क्या भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा रही है?
९ जून २०२०भारत में तालाबंदी के अधिकतर प्रतिबंधों के हटा दिए जाने के साथ-साथ स्थिति एक अत्यंत चिंताजनक मोड़ की तरफ बढ़ती नजर आ रही है. एक तरफ रोज संक्रमण के हजारों नए मामले सामने आते जा रहे हैं और दूसरी तरफ अपनी सुरक्षा के लिए स्वास्थ्य व्यवस्था की तरफ देखने वाले आम लोगों को निराश होना पड़ रहा है. जिन्हें संक्रमित होने का शक है वो अपनी जांच नहीं करा पा रहे हैं और जो संक्रमित हो चुके हैं वो अस्पताल में भर्ती नहीं हो पा रहे हैं.
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में अभी तक कम से कम ऐसे तीन मामले सामने आ चुके हैं जिनमें तुरंत इलाज की जरूरत वाले मरीजों को एक के बाद एक कई अस्पतालों ने भर्ती करने से मना कर दिया और फिर उनकी मृत्यु हो गई. गाजियाबाद के खोड़ा में रहने वाली एक 48 वर्षीय महिला को सांस लेने में बहुत तकलीफ हो रही थी. उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने के लिए दो दिन तक उन्हें उनके परिवार वालों को दिल्ली, नोएडा और गाजियाबाद के कम से कम नौ अस्पतालों के चक्कर काटने पड़े. अंत में मेरठ मेडिकल कॉलेज में जांच के दौरान उनकी मृत्यु हो गई.
इसके पहले नोएडा से एक महिला जो आठ महीने की गर्भवती थीं और एक नवजात बच्चे की भी इसी तरह एक के बाद एक कई अस्पतालों में जगह ना मिल पाने के बाद मृत्यु हो गई. दिल्ली के रहने वाले एक 42 साल के पुरुष को भी इसी तरह जब पांच अस्पतालों ने भर्ती करने से मना कर दिया तो वो ट्रेन से भोपाल चले गए. वहां उन्हें एक अस्पताल में जगह तो मिल गई लेकिन इलाज के बीच में ही उसकी मृत्यु हो गई.
ट्विटर पर इस तरह के संदेशों की भरमार है जिनमें अस्पतालों द्वारा ठुकराए गए लोग सरकारी अधिकारियों के हैंडलों को टैग करके मदद की गुहार लगा रहे हैं.
कुछ की मदद हो पा रही है तो कइयों की मदद नहीं भी हो पा रही है.
कई लोगों जांच से ले कर इलाज तक कदम कदम पर असहाय महसूस कर रहे हैं लेकिन उन्हें कोई मदद नहीं मिल पा रही है.
बताया जा रहा है कि यही हाल लगभग सभी बड़े शहरों का है. मीडिया में आई खबरों के मुताबिक मुंबई में तो 99 प्रतिशत आईसीयू के बिस्तर भर चुके हैं और 94 प्रतिशत वेंटीलेटर इस्तेमाल में हैं. अहमदाबाद और बेंगलुरु जैसे शहरों से भी ऐसी ही खबरें आ रही हैं. सवाल यह है कि क्या तालाबंदी के इन ढाई महीनों का इस्तेमाल देश में स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने में नहीं हुआ?
ये कहना मुश्किल है क्योंकि अभी तक ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई है जिससे राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के आंकड़े मिल सकें. हां, नीति आयोग की 11 मई की एक रिपोर्ट जरूर उपलब्ध है जो कहती है कि कोविड-19 से लड़ाई में संस्थागत इंफ्रास्ट्रक्चर देश की एक कमजोरी है. रिपोर्ट के अनुसार उस समय देश में हर 1,445 मरीजों पर एक डॉक्टर था, हर 1,000 लोगों पर अस्पतालों में सात बिस्तर और 130 करोड़ की आबादी के लिए सिर्फ 40,000 वेंटीलेटर.
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