. लेकिन सरकार की ओर से सुरक्षा और रोजगार के तमाम आश्वासनों के बावजूद बीते साल अक्टूबर 2019 में 51 लोग मिजोरम लौटे. लेकिन ज्यादातर लोग मिजोरम लौटने को तैयार नहीं हैं जबकि सरकार की ओर से शरणार्थी शिविरों में मुफ्त राशन-पानी का इंतजाम किया गया था.

Indien Wahlen im Bundesstaat Mizoram
बरसों से हजारों ब्रू लोग त्रिपुरा में रह रहे हैंतस्वीर: Getty Images/AFP/A. Dey

समझौता

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और ब्रू शरणार्थियों के प्रतिनिधियों ने इस साल जनवरी में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब और मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथांगा की मौजूदगी में शरणार्थी संकट के समाधान और उनको स्थायी तौर पर त्रिपुरा में बसाने के लिए दिल्ली में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसके तहत 600 करोड़ रुपए का पैकेज दिया गया है.

समझौते के मुताबिक शरणार्थियों को एक आवासीय प्लॉट दिया जाएगा और परिवार के नाम पर चार लाख रुपए का फिक्स डिपाजिट किया जाएगा. साथ ही हर परिवार को मासिक पांच हजार रुपए की नकद सहायता दी जाएगी. यही नहीं, समझौते में अगले दो वर्षों मुफ्त राशन के अलावा मकान बनाने के लिए डेढ़ लाख रुपए देने का भी प्रावधान रखा गया है.

वैसे इससे पहले जुलाई, 2018 में भी दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की मौजूदगी में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लव देव और मिजोरम के मुख्यमंत्री ललथनहवला के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे. इस समझौते में ब्रू परिवारों के 30 हजार से ज्यादा लोगों के लिए 435 करोड़ रुपए का राहत पैकेज दिया गया था. लेकिन ज्यादातर विस्थापितों के मिजोरम वापसी से इंकार करने की वजह से यह समझौता लागू नहीं किया जा सका था.

Wahlen in Mazaram/Indien
असल चुनौती पुनर्वास समझौतों को जमीन पर लागू करना हैतस्वीर: ARINDAM DEY/AFP/Getty Images

ताजा विवाद

अब त्रिपुरा के कुछ संगठन ब्रू शरणार्थियों को स्थायी तौर पर बसाने का विरोध कर रहे हैं. नागरिक सुरक्षा मंच और मिजो कन्वेंशन ने पुनर्वास योजना के विरोध में जॉइंट एक्शन कमिटी (जेएसी) के बैनर तले मिजोरम सीमा से लगे कंचनपुर सब-डिवीजन में सोमवार से बेमियादी बंद शुरू किया है.

जेएसी के चेयरमैन डॉ. जाएकेमथियामा पछुआ कहते हैं, "स्थानीय प्रशासन ने पहले भरोसा दिया था कि महज डेढ़ हजार ब्रू परिवारों को ही यहां बसाया जाएगा. लेकिन अब वह छह हजार परिवारों को बसाने की योजना बना रहा है. इससे इलाके का माहौल और आबादी का संतुलन बिगड़ जाएगा. हम इसे स्वीकार नहीं कर सकते.”

जिला प्रशासन का कहना है कि राज्य के अलग-अलग जिलों में ब्रू शरणार्थियों को बसाने के लिए 15 जगहों की शिनाख्त की गई है.

उधर, शरणार्थियों के संगठन मिजोरम ब्रू डिस्प्लेस्ड पीपुल्स फोरम (एमबीडीपीएफ) ने हाल में स्थायी नागरिक और अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र जारी करने की मांग उठाई है. संगठन के महासचिव ब्रूनो मशा कहते हैं, "हमें स्थानीय संगठनों के आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं हैं. हमें भरोसा है कि सरकार समझौते के मुताबिक हमारे पुनर्वास के लिए जरूरी कदम उठाएगी.”

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि ब्रू शरणार्थियों का मुद्दा पहले से ही विवादास्पद और राजनीति से प्रेरित रहा है. समझौते के बावजूद जमीनी स्तर पर उसे लागू करना आसान नहीं होगा. एक पर्यवेक्षक सुनील कुमार देब कहते हैं, "इससे पहले भी ब्रू शरणार्थियों को वापस भेजने या उनके पुनर्वास के लिए समझौते हो चुके हैं. लेकिन उन्हें लागू नहीं किया जा सका. अब स्थानीय संगठनों के आंदोलन से मौजूदा समझौते पर भी गतिरोध के आसार पैदा हो गए हैं.”

____________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी