दाइयों की कमी से मरते बच्चे
५ जून २०१४निचले और मध्यम दर्जे के आय वाले 73 देशों में सिर्फ चार में पर्याप्त संख्या में दाइयां मौजूद हैं, जो प्रसव के दौरान मदद करती हैं. ये हैं, आर्मेनिया, कोलंबिया, डोमिनिकन रिपब्लिक और जॉर्डन. ये आंकड़े संयुक्त राष्ट्र पॉपुलेशन फंड और विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में सामने आए हैं.
दाइयों के अंतरराष्ट्रीय संगठन इंटरनेशनल मिडवावव्स एसोसिएशन की अध्यक्ष फ्रांकेस डेस्टिर्क का कहना है, "तीन चौथाई देशों में दाइयों की भारी कमी है, जिसकी वजह से बच्चों और महिलाओं की मौत हो रही है." जानकारों का कहना है कि दाइयों को इस काम के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है. वे प्रसव के दौरान और उसके बाद बच्चों और उनकी मांओं को ज्यादातर सुविधा दे सकती हैं. यह उन जगहों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, जहां डॉक्टरों की कमी है.
पिछले साल 2013 में 26 लाख बच्चे मृत पैदा हुए, जबकि 30 लाख बच्चों ने पैदा होने के फौरन बाद दम तोड़ दिया. "दाइयों की वैश्विक स्थिति" नाम की रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से 92 फीसदी मामले इन्हीं देशों से थे.
इनमें भारत के अलावा चीन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और केंद्रीय अफ्रीकी गणराज्य, चाड, ग्वाटेमाला और मेक्सिको जैसे देश शामिल हैं. ज्यादातर देशों में बुनियादी ढांचे की कमी है और कई जगह तो दाइयों को प्रशिक्षण देने की सुविधा भी नहीं है. इस मामले में जरूरी आंकड़े जुटाना अलग चुनौती है.
संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या कोष से कार्यकारी निदेशक बाबाटुंडे ओसुटीमेहिन का कहना है, "महिलाओं और लड़कियों के मातृत्व और प्रजनन स्वास्थ्य अधिकार बहुत महत्वपूर्ण हैं." उनका कहना है कि उन्हें "गर्भधारण और प्रसव के बाद सम्मानजनक स्थिति चाहिए, जो कई देशों में नहीं" है. जानकारों का कहना है कि इसका आर्थिक पक्ष भी है. डेस्टिर्क मिसाल तौर पर कहती हैं कि इससे सिजेरियन ऑपरेशन में कमी आ सकती है और तीन दशक में लगभग 13 करोड़ डॉलर बचाए जा सकते हैं.
सिर्फ बांग्लादेश में कुछ सुधार होता दिख रहा है, जहां सरकार ने 2010 में 3000 दाइयों को ट्रेनिंग देने की पहल की. हालांकि इसके बाद भी वहां जन्म के दौरान कई बच्चों की मौत हो रही है.
एजेए/एएम (रॉयटर्स)