पत्थर मारकर मौत की सज़ा
७ जुलाई २०१०सारी दुनिया में इस वहशियाने फ़ैसले की निंदा की जा रही है. सोमवार को ही नार्वे के विदेश मंत्रालय में ईरान के राजदूत को तलब करते हुए इस फ़ैसले का विरोध किया गया था. 43 वर्षीय महिला साकिने मोहम्मदी अश्तियानी को व्यभिचार के इसी आरोप के तहत 99 कोड़ों की सज़ा दी गई थी. कोड़ों की मार को सहते हुए उसने यह अपराध स्वीकार कर लिया था. अब ईरान के शरिया अदालत का फ़ैसला है कि उसे सीने तक ज़मीन में गाड़कर पत्थर मार-मार कर मौत के घाट उतारा जाए. ऐम्नेस्टी इंटरनेशनल की ओर से ध्यान दिलाया गया है कि इस हैवानी सज़ा में पत्थर इतने बड़े होते हैं कि चोट तो लगे, लेकिन तुरंत मौत न हो जाए. कहा जा रहा है कि यह इस्लाम के मुताबिक है.
तेहरान से एक टेलिफ़ोन इंटरव्यू में मानव अधिकार संघर्षकर्ता और अश्तियानी के वकील मोहम्मद मोस्ताफ़ाई ने ध्यान दिलाया है कि कोड़ों की तकलीफ़ के चलते अभियुक्त ने आरोप को स्वीकार कर लिया था. लेकिन बाद में वह इस बयान से मुकर गई थी. उसके तथाकथित मुकदमे में कोई गवाह नहीं पेश किया गया था. मोस्ताफ़ाई ने बताया कि पांच में से केवल तीन जजों ने मोहम्मदी अश्तियानी को मुजरिम माना. इसके बाद उसने अदालत से रहम की अपील की थी, जिसे जजों ने ठुकरा दिया. अश्तियानी अज़रबैजानी मूल की हैं और वे फ़ारसी नहीं, तुर्क भाषा बोलती हैं. मोस्ताफ़ाई की राय में इस वजह से भी अदालत की कार्रवाई काफ़ी हद तक उनकी समझ से बाहर थी.
सन 2007 में ईरान के सुप्रीम कोर्ट में भी उसकी याचिका ठुकरा दी गई. पत्थर मारने व मौत की सज़ा के ख़िलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय समिति की प्रधान मीना अहदी ने रविवार को बताया कि अदालत की सारी प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और मोहम्मदी अश्तियानी को किसी भी वक्त सज़ा दी जा सकती है.
इस वर्ष 6 जून तक ईरान में 126 लोगों को फ़ांसी दी जा चुकी है. जहां तक पत्थर मारकर मौत के घाट उतारने की बात है तो ऐम्नेस्टी की एक रिपोर्ट में ध्यान दिलाया गया है कि ऐसी सज़ा ख़ासकर महिलाओं को दी जाती है.
रिपोर्ट: उज्ज्वल भट्टाचार्य
संपादन: निखिल रंजन