भारत में बाघों पर बेहतरीन फिल्म बनी
२२ सितम्बर २०१०14 साल की बाघिन का नाम मछली है. मछली की चार साल की बेटी सतारा है. रणथम्बौर के किले रहने वाली मछली का जीवन की भावनात्मक कहानी जैसा ही है. उसने कई बच्चों को जन्म दिया. उनमें से सिर्फ एक ही बेटी सतारा सकुशल बची और मां के साथ रहते हुए बड़ी हुई. लेकिन सतारा के जवान होते ही शिकार का इलाका बंट गया.
सतारा अपनी मां के इलाके में शिकार करने लगी. बड़ी बाघिन को बेटी का दखल बर्दाश्त नहीं हुआ. आखिरकार इलाके के लिए दोनों में संघर्ष शुरू हो गया. 14 साल की बूढ़ी बाघिन अपनी चार साल की बच्ची जितनी ताकतवर नहीं रही. उसके नाखून, पंजे और दांत घिस चुके हैं. वह जल्दी थक जाती है. लेकिन फिर भी वह किले के लिए लड़ती हैं. कुछ दूसरे बाघ भी झील से घिरे मछली के इलाके की छीनने का दावा ठोंकते हैं.
टाइगर क्वीन को फिल्माने में दो साल का वक्त लगा. इस दौरान कई ऐसे लम्हे आए जब बाघों का दर्द देखकर फिल्म निर्माताओं की आंखें भर आईं. फिल्म निर्माण से जुड़ी पूरी टीम बाघिन का पीछा करती रही. फिल्म के निर्देशक दिल्ली के एस नल्लामुत्तु कहते हैं, ''मैंने विदेशी प्रोडक्शन हाउसेज के लिए कैमरामैन का काम किया है. मैं वन्य जनजीवन पर 15 साल से ज्यादा समय से काम कर रहा हूं.''
बाघों के इलाके और भावनाओं पर यह अब तक की सबसे बेहतरीन फिल्म बताई जा रही है. देहरादून के वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट का कहना है कि वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित बाघों के इलाका बदलने पर बनाई गई यह दुनिया की पहली फिल्म है.
रिपोर्ट: पीटीआई/ ओ सिंह
संपादन: एमजी