भज्जी के बिना टीम इंडिया की कल्पना
३० सितम्बर २०११कभी तीन टेस्ट मैचों में 35 विकेट झटक लेने वाले भज्जी पिछले दो टेस्ट मैच में दो विकेट ले पाए हैं. वह भी बहुत मुश्किल से. यूं तो पूरी भारतीय टीम हाल का इंग्लैंड दौरा भूलना चाहेगी लेकिन भज्जी शायद उनमें सबसे ऊपर होंगे. सोचा भी नहीं जा सकता कि भज्जी 70 ओवर फेंकेंगे और उसमें उन्हें सिर्फ विकेटों का एक जोड़ा हासिल होगा.
विशेष जगह
लेकिन सवाल यह उठता है कि भज्जी को बाहर रखना क्या भारतीय टीम बर्दाश्त कर पाएगी. पिछले 10 सालों में उन्होंने टीम में जैसी जगह बनाई है, वैसी सचिन तेंदुलकर को छोड़ कर कोई और नहीं बना पाया है. दूसरे किसी भी खिलाड़ी को बाहर करने का फैसला आसानी से किया जा सकता है, भज्जी को नहीं. अनिल कुंबले के रिटायर होने के बाद तो भज्जी और भी अहम हो गए हैं. यह अहमियत कागजों पर ही नहीं, ग्राउंड पर भी दिखती है. उन्होंने भारत के लिए टेस्ट क्रिकेट में पहला हैट ट्रिक लिया है. 400 टेस्ट विकेट लेने वाले वह दुनिया के सिर्फ 11वें गेंदबाज हैं और करीब 12 साल पहले जब दिल्ली के कोटला ग्राउंड पर अनिल कुंबले पारी में 10 विकेट लेकर इतिहास बनाने की दहलीज पर थे, तब दूसरी तरफ से भज्जी ही सूझ बूझ वाली गेंदें फेंक रहे थे.
ऑफ स्पिनर के तौर पर मुरलीधरन को छोड़ दिया जाए, तो हाल के क्रिकेट में कोई दूसरा नाम हरभजन के आस पास नहीं दिखता है. सिर्फ अच्छी गेंदबाजी ही नहीं, खेल को लेकर उनका भावनात्मक लगाव भी उन्हें दूसरे खिलाड़ियों से अलग करता है. ग्राउंड पर वह जिस शिद्दत से उतरते हैं, कई बार वह उनके लिए मुश्किल भी खड़ी कर देता है. भले ही शानदार गेंदबाजी से वह रिकी पोंटिंग की नींद हराम कर दें लेकिन उसी ग्राउंड पर साइमंड्स के खिलाफ झगड़े से उनके क्रिकेट खेलने तक पर बन आई थी.
चौबे गए...
हाल के दिनों में उन्होंने खुद को गेंदबाजी के खांचे से निकाल कर ऑल राउंडर की श्रेणी में डालने की कोशिश की है. पिछले साल लगातार दो टेस्ट शतक के बाद भज्जी एक गंभीर बल्लेबाज भी गिने जाने लगे. लेकिन शायद यह उनकी तकनीकी गलती साबित हुई कि बल्लेबाजी पर ध्यान देने की वजह से गेंद उनके हाथ से फिसलने लगी और गेंदों ने घूमना बंद कर दिया. कुछ ऐसी ही स्थिति दो तीन साल पहले इरफान पठान के साथ भी हो चुकी है. ग्रेग चैपल के कहने पर पठान ने बल्लेबाजी पर ज्यादा ध्यान दिया और नतीजा यह निकला कि उनकी गेंदबाजी इतनी भोथरी हो गई कि उन्हें टीम से ही हटा दिया गया. उसके बाद से वह टीम इंडिया से जुड़ने के लिए संघर्ष कर रहे हैं लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिल पाई है.
पर दो वनडे मैचों के लिए टीम से बाहर किए जाने का मतलब यह कतई नहीं है कि भज्जी एक खराब क्रिकेटर हो गए हैं या फिर वह वापसी नहीं कर सकते. उन्हें वापसी का अच्छा मौका मिलेगा और हो सकता है कि वह ज्यादा दम के साथ टीम इंडिया में लौटें. हाल में युवराज सिंह के साथ ऐसा ही हुआ था, जब उन्हें खराब प्रदर्शन के बाद टीम से निकाला गया लेकिन उन्होंने वर्ल्ड कप से पहले शानदार वापसी की.
भारत के लिए पहला विश्व कप जीतने वाले कपिल देव के साथ भी ऐसा हो चुका है. उन्हें 1984-85 में टीम से निकाल दिया गया था. लेकिन बाद में उन्होंने शानदार वापसी की और टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज बने.
यह बात अलग है कि कपिल देव इस बार हरभजन सिंह को टीम से निकाले जाने का समर्थन कर रहे हैं और कह रहे हैं कि अगर यह टीम के हित में लिया गया कदम है, तो अच्छा ही होगा. भज्जी जालंधर के हैं और उनकी जगह उसी शहर में पैदा हुए राहुल शर्मा को टीम में शामिल किया गया है.
रिपोर्टः अनवर जे अशरफ
संपादनः महेश झा