खत्म हो रहे हैं जर्मनी के ग्लेशियर
३० अप्रैल २०२१ऐल्प्स पर्वत श्रृंखला का जर्मन केंद्र दक्षिण में है. बावेरिया के पर्यावरण मंत्री थॉर्स्टन ग्लाउबर ने गुरुवार को कहा कि राज्य में ग्लेशियरों के दिन गिनती के बचे हैं. उन्होंने कहा, "बावेरिया का आखरी अल्पाइन ग्लेशियर दस साल में गायब हो सकता है.” इससे पहले वैज्ञानिकों ने अनुमान जाहिर किया था कि इस सदी के मध्य तक ग्लेशियर जर्मनी में बने रहेंगे. लेकिन पिछले कुछ सालों में उनके पिघलने में तेजी आई है.
बेर्खटेसगाडन ऐल्प्स के त्सुग्सपित्से इलाके में स्थित जर्मनी के पांच ग्लेशियर पिछले एक दशक में अपना करीब दो तिहाई हिस्सा खो चुके हैं. उनका क्षेत्रफल भी एक तिहाई यानी करीब 36 फुटबॉल मैदानों के बराबर कम हो चुका है. गंभीर चेतावनी जारी करते हुए ग्लाउबर ने कहा कि ग्लेशियर सिर्फ धरती के बर्फ से बने इतिहास के स्मारक नहीं हैं. उन्होंने कहा, "वे हमारे मौसम की स्थिति के थर्मामीटर हैं.”
बुधवार को जारी एक वैश्विक अध्ययन में कहा गया है कि दुनिया के लगभग सभी ग्लेशियर अपना भार खो रहे हैं और इसकी रफ्तार तेजी से बढ़ रही है. ऐसा होना इस सदी में समुद्र के जल स्तर में बढ़ोतरी के करीब 20 फीसदी के लिए जिम्मेदार है. नासा द्वारा ली गई तस्वीरों के अध्ययन के बाद शोधकर्ताओं की एक टीम ने पाया कि 2000 से 2019 के बीच दुनिया भर के हिमनदों से हर साल औसतन 267 अरब टन बर्फ पिघली है.
यह स्विट्जरलैंड को हर साल छह मीटर पानी के भीतर डुबोने के लिए काफी है. इसी अप्रैल में मौसमविज्ञानियों ने कहा था कि जर्मनी पिछले चार दशक में सबसे ठंडा रहा है. यूरोप के बाकी हिस्सों की तरह जर्मनी में भी मौसम में बड़े बदलाव देखे जा रहे हैं. सर्दी में फरवरी में जहां तापमान जीरो डिग्री से नीचे चला गया, वहीं 1 अप्रैल को 25.9 डिग्री तापमान दर्ज किया गया. लेकिन बाकी महीने तक तापमान में 15 डिग्री तक की कमी रही.
पर्यावरणविद इस तरह के उतार-चढ़ावों के लिए ग्लोबल वॉर्मिंग को जिम्मेदार मानते हैं और सरकारों से इसे रोकने के लिए कदम उठाने की मांग करते हैं. 2015 के पैरिस समझौते के तहत वैश्विक तापमान को दो डिग्री से ज्यादा न बढ़ने देने और 2050 तक इस वृद्धि को 1.5 फीसदी के करीब रखने की बात कही गई थी. गुरुवार को ही जर्मनी की संवैधानिक अदालत ने एक फैसले में सरकार की पर्यावरण सुरक्षा योजना को नाकाफी बताया था.
वीके/सीके (डीपीए, एपी)