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समाज

दिल्ली हिंसा के जख्म गहरे हैं

३ मार्च २०२०

दिल्ली में दंगाइयों ने जो उपद्रव मचाया उसकी कहानी खौफनाक है, घंटों तक उपद्रवी तांडव मचाते रहे और लोग किसी तरह अपने मकान और दुकान बचाने की कोशिश में जुटे रहे लेकिन उनकी संख्या के आगे वे टिक नहीं पाए.

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Indien Fotoreportage aus Neu Delhi nach den Ausschreitungen
तस्वीर: DW/T. Godbole

पूर्वी दिल्ली में पिछले हफ्ते हुए दंगों में मारे गए 27 साल के राहुल सोलंकी घर से दूध लेने के लिए निकले थे लेकिन अचानक पत्थरबाजी होने लगी और अचानक एक गोली उसके गले में जा लगी. राहुल के आस-पास खड़े लोग तुरंत मौके से भाग गए. राहुल के पिता हरि सिंह सोलंकी कहते हैं, "राहुल का छोटा भाई और उसके मामा का बेटा उसे कई नर्सिंग होम लेकर गए लेकिन किसी ने भी फर्स्ट एड नहीं दिया. उस दौरान उसकी सांसें चल रही थीं, नर्सिंग होम वालों ने उसे दाखिल करने से इनकार कर दिया और अगर फर्स्ट एड उपचार देते तो मेरा बेटा बच जाता.” राहुल के पिता कहते हैं कि राहुल को लोनी के सामुदायिक केंद्र लेकर गए जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

हिंसा में दंगाइयों ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवान मोहम्मद अनीस का भी घर जला दिया. अनीस के घर वालों ने किसी तरह से भागकर जान बचाई थी. हिंसा के वक्त अनीस घर पर नहीं थे और उनके पिता ने उन्हें फोन कर इसकी सूचना दी थी. हिंसा की खबर मिलने के बाद उड़ीसा में तैनात अनीस खजूरी खास स्थित अपने घर लौटे तो घर को जला हुआ पाया. अनीस कहते हैं, "मैं फौज में हूं लेकिन फौज में हिंदू-मुसलमान नहीं होता है और ना ही किसी की जाति के बारे में पूछा जाता है. फौज में सब एक हैं और सब भारतीय हैं. अनीस कहते हैं, "भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता है और वह जब आती है तो किसी को नहीं छोड़ती है. भीड़ सिर्फ हिंसा करती है और सबकुछ खत्म कर देती है.” साथ ही अनीस ने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है. अनीस कहते हैं कि दंगों से किसी का फायदा नहीं होने वाला है और लोगों को भविष्य के बारे में सोचना चाहिए. बीएसएफ अनीस के घर की मरम्मत का काम कर रही है और उसका कहना है कि जल्द ही अनीस का घर रहने लायक हो जाएगा.

Indien Muslims in der Moschee New Delhi
तस्वीर: Reuters/A. Abidi

उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगाइयों ने मोहम्मद असलम का घर भी फूंक डाला था. असलम जब तक हिंसा की गंभीरता को समझ पाते तब तक बेकाबू भीड़ उनके दरवाजे थी और उसने घर पर तोड़-फोड़ और आगजनी शुरू कर दी. असलम बताते हैं, "मेरा घर जला दिया गया, घर पर जो पैसे और जेवर थे वह भी जला दिए गए.” असलम बताते हैं कि हमले से पहले तो आंसू गैसे के गोले की आवाज आ रही थी और झगड़ा दूसरी तरफ चल रहा था और दोनों तरफ से पथराव हो रहे थे. वे कहते हैं, "इसके बाद दंगाई हमारी तरफ आ गए और हमारे घरों और दुकानों को आग के हवाले कर दिया.”

इसी तरह से भजनपुरा में बेकरी चलाने वाले ज्ञानेंद्र कुमार कहते हैं कि वह कुछ लोगों के साथ अपनी बेकरी को बचाने में लगे हुए थे लेकिन एक समय में हजारों की भीड़ के बीच वह अपनी बेकरी बचाने में नाकाम रहे. वह कहते हैं, "मुझे अंदाजा नहीं था कि लोग इस तरह का तांडव मचाएंगे और बेकरी को आग के हवाले कर देंगे. मुझे लगा था कि लूटपाट होगी और भीड़ चली जाएगी लेकिन मेरी सोच गलत थी. भीड़ ने पहले दुकान लूटी और फिर इसमें आग लगा दी.”

दंगों के वक्त को याद करते हुए 46 साल की ऊषा बताती हैं कि जिस गली में वह रहती हैं वहां अचानक भीड़ आ गई और वह अपनी और बच्चों की जान बचाने के लिए सुरक्षित ठिकाने पर चली गई. ऊषा कहती हैं, "हमें नहीं पता कि वो कौन लोग थे, लेकिन वह इस गली के लोग नहीं थे, जो भी हमला करने वाले लोग थे वह बाहरी थे.” शिव विहार में एक कार पार्किंग को भी दंगाइयों ने आग के हवाले कर दिया था और उसमें 50 से 60 गाड़ियां जलकर खाक हो गई थीं. इसी पार्किंग के पास रहने वाले रियाज मलिक बताते हैं, "दोनों तरफ से पत्थरबाजी हो रही थी और उसी दौरान गाड़ियों में आगजनी हो गई.” रियाज यह नहीं बता पाए कि किन लोगों ने गाड़ियों को आग के हवाले किया.

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दिल्ली हिंसा की भयावह तस्वीरें