पूर्वोत्तर राज्यों में आधार कार्ड पर क्यों है भ्रम?
२१ दिसम्बर २०१७असम में नागरिकता रजिस्टर को अपडेट करने की प्रक्रिया के चलते महज साढ़े सात फीसदी आबादी का ही आधार कार्ड बन सका है. यहां बीजेपी की ही सरकार है. पड़ोसी मेघालय में यह आंकड़ा 14.3 फीसदी है. सुप्रीम कोर्ट आधार को बाकी सेवाओं से जोड़ने के लिए 31 मार्च तक मोहलत दे चुका है. लेकिन तब तक इन दोनों राज्यों में सबके पास आधार पहुंचना संभव नहीं है. मेघालय के मुख्यमंत्री मुकुल संगमा ने केंद्र सरकार पर आधार कार्ड को लेकर भ्रामक स्थिति पैदा करने का आरोप लगाया है.
असम की समस्या
असम में नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस (एनआरसी) यानी नागरिकों के रजिस्टर को अपडेट करने की प्रक्रिया जारी रहने की वजह से आधार कार्ड बनाने का काम ठप है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद विभिन्न मंत्रालयों, सरकारी एजेंसियों और बैंकों ने आधार को अनिवार्य जरूर बना दिया है. लेकिन राज्य में इस महीने ही आधार कार्ड बनाने की प्रक्रिया नए सिरे से शुरू होने वाली है. ऊपर से सरकार ने यह काम निजी एजंसियों को नहीं सौंपने का फैसला किया है. इससे इस प्रक्रिया में और एक महीने देरी की आशंका है.
दरअसल, सरकार ने पहले एनआरसी को अपडेट करने के बाद इसके रिकॉर्ड को आधार के डाटाबेस से जोड़ने के बाद असम में औपचारिक रूप से आधार कार्ड शुरू करने का फैसला किया था. बीते साल गोलाघाट, नगांव और शोणितपुर जिलों में परीक्षण के तौर पर आधार कार्ड बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई थी. लेकिन उसे दिसंबर, 2016 में रोक दिया गया. इसका खमियाजा राज्य से बाहर पढ़ने वाले छात्रों को भुगतना पड़ा. उनको स्कालरशिप से लेकर बैंक खाते खोलने तक में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए सरकार ने एनआरसी की कवायद से आधार कार्ड को जोड़े बिना उसे शुरू करने का फैसला किया.
पहले राज्य सरकार को डर था कि कहीं आधार कार्ड हासिल करने वाले घुसपैठिए नागरिकता का दावा ना करने लगें. लेकिन केंद्र ने साफ कर दिया कि आधार महज आवास प्रमाणपत्र है, नागरिकता प्रमाणपत्र नहीं. उसके बाद असम सरकार ने इस प्रक्रिया को दोबारा शुरू करने का फैसला किया. अब अगले साल तक पूरे राज्य को आधार के दायरे में शामिल करने के लिए सरकार ने एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया है.
इसके लिए पूरे राज्य में साढ़े सात हजार स्थायी और ढाई हजार मोबाइल केंद्र स्थापित किए जाएंगे. इसबीच, केंद्र ने निजी एजेंसियों को आधार कार्ड बनाने की कवायद से दूर रखने का फैसला किया है. सरकारी सूत्रों का कहना है कि आधार की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं. उन पर 17 जनवरी से सुनवाई होनी है.
मेघालय में भी भ्रम की स्थिति
असम के पड़ोसी मेघालय के मुख्यमंत्री मुकुल संगमा का दावा है कि राज्य में आधार अनिवार्य नहीं है. उन्हंने आधार कार्ड को लेकर फैले भ्रम को दूर करने के लिए बैंकों के तमाम अधिकारियों की एक बैठक बुलाई है. विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान मुख्यमंत्री ने सदन में कहा था कि राज्य के लोगों के लिए आधार कार्ड स्वैच्छिक है, अनिवार्य नहीं. वह कहते हैं, "पूर्वोत्तर इलाके की समस्याएं देश के बाकी हिस्सों के मुकाबले भिन्न हैं. यह इलाका लंबे अरसे से उग्रवाद और घुसपैठ की समस्या से जूझ रहा है. यहां आधार कार्ड अनिवार्य नहीं होना चाहिए."
खासी छात्र संघ समेत विभिन्न सामाजिक व गैर-सरकारी संगठनों को लेकर गठित मेघालय पीपुल्स कमेटी ऑन आधार ने हाल में राज्य में ‘आधार से बाहर निकलो' अभियान भी चलाया था. इसके तहत आधार कार्ड हासिल कर चुके सैकड़ों लोगों ने इससे बाहर निकलने के लिए एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया था.
मुख्यमंत्री मुकुल संगमा केंद्र सरकार पर आधार कार्ड पर भ्रम फैलाने का भी आरोप लगाते हैं. उनका कहना है कि केंद्र सरकार एक पत्र में तो कहती है कि आधार अनिवार्य नहीं है. लेकिन दूसरी ओर, तमाम मंत्रालय इसे अनिवार्य बताते हुए अधिसूचनाएं जारी कर रहे हैं. राज्य सरकार की दलील है कि केंद्र को इस इलाके की अलग समस्याओं को ध्यान में रखते हुए यहां आधार को अनिवार्य नहीं बनाना चाहिए. यहां अंतरराष्ट्रीय सीमा से घुसपैठ जारी है और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) को भी अपडेट नहीं किया गया है. ऐसे में आधार कार्ड के घुसपैठियों के हाथों में जाने का भी गंभीर खतरा है.
भ्रामक स्थिति
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि आधार कार्ड को लेकर पूर्वोत्तर के खासकर असम और मेघालय में शुरू से ही भ्रामक स्थिति रही है. शैक्षणिक संस्थानों में दाखिलों से लेकर स्कालरशिप और बैंक खातों के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य करने की वजह से राज्य से बाहर जाने वालों को काफी समस्याएं झेलनी पड़ रही हैं. इसे देखते हुए ही खास कर मेघालय सरकार आधार को स्वैच्छिक बनाने की मांग कर रही है.
दूसरी ओर, असम में एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया और इससे उपजे विवादों के चलते आधार कार्ड बनाने की कवायद ठप रही थी. इसे इसी दिसंबर में दोबारा शुरू होना है. लेकिन विभिन्न जटिलताओं और कानूनी उलझनों की वजह से यह अब तक दोबारा शुरू नहीं हो सकी है. मौजूदा परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए इन दोनों राज्यों में आधार को लेकर उपजे विवाद के निकट भविष्य में हल होने की उम्मीद कम ही है.
रिपोर्टः प्रभाकर