बलात्कार कांड में मुकदमा शुरू
५ जनवरी २०१३
मजिस्ट्रेट नमृता अग्रवाल ने बलात्कार और हत्या के मामले को सुना. अतिरिक्त सरकारी वकील राजीव मोहन ने अदालत से कहा, "हमने सारे सबूत पेश कर दिए हैं." जज नमिता अग्रवाल ने कहा, "वे (आरोपी) सोमवार को अदालत में पेश होंगे."
छह आरोपियों में से एक नाबालिग है. पांच की उम्र 19 से 35 साल के बीच है. मुकदमा फास्ट ट्रैक अदालत में चलेगा. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश पहले ही यह साफ कह चुके हैं कि अदालत की कार्रवाई में कोई शार्ट कट नहीं अपनाया जाना चाहिए.
अदालत से अभियोजन पक्ष ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ पक्के फॉरेंसिक सबूत हैं. अभियोजन पक्ष के वकील राजीव मोहन ने कहा, "आरोपियों के कपड़ों पर मिले खून के धब्बे पीड़ित के खून से मेल खा रहे हैं." पुलिस डीएनए टेस्ट करवा चुकी है. पुलिस ने छात्रा और उसके मित्र से लूटी गई चीजें भी बरामद कर ली है.
उधर बलात्कार की घटना के बाद पहली बार पीड़ित परिवार और छात्रा का मित्र मीडिया के सामने आया है. सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई छात्रा के मित्र का आरोप है कि 16 दिसंबर की रात घटनास्थल पर पहुंची पुलिस फौरन मदद करने के बजाए थाना क्षेत्र की बहस करने लगी. छात्रा का मित्र 16 दिसंबर की रात हुई घटना का एक मात्र चश्मदीद गवाह है. वारदात वाली रात का जिक्र करते हुए उसने कहा कि पुलिस करीब 30 मिनट बाद आई. आने के बाद भी पुलिस के अधिकारी आपस में यही बहस करते रहे कि दोनों पीड़ितों को कहां ले जाया जाए.
निजी समाचार चैनल जी न्यूज से युवक ने कहा, "हम पुलिस पर चीखते रहे कि कृपया हमें कुछ कपड़े दे दीजिए लेकिन वे यही बहस करते रहे कि मामला कौन से पुलिस स्टेशन में दर्ज होगा." युवक के मुताबिक करीब एक घंटे तक वह और छात्रा सड़क पर पड़े रहे लेकिन किसी ने मदद नहीं की.
छात्रा के भाई से समाचार एजेंसी पीटीआई ने बात की. भाई के मुताबिक लड़की और उसका मित्र बहुत देर तक निर्वस्त्र हालात में सड़क पर पड़े रहे. इस दौरान वहां से कई लोग गुजरे लेकिन किसी ने उनकी मदद नहीं की. भाई के मुताबिक मौत से पहले उसकी बहन ने बताया कि कारों में सवार लोग घटनास्थल पर कुछ हल्के से रुके और फिर आगे बढ़ गए. राहगीरों ने भी मदद नहीं की. भाई का कहना है कि छात्रा को बहुत देर में अस्पताल पहुंचाया गया, तब तक काफी खून बह चुका था.
दिल्ली पुलिस ने छात्रा के मित्र के आरोपों का खंडन किया है. दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता राजन भगत ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा कि जीपीएस रिकॉर्ड से साफ पता चलता है कि जानकारी मिलने के चार मिनट बाद ही पुलिस की पहली वैन घटनास्थल पर पहुंच चुकी थी. भगत के मुताबिक छात्रा और उसके मित्र को 24 मिनट के भीतर अस्पताल पहुंचाया गया था.
जी न्यूज पर यह इंटरव्यू प्रसारित होने के बाद दिल्ली पुलिस की खासी आलोचना हो रही है. सामाजिक कार्यकर्ता उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की मांग कर रहे हैं जो 16 दिसंबर की रात ड्यूटी पर थे. दिल्ली पुलिस की पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी के मुताबिक मौके पर पहुंचे पुलिसकर्मी खुद एफआईआर दर्ज कर सकते थे. ऐसा कोई नियम नहीं है जो यह कहता है कि रिपोर्ट अमुक पुलिस स्टेशन में ही दर्ज होगी. पुलिस के रुख से नाराज बेदी कहती हैं, "यह आए दिन हो रहा है. इसी वजह से पुलिस से लोगों का भरोसा उठ गया है. ऐसी हरकतें लंबे समय से जारी है और अब पकड़ में आ रही है. ऐसा कोई नियम नहीं है जो पुलिस को एफआईआर दर्ज करने से रोके. यह एक स्टेशन में दर्ज हो सकती है और फिर इसे ट्रांसफर भी किया जा सकता है."
भारत में पुलिस सुधार की मांग लंबे समय से की जा रही है. दरअसल जिस पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज होती है वहां मामले की जांच कुछ पुलिसकर्मी करते हैं. इन्हीं पुलिसकर्मियों को हर सुनवाई के लिए अदालत जाना होता है. कई साल तक हर सुनवाई में सारे सबूतों के साथ अदालत के चक्कर लगाने पड़ते हैं. अगर पुलिसकर्मी रिटायर भी हो जाए तो भी उसे सुनवाई में जाना होगा. कई मामले निचली अदालत से हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच जाते हैं और हर बार पुलिस वालों को सुनवाई में जाना पड़ता है. यह भी एक बड़ी वजह है कि अक्सर पुलिसकर्मी मामलों को टालने, दूसरे थानों के मत्थे मढ़ने या समझौता कराने की कोशिश करते हैं. भारत के केंद्र शासित प्रदेशों में वह केंद्र सरकार के अधीन है और राज्यों में राज्य सरकार के नियंत्रण में है.
ओएसजे/एमजे (रॉयटर्स, पीटीआई, एएफपी)