म्यांमार पहुंची भारत-चीन की टक्कर
११ अगस्त २०१२भारत ने उत्तर पूर्व के आतंकी संगठनों के खिलाफ म्यांमार से सेना कानून लगाने की मांग की है. जानकार मानते हैं कि भारत की इस मांग का मकसद क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करना है. आंतकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई की मंशा तो है ही लेकिन भारत चाहता है कि म्यांमार चीन के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ उसका साथ दे. एक सप्ताह पहले ही म्यांमार के सेना प्रमुख, मिन आंग ह्लाइंग भारत के दौरे पर आए थे. उन्होने भारत के रक्षा मंत्री ए के एंटनी से भी मुलाकात की थी. इस दौरे के बाद भारत ने म्यांमार की सेना को प्रशिक्षण और हथियारों की आपूर्ति करने का आश्वासन दिया था.
सैन्य समझौता
बर्मा के राष्ट्रपति थियान सेइन ने दो साल पहले ही सत्ता संभाली थी. इसके बाद से उन्होने कई तरह के राजनीतिक सुधार किए. इसी के बाद से ही यूरोपियन यूनियन, अमेरिका और पश्चिमी देशों ने म्यांमार से आर्थिक प्रतिबंध हटाना शुरु किया. इससे पहले जब 1988 में बर्मा की सैन्य सरकार ने लोकतंत्र समर्थक आंदोलन को कुचलना शुरू किया तो भारत ने आंग सांग सू ची का पक्ष लिया. इसके बाद भारत ने म्यांमार के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए सैन्य और आर्थिक सहयोग को भी खूब बढावा दिया. 2006 मे भारत की सेना के वाइस चीफ लेफ्टिनेंट जनरल एस पट्टाभिरमन ने स्वीकार किया था कि भारत म्यांमार को सैन्य साजो सामान की आपूर्ति कर रहा था. 2007 में मीडिया में इस तरह की खबरें भी आईं थीं कि म्यांमार भारत से मशीन गन, हेलीकॉप्टर, सबमरीन और दूसरे सैन्य साजो सामान की मांग कर रहा है.
पिछले साल ही भारत में रहने वाले म्यांमार के एक लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता ने बताया था कि भारत 2003 से ही म्यांमार को हथियार की आपूर्ति कर रहा है. कई सालों तक अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के देशों ने म्यांमार को हथियार देने पर प्रतिबंध लगा रखा था. इन देशों ने म्यांमार पर आर्थिक प्रतिबंध भी लगा रखा था. कार्यकर्ता का कहना है कि भारत ने अलग रास्ता चुना क्योंकि उसे उम्मीद थी कि म्यांमार इन हथियारों की मदद से म्यांमार के जंगलों में छिपे भारत के आतंकवादी नेताओं पर लगाम कसेगा.
चीन से है मुकाबला
वैसे म्यांमार की सेना हथियारों की सप्लाई के लिए 1988 के बाद से ही चीन पर निर्भर रही है. चीन की सेना का म्यांमार की सेना के साथ गहरा संबंध रहा है. जानकार बताते हैं कि भारत म्यांमार में चीन के प्रभाव को कम करने के लिए बेताब है.वॉशिंगटन स्थित जेम्सटाउन फाउंडेशन से जुड़े सुरक्षा विशेषज्ञ जैकब जेन, बताते हैं, "भारत और म्यांमार के बीच बढ़ रही दोस्ती स्वाभाविक है. एक तरफ म्यांमार चीन पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है तो दूसरी ओर भारत म्यांमार में चीन का प्रभाव कम करना चाहता है. भारत के इस कदम का पश्चिमी देश भी स्वागत करेंगे क्योंकि वो भी चीन के प्रभाव को कम करना चाहते हैं. होनूलूलू स्थित ईस्ट एशिया समिट और आसियान रीजनल फोरम के अध्यक्ष राल्फ ए कोसा कहते हैं, "भारत पूर्व एशिया के मामलों में अधिक से अधिक रुचि ले रहा है. भारत की कोशिश है कि दक्षिण पूर्व के सभी देशों के लिए उसके दरवाजे खोल दिए जाएं और बीजिंग की ताकत के सामने एक विकल्प पेश किया जाए." भारत स्थित इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस में शोध करने वाले उदय भानु सिंह कहते हैं,"म्यांमार के लोग भारत में अस्थिरता फैला रहे हैं. इसी तरह भारत के आतंकवादी म्यांमार में शरण ले रहे हैं. दोनों देशों के बीच बढ़ते सैन्य संबंध को इस लिहाज से भी देखना होगा."
रिपोर्टः शेख अजीजुर रहमान (वीडी)
संपादनः एन रंजन