मैर्केल ने जगाईं ब्रिटेन की उम्मीदें
२२ अगस्त २०१९जर्मन राजधानी बर्लिन में एक द्विपक्षीय वार्ता के लिए ब्रिटिश प्रधानमंत्री जॉनसन से बातचीत में जर्मन चांसलर मैर्केल ने इस बात का इशारा दिया है कि अब भी यूरोपीय संघ से निकलने से पहले ब्रिटेन के एक डील तक पहुंचने की संभावना बची है. जाहिर है कि ब्रेक्जिट की अंतिम समयसीमा करीब आने तक दोनों पक्षों को स्वीकार्य होने वाली ऐसी डील तक पहुंचना आसान नहीं होगा.
बुधवार को हुई वार्ता में मैर्केल ने 31 अक्टूबर की डेडलाइन तक खासतौर पर आयरिश सीमा को लेकर जारी विवाद को सुलझा लिए जाने की उम्मीद जताई. मैर्केल ने मीडिया से बातचीत में कहा, "(हम) शायद अगले 30 दिनों में इसका रास्ता निकाल लें, क्यों नहीं?" उनका ऐसा बयान बीते कुछ महीनों से दोनों ही पक्षों की ओर से दिखाई जा रही उदासीनता से काफी अलग है. पिछले साल तमाम मुश्किलों और वार्ताओं के लंबे लंबे कई दौर चलने के बाद दोनों पक्ष जिस समझौते पर पहुंचे थे उस पर फिर से चर्चा करने को ईयू ने मना कर दिया था.
वहीं ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री जॉनसन भी कह चुके हैं कि अक्टूबर की डेडलाइन आने पर वे ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से बिना किसी डील के ही बाहर निकाल लेंगे, अगर तब तक ईयू उस बैकस्टॉप क्लॉज को रद्द नहीं करता जिस पर ब्रिटेन को आपत्ति है. बैकस्टॉप क्लॉज के अनुसार, आयरिश सीमा पर कस्टम चेकप्वाइंट नहीं बनाए जा सकते हैं. जॉनसन की मांग है कि इस क्लॉज को रद्द कर उसकी जगह कुछ वैकल्पिक व्यवस्थाएं दी जाएं जिससे सीमा पार व्यापार चलाया जा सके.
प्रधानमंत्री के रूप में पहली बार जर्मनी की यात्रा पर आए जॉनसन ने आने वाले 30 दिनों में कुछ बदलावों की उम्मीद जताते हुए मैर्केल के बयान का स्वागत किया है.
मैर्केल ने उम्मीद तो पैदा कर दी लेकिन साथ ही नो-डील ब्रेक्जिट को टालने की जिम्मेदारी एक तरह से ब्रिटेन पर डालते हुए कहा कि बिना आयरिश सीमा के मसले को सुलझाए हुए ईयू से निकल जाना ब्रिटेन के लिए आर्थिक रूप से हितकारी नहीं होगा. इसे जॉनसन ने मानते हुए कहा, "आप सही हैं कि जिम्मेदारी हम पर है कि इसका उपाय निकालें. ऐसे उपाय जिससे उत्तरी आयरलैंड का मसला सुलझाया जा सके और हम भी यही करना चाहते हैं."
बैकस्टॉप क्लॉज पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री के ईयू के साथ तय हुए समझौते का हिस्सा था, जिसे ब्रिटेन की संसद ने तीन बार अस्वीकार कर दिया. समझौता होना भी ब्रेक्जिट की दिशा में महज एक कदम होगा. इसके बाद भी दोनों पक्षों के बीच भविष्य के संबंधों की रूपरेखा तय करने को लेकर आने वाले कई सालों तक बातचीत चलती रहेगी.
आरपी/आईबी (एपी, एएफपी)
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