1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

पूर्वोत्तर में दुधारी तलवार पर चलते पत्रकार

प्रभाकर मणि तिवारी
१९ नवम्बर २०२०

अस्सी और नब्बे के दशक में उनको जहां उग्रवादी संगठनों और सुरक्षा बलों की दोहरी चक्की में पिसना पड़ता था वहीं अब उनकी जगह राजनीतिक दलों और राजनेताओं की शह पर फलने-फूलने वाले असामाजिक तत्वों ने ले ली है. 

https://p.dw.com/p/3lZxE
Indien, Dhaka: Journalisten halten Banner und Plakate, während sie vor dem Presseclub gegen das kürzlich verabschiedete Gesetz zur digitalen Sicherheit protestieren
तस्वीर: Reuters/M. Ponir Hossain

इलाके के विभिन्न राज्यों में हर महीने पत्रकारों के उत्पीड़न, मार-पीट औऱ हत्या की कोई न कोई घटना होती रहती है. यह बात दीगर है कि एकाध गंभीर मामलों के अलावा इनकी गूंज दिल्ली या देश के दूसरे हिस्सों तक नहीं पहुंच पाती. ऐसी तमाम घटनाएं इलाके में घटती हैं और यहीं दम तोड़ देती हैं. ताजा मामले में असम में एक पत्रकार को जुए के अवैध ठिकाने चलाने वालों और भू-माफिया के खिलाफ लिखने की वजह से खंभे में बांध कर पीटा गया तो त्रिपुरा में सरकारी घोटाले की खबर छापने पर कथित बीजेपी कार्यकर्ताओं ने एक अखबार की छह हजार प्रतियां फाड़ और जला दीं. त्रिपुरा में पत्रकारों पर हमले और उनकी हत्या की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं.

इससे पहले असम में पराग भुइयां नामक एक पत्रकार को उसके घर के सामने ही कार से कुचल कर मार दिया गया. संपादक स्तर के पत्रकार भी उत्पीड़न से अछूते नहीं हैं. इस मामले में मेघालय की राजधानी से निकलने वाले शिलांग टाइम्स की संपादक और वरिष्ठ पत्रकार पैट्रिशिया मुखिम की मिसाल है. उन्होंने भेदभाव का आरोप लगाते हुए एडिटर्स गिल्ड आफ इंडिया से इस्तीफा दे दिया है. पैट्रिशिया पर अपने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए दो समुदायों के बीच सांप्रदायिक तनाव भड़काने के आरोप में मामला दर्ज किया गया है. उत्पीड़न के बढ़ते मामलों को ध्यान में रखते हुए इलाके के तमाम पत्रकार संगठनों ने सरकार से पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कड़ा कानून बनाने की मांग की है और इसके समर्थन में आंदोलन का एलान किया है.

ताजा मामला

असम की राजधानी से गुवाहाटी से महज 35 किमी दूर मिर्जा में मिलन महंत नामक एक युवा पत्रकार को सरेआम खंभे से बांध कर पीटा गया. उसका कसूर यह था कि उसने इलाके में चलने वाले जुए के अवैध ठिकानों और जमीन पर कब्जा करने वालों के बारे में खबरें छापी थीं. महंत असम के प्रमुख असमिया दैनिक प्रतिदिन में काम करते हैं. उनको गंभीर चोटें आई हैं और वह फिलहाल अस्पताल में भर्ती हैं. महंत बताते हैं, "मेरी खबरों ने इलाके के गुंडों को नाराज कर दिया था. वह लोग जुआ खेलने के अलावा जमीन पर कब्जा करने जैसी गतिविधियों में भी शामिल हैं. मुझ पर हमला सुनियोजित था. हमलावर कह रहे थे कि खबरें लिखने से उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा.”

इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद सरकार औऱ पत्रकार संगठन हरकत में आए. मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने इस घटना की जांच का आदेश दिया है. मुख्यमंत्री सोनोवाल ने पत्रकारों से कहा है कि उन्होंने पुलिस को इस मामले में कड़ी कार्रवाई का निर्देश दिया है. तमाम अभियुक्तों को शीघ्र गिरफ्तार कर लिया जाएगा. इस मामले में अब तक एक अभियुक्त को गिरफ्तार किया गया है और बाकी की तलाश की जा रही है. लेकिन पत्रकार संगठनों का आरोप है कि राज्य में पत्रकारों पर हमले की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. इन संगठनों ने हमले के विरोध में बुधवार को राजधानी में प्रदर्शन भी किया.

पत्रकारों पर बढ़ते हमले

गुवाहाटी प्रेस क्लब के अध्यक्ष मंजू नाथ कहते हैं, "महंत पर हमले के मामले को गंभीरता से लिया जाना चाहिए. राज्य में पत्रकारों पर बढ़ते हमले बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हैं. अगर यह जारी रहा तो कोई काम कैसे कर सकता है?” वरिष्ठ पत्रकार राजीव भट्टाचार्य का कहना है, "राज्य में पत्रकारों को सुरक्षा औऱ न्याय मुहैया कराना जरूरी है. पुलिस को ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए.” असम विधानसभा में विपक्ष के नेता देबब्रत सैकिया कहते हैं, "बीजेपी के सत्ता में आने के बाद मीडिया संगठनों व पत्रकारों पर हमले की घटनाएं बढ़ गई हैं. दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए. गौरी लंकेश का मामला हो या मिलन महंत का, हमले का तरीका एक जैसा है.”

इससे पहले ऊपरी असम में एक पत्रकार पराग भुइयां की कुछ लोगों ने उनके घर के सामने ही कार से कुचल कर हत्या कर दी थी. राज्य के पत्रकार संगठन इस मामले की सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं. जिस कार ने उनको टक्कर मारी थी उसके ड्राइवर समेत दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है. लेकिन पत्रकारो का दावा है कि इसमें स्थानीय बीजेपी नेताओं का हाथ है जो भुइय़ां की खबरों से नाराज थे.

त्रिपुरा में भी स्थिति गंभीर

हाल में ही त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में एक स्थानीय बांग्ला अखबार प्रतिवादी कलम की सभी छह हजार प्रतियां छीन कर जला दी गई थीं. इसमें बीजेपी कार्यकर्ताओं का हाथ बताया गया है. अखबार के संपादक अनल राय चौधरी कहते हैं, "हमने कृषि विभाग में डेढ़ सौ करोड़ के घोटाले पर सिलसिलेवार खबरें छापी थीं. इससे विभागीय मंत्री और निदेशक नाराज थे. इसी वजह से बीजेपी कार्यकर्ताओं ने अखबार की प्रतियां छीन कर फाड़ा औऱ जला दिया ताकि वह पाठकों तक नहीं पहुंच सके.”

पुलिस ने इस मामले में बीजेपी कार्यकर्ताओं समेत सात लोगों को गिरफ्तार किया था. लेकिन एक स्थानीय अदालत ने सबको अगले दिन ही जमानत पर रिहा कर दिया. त्रिपुरा के तमाम पत्रकार संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर पत्रकारों पर हमले नहीं थमे तो अगले सप्ताह से बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू किया जाएगा.

गिल्ड पर भेदभाव का आरोप

मेघालय में शिलांग टाइम्स की संपादक और वरिष्ठ पत्रकार पैट्रिशिया मुखिम का मामला भी ताजा है. उन्होंने भेदभाव का आरोप लगाते हुए एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया से इस्तीफा दे दिया है. मुखिम कहती हैं, "एडिटर्स गिल्ड ने उनके मामले पर चुप्पी साधे रखी जबकि गिल्ड का सदस्य न होने के बावजूद अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी की निंदा करते हुए बयान जारी किया गया. पत्रकारों की शीर्ष संस्था एडिटर्स गिल्ड सिर्फ सेलिब्रिटी पत्रकारों का ही बचाव करती है.”

मुखिम ने राज्य में गैर-आदिवासी छात्रों पर हुए हमले को लेकर एक फेसबुक पोस्ट लिखी थी. उसके बाद उनके खिलाफ सांप्रदायिक तनाव भड़काने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी. इस साल जुलाई में एक बास्केटबॉल कोर्ट में पांच लड़कों पर हमला हुआ था. हत्यारों का पता नहीं चलने के बाद मुखिम ने फेसबुक पोस्ट के जरिए इसकी आलोचना की थी. बीते 10 नवंबर को मेघालय  हाईकोर्ट ने मुखिम की फेसबुक पोस्ट के खिलाफ पुलिस में दर्ज शिकायत रद्द करने से मना कर दिया था. लेकिन मुखिम ने अब इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का मन बनाया है.

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore