पूरा हुआ अंतरिक्ष यात्री बनने का सपना
५ फ़रवरी २०१०समांथा कहती हैं कि बचपन से ही उनका सपना अंतरिक्ष यात्री बनने का था. लेकिन समांथा ने यह नहीं सोचा था कि उनका यह सपना कभी हक़ीक़त में बदल जाएगा. इटली की समांथा ने जर्मन शहर म्यूनिख, फ़्रांस के शहर टुलूस और रूस की राजधानी मॉस्को में अंतरिक्ष और विमानन इंजीनियरिंग की पढाई की.
इसके बाद वह लड़ाकू विमान की पाइलट बनीं. 2008 में यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने इंटरनेट के ज़रिए अंतरिक्ष यात्री ढूंढ़े और समांथा की नज़र भी इस विज्ञापन पर पड़ी. पूरा एक महीना उन्होने फ़ॉर्म भरने में लगाया क्योंकि वह सब बेहतरीन तरीक़े से करना चाहती थीं.
मेरे लिए इस फ़ॉर्म को अच्छे तरीक़े से भरना इसलिए भी इतना ज़रूरी था क्योंकि जिन 8,000 लोगों ने फ़ॉर्म भरा था, उनमें से सिर्फ 1,000 लोगों को अगले राउंड के लिए आमंत्रित किया गया.
समांथा बतातीं हैं, कि आदर्श अंतरिक्ष यात्री में किस तरह के गुण होने चाहिए. इंजीनीयरिंग की पढाई बेहद ज़रूरी है. साथ ही उसे कई भाषाएं भी आनी चाहिए क्योंकि उसे एक अंतरराष्ट्रीय टीम में काम करना होता है. उसमें दूसरों के लिए जिम्मेदारी लेने और ख़ुद फैसले लेने की क्षमता होनी चाहिए. साथ ही मुश्किल परिस्थितियों में तनाव सहने और ठंडे दिमाग़ से काम करने की क्षमता भी ज़रूरी है. इसके अलावा शारीरिक तौर पर फ़िट होना बहुत अहम है.
इतनी सारी शर्तों की वजह से अंतरिक्ष यात्रियों के बारे में कहा जाता है कि शायद उनका काम दुनिया के सबसे मुश्किल, लेकिन सबसे आकर्षक भी तो है. समांथा युवा अंतरिक्ष यात्रियों के बीच इकलौती महिला हैं. लेकिन वह अपने लिए जगह बनाना जानती हैं. उन्हे पता है कि शायद ज़्यादा मेहनत और लगन के साथ काम करने की ज़रूरत है और ज़्यादा आत्मविश्वास से भरा होना भी इस पुरुष प्रधान क्षेत्र में फ़ायदेमंद ही होगा. समांथा खुद इटली की हैं, उनके साथी हैं डेनमार्क, फ़्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी और इटली से हैं.
हमारे बीच भाषा या संस्कृति को लेकर कोई सीमाएं नहीं हैं. या तो हम आपस में अंग्रेज़ी में बात करते हैं या किसी और ऐसी भाषा में जो हम जानते हों.
समांथा खुद 5 भाषाएं जानतीं हैं. ट्रेनिंग के वक्त ही पता चलेगा कि समांथा के अंदर वह सभी गुण हैं जो एक मिशन के लिए ज़रूरी हैं. समांथा कहतीं हैं कि उन्हें पता है कि बहुत धीरज की ज़रूरत है.
यदि महिला अंतरिक्ष यात्रियों की बात हो रही हो, तब कल्पना चावला को नहीं भुलाया जा सकता. वह अतंरिक्ष में भारतीय मूल की पहली महिला थीं. 2003 में अमेरिकी कोलंबिया शट्ल यान के नष्ट होने के साथ, कल्पना और उनके सभी साथियों की मौत हो गई.
हरियाणा के करनाल शहर में पली बढ़ी कल्पना ने जब 80 के दशक में चंदीगढ़ में विमानन इंजीनीयरिंग की पढाई की तब वह वहां इकलौती महिला थीं. उन्होंने यह फैसला अपने पिता की इच्छा के ख़िलाफ़ लिया, जो इसे अपने रुढिवादी समाज में एक महिला के लिए सही नहीं मानते थे.
कल्पना आत्मविश्वास से भरी थीं, लेकिन अमोरिका में अपनी पढाई को आगे बढाने और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा में अपनी करियर की शुरुआत करने के साथ वे अपनी भारतीय विरासत को नहीं भूलीं. वे धार्मिक थीं, और शाकाहारी भी.
शायद इसलिए उन्हें आज तक, उनकी मृत्यु के इतने साल बाद भी बहुत प्रेम और सम्मान के साथ याद किया जाता है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो ने एक मौसम सैटलाईट का नाम मैटसैट-1 से कल्पना-1 रखा और एक ऐस्टरॉयड का नाम भी कल्पना चावला रखा गया है.
किताबें पढ़ना,अलग देशों की यात्रा करना और ख़ुद विमान चलाना कल्पना के शौक़ थे. 5 फ़ुट क़द वाली कल्पना अंतरिक्ष यात्री बनने के लिए काफ़ी छोटी थीं लेकिन लेकिन अपने संघर्ष और ज़बरदस्त प्रतिभा की वजह से वह 1994 में अंतरिक्ष यात्री बनीं और 1997 में पहली बार एक मिशन का हिस्सा. हालांकि अपने क़द की वजह से कल्पना बाहर नहीं जा पाती थीं. वे हमेशा शट्ल के अंदर ही रहकर अलग प्रयोग करती थीं. 2003 में कोलंबिया शट्ल 16 दिन अंतरिक्ष में रहने के बाद जब लौट रहा था तो घने वायुमंडल में प्रवेश करते समय तापरोधी टाईल टूट जाने से उसमें आग लग गई थी.
रिपोर्ट: प्रिया एसेलबोर्न
संपादन: एस गौड़