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म्यांमार सीमा बंद होने से बदहाल होता मोरे कस्बा

प्रभाकर मणि तिवारी
३ जून २०२२

भारत और म्यांमार की सीमा पर मौजूद मोरे का बाजार सीमा बंद होने से बदहाली के दिन देख रहा है. सीमा पार के व्यापारियों और ग्राहकों से गुलजार रहने वाले बाजार में मायूसी और नाउम्मीदी है.

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भारत म्यांमार की सीमा पर बसा मोरे
भारत म्यांमार की सीमा पर बसा मोरेतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

"सीमा व्यापार बंद होने का काफी असर पड़ा है. इधर के व्यापारी म्यांमार पर निर्भर थे और उधर के व्यापारी मोरे पर. लेकिन लंबे अरसे से यहां कारोबार लगभग ठप हो गया है. अब दिन भर दुकान खोल कर बैठे रहते हैं. लेकिन कभी-कभार ही ग्राहक आते हैं,” यह कहते हुए बर्तनों के व्यापारी ख्वाजा मोइनुद्दीन के चेहरे पर उदासी साफ झलकती है. वे पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर की राजधानी से कोई 110 किमी दूर म्यांमार की सीमा से सटे मोरे में दशकों से रह रहे हैं. लेकिन इतना बुरा दौर उन्होंने कभी नहीं देखा था.

सीमा पार बाजार

म्यांमार सीमा पर बसा मोरे कस्बा बीते दो साल से भी लंबे अरसे से बदहाली से जूझ रहा है. इसकी वजह है अंतरराष्ट्रीय सीमा का बंद होना. पहले कोविड के कारण यह सीमा बंद हुई थी और उसके बाद सैन्य तख्तापलट के कारण उसे अब तक खोला नहीं जा सका है. अब यह कब तक खुलेगी, यह कहना भी मुश्किल है. इस राज्य की 398 किमी लंबी सीमा म्यांमार से सटी है.

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देश के आजाद होने के बाद से ही सीमा के दोनों ओर रहने वाले लोग एक-दूसरे के इलाकों में जाकर खरीद-फरोख्त करते थे और यह कस्बा लगातार फल-फूल रहा था, लेकिन अब तस्वीर एकदम बदल गई है. तमाम संगठन सीमा को दोबारा खोलने की मांग कर रहे हैं. भारत-म्यांमार के बीच हुए एक समझौते के तहत दोनों देशों के लोग बिना पासपोर्ट के ही एक-दूसरे की सीमा के 16 किमी भीतर तक जा सकते हैं.

बाजार में चहल पहल और रौनक नहीं दिखाई दे रही
बाजार में चहल पहल और रौनक नहीं दिखाई दे रहीतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

मोरे भारत-म्यांमार-थाईलैंड के बीच प्रस्तावित 1360 किमी लंबे एशियन हाइवे के किनारे बसा है. इसे दक्षिण एशिया का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है. इंफाल से मोरे के रास्ते में पहाड़ियों को काट कर हाईवे बनाने का काम भी चल रहा है. इसका आधा काम पूरा हो गया है.

सीमा बंद तो कारोबार ठप्प

अब सीमा व्यापार बंद होने से अवैध कारोबार और तस्करी को बढ़ावा मिला है. इस सीमा पर दो गेट भले बने हैं बाकी सीमा खुली होने से लोगों को आवाजाही में खास दिक्कत नहीं होती. इससे कारोबारियों को भारी नुकसान हो रहा है. मोरे में आपको म्यामांर की बनी तमाम चीजें मिल जाएंगे. फुटपाथ पर इनको बेचने वाले ज्यादातर लोग भी सीमा पार यानी म्यांमार के हैं जो पहले सीमा चौकी से लगे बाजार में दुकान लगाते थे.

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मोरे में दुकान चलाने वाली एक महिला टीका आचार्य कहती हैं, "सीमा बंद होने से कारोबार पर काफी प्रतिकूल असर पड़ा है. काम लगभग ठप्प है. सबको तकलीफ हो रही है.” मोरे के दूसरे कारोबारियों की भी यही राय है.

तख्तापलट से बिगड़ा खेल

बीते साल फरवरी में इस सीमा को खोलने की तारीख लगभग तय हो गई थी, लेकिन उससे एक दिन पहले ही म्यांमार में हुए सैन्य तख्तापलट ने सब कुछ बिगाड़ दिया. मणिपुर और म्यांमार के बीच अनौपचारिक सीमा व्यापार तो देश की आजादी से भी पहले से होता रहा है. इसे औपचारिक जामा पहनाया गया दोनों देशों के बीच वर्ष 1994 में हुए एक सीमा व्यापार समझौते के जरिए. उसके तहत वर्ष 1995 में मोरे से लगी सीमा पर एक लैंड कस्टम स्टेशन की स्थापना की गई.

कई तरह के सामान यहां खरीदे बेचे जाते हैं
कई तरह के सामान यहां खरीदे बेचे जाते हैंतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

मोरे से सीमा पार कर म्यांमार की धरती पर पहुंचने पर वहां से रिक्शा के जरिए पांच मिनट में नाम्फालांग पहुंचा जा सकता है. वह कस्बा भी मोरे जैसा ही है, लेकिन दो साल से वहां भी मुर्दनी छाई है. वहां से तीन किलोमीटर दूर बसा है तामू शहर जो इलाके का प्रमुख बाजार है. रोजी-रोटी की मजबूरी में वहां से कुछ लोग अवैध तरीके से सीमा पार कर मोरे में सामान भेज रहे हैं. मोरे में फुटपाथ पर दुकान चलाने वाले म्यांमार के नागरिक खिन माउंग कहते हैं, "क्या करें? हमारे सामने परिवार पालने की मजबूरी है. सीमा कब खुलेगी, यह कहना मुश्किल है. लेकिन पेट तो नहीं मानेगा.” खिन और उनके कई परिचित कुलियों के सिर पर सामान रख कर रात को अवैध तरीके से सीमा पार करते हैं.

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मोरे के व्यापारियों को उम्मीद है कि जल्दी ही चीजें सामान्य होगी और सीमा दोबारा खोल दी जाएगी. लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो उनके सामने मोरे छोड़ कर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा.