यमन के लोग किस "पाप" की सजा भुगत रहे हैं
१७ दिसम्बर २०१९यमन के हाद्रामोउत प्रांत की राजधानी मुकाला को दूर दराज के गांवों से जोड़ने वाली सड़क बार बार के भूस्खलन में पूरी तरह से तबाह हो गई है. जहां सड़क थी वहां कहीं पेड़ों के तने बिखरे हैं तो कहीं विशाल पत्थर. साविया घाटी के पास मौजूद हारा गांव के एक बुजुर्ग किसान अबू बकर ने बताया, "मौसम दो चरम स्थितियों के बीच फंसा है: भारी सूखा और विनाशकारी बाढ़ और बारिश."
गृहयुद्ध से जूझ रहे यमन के सामने कई चुनौतियां हैं. एक तरफ अर्थव्यवस्था की हालत खराब है तो दूसरी तरफ स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा बिखर गया है. इसके अलावा भोजन, पानी और रोजगार की देश में भारी कमी है. हालांकि सबसे बड़ा संकट अब जलवायु परिवर्तन लेकर आया है और इससे निबटने के लिए पर्याप्त धन नहीं होने से जिंदगी और मुश्किल हो गई है.
दक्षिणी यमन के इस इलाके में रहने वाले लोगों का कहना है कि 2015 के बाद से मौसम का चक्र खासतौर से बिगड़ गया है. 2015 में चपाला चक्रवात आया था. यह यमन में आया सबसे बड़ा चक्रवात था जिसकी वजह से भारी आंधी और बारिश हुई और कई इलाकों में बाढ़ आ गई. इसके बाद 2018 में यमन लुबान चक्रवात की चपेट में आया जिसमें 14 लोगों की मौत हुई.
अबू बकर बताते हैं कि दिनों दिन खराब होते मौसम के कारण बहुत से गड़रियों ने अपने मवेशियों के साथ अपना घर छोड़ दिया है. ऐसा नुकसान से बचने के लिए किया गया है. अबू बकर ने कहा, "पहले चपाला ने हमारे गांव और खेतों को तबाह किया और उसके बाद जो बच गया उसे लुबान ने खत्म कर दिया. मैं अब 80 साल से ज्यादा का हो चुका हूं और मैं आपसे कह सकता हूं कि मैंने इस तरह की विनाशकारी बाढ़ और बारिश कभी नहीं देखी. बारिस का संबंध अब यहां तबाही से जुड़ गया है."
कई सालों से यहां के किसान बारिश के मौसम से पहले नहरों को ठीक किया करते थे, खेतों में खाद डाल देते थे और फिर बारिश का इंतजार करते थे. अब यह परंपरा बंद हो गई है. अबू बकर बताते हैं कि अब कुछ नहीं किया जाता क्योंकि सब लोग यही सोचते हैं कि बाढ़ का पानी अपने साथ सब कुछ बहा ले जाएगा. पिछले साल जब लुबान चक्रवात ने घाटी में धावा बोला तो उसके बाद आई बाढ़ के कारण यहां के खेत कीचड़ से भर गए. कई गांव के लोगों का संपर्क 10 दिनों तक बाकी हिस्से से कटा रहा और छह महीने तक यहां खेती नहीं हो सकी.
खेतों में सिंचाई के लिए नाला बनाने के लिए अबू बकर और उनके परिवार को कर्ज लेना पड़ा. इलाके के दूसरे खानाबदोशों की तरह ही वह भी यह नहीं समझ पाते कि आखिर बाढ़ और बारिश अब इतनी ताकतवर क्यों हो गई हैं. उनका कहना है कि यह समस्या ईश्वर की नाराजगी की वजह से आ रही है. अबू बकर ने कहा, "ताकतवर बारिश और बाढ़ हमारे पापों का नतीजा हैं. लोग नमाज नहीं पढ़ते." अबू बकर ने इसके साथ ही यह भी कहा कि उन्होंने जलवायु परिवर्तन की बात कभी नहीं सुनी. अब जब वो आंधी आने की खबर सुनते हैं तो अपने परिवार के साथ घर में बंद हो जाते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं.
बहुत से लोग जिनके खेत खेती के काबिल नहीं रहे उन्होंने इस इलाके को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया. छह बच्चों के पिता हसन 55 साल के हैं वो भी इन्हीं लोगों में शामिल हैं. उनका कहना है कि खेती और मवेशियों को पालने से उनके परिवार की जरूरतें पूरी होती थीं लेकिन दूसरे चक्रवात ने उनका सब कुछ तबाह कर दिया. अब वो एक सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते हैं और बाकी बची भेड़ों और बकरियों को पालते हैं ताकि गुजारा हो सके. उन्होंने कहा, "मैं अपने घर नहीं जा सकता क्योंकि मैं अपनी जमीन ठीक नहीं कर सकता हूं. काश कोई मेरी मदद करता."
हाद्रामोउत यूनिवर्सिटी में जियोमॉर्फोलॉजी के प्रोफेसर मोहम्मद बाराशेद कहते हैं कि मुश्किल मौसमी हालातों से निबटने के लिए बड़े स्तर पर शहरों और मकानों के निर्माण में बदलाव करना होगा ताकि खतरा कम किया जा सके. उन्होंने कहा, "लोगों को अपने घरों छतों को बदलना होगा. इसके साथ ही पानी के रास्तों पर मकान बनाने को आपराधिक घोषित करना होगा."
प्रोफेसर बाराशेद ने चेतावनी दी कि अगर चक्रवात इसी तरह ताकतवर होते रहे और बदलाव नहीं किए गए तो देश के सामने सड़कों, पुलों और मिट्टी के मकानों के मिट जाने का खतरा रहेगा.
हालांकि यमनी अधिकारियों का कहना है कि उनके पास बढ़ते खतरे से निपटने के तरीकों पर अमल करने के लिए पैसा नहीं है. मौसमी बदलाव की मार ऐसे वक्त में तेज हुई है जब देश में हिंसा भी बढ़ गई है. इसकी वजह से यमन को तेल और गैस की बिक्री से होने वाली आय घट गई है. सरकारी अधिकारियों का कहना है कि एक आफत से निबटने के लिए पैसों का इंतजाम होने से पहले ही दूसरी आफत पहुंच जा रही है. हाद्रामोउत के गवर्नर फराज सलमीन अल बाहसानी ने कहा, "हमारे संसाधन और क्षमताएं बहुत सीमित हैं. हमें उन्नत मौसम केंद्रों की जरूरत है जो चक्रवात का पहले से अनुमान लगा सकें." जाहिर है कि ऐसे हालात में लोगों के पास ईश्वर से दुआ मांगने के अलावा और कोई रास्ता नहीं.
एनआर/एमजे (रॉयटर्स)
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