ब्रेक्जिट, एएफडी वाली घटिया 'पॉपुलिस्ट' राजनीति
११ जुलाई २०१६ग्रेट ब्रिटेन ने दिखा दिया है कि नाइजेल फराज और बोरिस जॉनसन जैसे फर्जी पॉपुलिस्ट उन बिगड़े हुए बच्चों से बहुत अलग नहीं हैं, जो दूसरे बच्चों के खिलौने छीन कर सब कुछ तोड़ फोड़ देते हैं. उसके बाद वे अगले खेल के मैदान में बढ़ जाते हैं ताकि वहां भी ऐसी ही तबाही फैला सकें.
जर्मनी के अंदर देखें तो अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) के दो नेताओं - फ्राउके पेट्री और यॉर्ग मॉयथेन - के बीच के झगड़े से पता चलता है कि यह पार्टी दंभ से भरे झक्की लोगों से भरी हुई है, जिसमें एक टीम के तौर पर काम करने की क्षमता ही नहीं है. इन सभी को केवल यही सिद्ध करना है कि वे सही हैं और केवल उनकी ही चले.
राजनीतिज्ञों को यह बात समझनी होगी कि वे चाहे जितना भी लड़ें लेकिन लड़ाई न्यायोचित होनी चाहिए. यह कोई नेटफ्लिक्स पर दिखाई जाने वाली "हाउस ऑफ कार्ड्स" सीरीज नहीं है, जिसमें अमेरिकी राजनीति के दांव पेंच दिखाए जाते हैं.
समझौता करने की क्षमता
क्या ऐसे लोगों को सार्वजनिक रूप से समाज कल्याण या ईयू की एकता जैसे मुद्दों पर बहस करनी चाहिए? क्या जरूरत पड़ने पर ये किसी समझौते पर पहुंच सकते हैं? क्या इन्होंने अपने फैसलों के होने वाले संभावित दीर्घकालीन असर के बारे में विचार किया है?
चांसलर अंगेला मैर्केल का वो आंकलन गलत निकला, जब उन्होंने बिना बाकी ईयू देशों से सहमति किए जर्मनी की सीमाओं को शरणार्थियों के लिए खोल दिया. इसका नतीजा दूसरे ईयू देशों के साथ खीज भरे संबंधों के रूप में सामने आया है. लेकिन मैर्केल अपनी गलतियों से भी सीख लेने की क्षमता रखती हैं. ब्रेक्जिट रेफरेंडम के बाद उन्होंने पोलिश नेताओं से बातचीत करने में देर नहीं की और वॉरसॉ में उनका स्वागत मुसकान के साथ किया गया.
हमें अपने लिए कैसे नेता चाहिए?
व्यावहारिक पावर पॉलिटिक्स अक्सर बहुत चालाकी से की जाती है, लेकिन वो अक्सर उन लोगों तक नहीं पहुंच पाती जिन्हें लुभाए जाने की जरूरत है. ये ऐसे लोग हैं जिन्हें आसान और चरम समाधान देने वालों की बातें समझ आती हैं. इसी कारण से यूरोपीय संघ में कई गतिरोध पैदा हुए हैं और ब्लॉक का विरोध करने वाले कई राष्ट्रवादी दलों में उभार आया है.
ऐसे आदर्श किस्म के नेता अपने आप को मजबूत, कार्यभार संभालने वाले और दूसरों को प्रतिनिधी बनाने में भी सक्षम दिखाते हैं. लेकिन एक ही पार्टी में ऐसे कई सारे लोग होने से जैसा आतंरिक शक्ति परीक्षण होता है, वो आज एएफडी में होता दिख रहा है.
सबसे अच्छे नेता समझौतों और वास्तविक अधिकारों के माध्यम से शासन करते हैं. वे खबर रखते हैं कि लोग क्या चाहते हैं और उसके हिसाब से अपनी नीतियों में बदलाव भी करते हैं. इस तरह वे भी लोकलुभावनवाद यानि पॉपुलिज्म को गले लगाते हैं. ऐसे नेता अपनी सत्ता ऐसे भी दिखाते हैं कि कैसे कोई और विकल्प व्यावहारिक नहीं है. एक असली नेता की जगह कोई नहीं ले सकता. असल में, अगर आप गौर से देखें तो जर्मनी को चांसलर के रूप में एक असली नेता मिला हुआ है.