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भारत अमेरिका को नौकरियां देता है, यूएस नहीं

३१ दिसम्बर २०१०

भारतीय व्यापार संस्थाओं ने साफ किया है कि भारत अमेरिकी कंपनियों के लिए नौकरी मुहैया करा रहा है और इसकी उल्टी बात सही नहीं है. नैसकॉम प्रमुख ने साफ इनकार किया कि अमेरिका का वित्तीय संकट आउटसोर्सिंग की वजह से है.

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तस्वीर: AP

नैसकॉम प्रमुख सोम मित्तल ने अमेरिकी अखबार सिएटल टाइम्स में लिखा है, "भारत ही अमेरिकी कंपनियों को ज्यादा नौकरियां दे रहा है, इससे उलटी बात सही नहीं है. भारत और अमेरिकी आर्थिक संबंध कई तरह से अमेरिकी अर्थव्यवस्था और वहां की नौकरियों की स्थिति में मदद कर रहा है."

अपने लेख में उन्होंने लिखा है कि अब भारतीय निवेशक बड़ी तेजी से अमेरिका का रुख कर रहे हैं और सच्चाई तो यह है कि संयुक्त अरब अमीरात के बाद अमेरिका में सबसे तेजी से बढ़ रहे निवेशक भारत के हैं.

मित्तल ने साफ किया है कि भारत ने कभी भी अमेरिका के साथ अपने आर्थिक रिश्तों का प्रचार नहीं किया. लेकिन भारत चुपचाप अमेरिका में एक विशाल निवेशक बन चुका है और उसका बाजार अमेरिकी उत्पादों और सेवाओं की पसंदीदा जगह बन चुकी है.

मित्तल ने कहा, "भारत में ऐसे उपभोक्ताओं की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है, जो हर तरह के नए उत्पादों के भूखे हैं. और दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तरह भारत को हाल में मंदी नहीं देखनी पड़ी, बल्कि भारत ने विदेशी निवेश को बढ़ाया है. इसका बहुत बड़ा हिस्सा अमेरिका पहुंचा है, जो उसकी अर्थव्यवस्था को मदद पहुंचा रहा है."

हाल ही में फिक्की में अर्न्स्ट एंड यंग की एक रिपोर्ट पर चर्चा हुई थी. इसका जिक्र करते हुए मित्तल ने लिखा कि पिछले पांच साल में अमेरिका में भारतीय कंपनियों का निवेश 20 अरब डॉलर बढ़ गया है. इस निवेश की वजह से अमेरिका में 65,000 नई नौकरियां मुमकिन हो पाई हैं.

मित्तल का कहना है, "जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा इस साल भारत आए, तो यह आंकड़े और ज्यादा हो गए. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राष्ट्रपति ओबामा की मुलाकात के साथ ही अमेरिकी कारोबारियों ने भारत में 10 अरब डॉलर की डील की है. इसमें बोइंग जैसी अमेरिकी कंपनियां शामिल हैं."

उनके लेख में जिक्र किया गया है, "अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि इन सौदों से अमेरिका में 50,000 लोगों को नौकरियां मिलेंगी, जिनमें से कई सिएटल इलाके में होंगी. यह बात साबित करता है कि भारत और अमेरिका के आर्थिक रिश्ते एकतरफा नहीं हैं."

रिपोर्टः पीटीआई/ए जमाल

संपादनः महेश झा

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