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यूरोपीय संसद में भारत के नागरिकता कानून पर मतदान टला

२९ जनवरी २०२०

दिसंबर से भारत में नागरिकता कानून की वजह से विवाद है. आलोचकों का आरोप है कि वह मुसलमानों के साथ भेदभाव करता है. यूरोपीय संसद भारत की निंदा करना चाहता था, लेकिन फैसला टाल दिया गया है, ताकि भारत के साथ संबंध खराब न हों.

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Flaggen vor dem Europäischen Parlament
तस्वीर: DW/B. Riegert

यूरोपीय संसद ने संशोधित भारतीय नागरिकता कानून पर एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पर गुरुवार को होने वाले मतदान को स्थगित कर दिया है. यूरोपीय संसद पहले भारत में सर्वोच्च न्यायालय के सामने लंबित मुकदमे का इंतजार करेगी. इसके अलावा 13 मार्च को यूरोपीय संघ के नेताओं और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच शिखर भेंट भी होनी है. यूरोपीय संघ की समानता आयुक्त हेलेना डाली ने शाम को ब्रसेल्स में कहा कि शिखर भेंट में इस मुद्दे पर चर्चा होगी.

भेदभाव का खतरा

यूरोपीय संसद में क्रिश्चियन डेमोक्रैटों से लेकर वामपंथियों के छह संसदीय दलों ने एक साझा प्रस्ताव में भारत में नए नागरिकता कानून की आलोचना की. दिसंबर में पारित कानून को "खतरनाक रूप से विभाजनकारी" और "भेदभावपूर्ण" बताया गया. नागरिकता संशोधन कानून अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भागकर आए हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों की रक्षा करता है, लेकिन वहां से आने वाले मुसलमानों की नहीं. इस वजह से नया कानून, जिस पर भारत में भी बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं, भारतीय संविधान का उल्लंघन करता है जिसके अनुसार धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता.

Europaparlament in Straßburg | Michael Gahler, CDU-Europaabgeordneter
मिषाएल गालरतस्वीर: DW

750 सांसदों वाली यूरोपीय संसद में 559 सांसदों के छह संसदीय दलों ने संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयुक्त का हवाला दिया है, जिन्होंने "मौलिक रूप से भेदभावपूर्ण" कानून को भारत के अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का उल्लंघन बताया था. यूरोपीय संसद में हुई बहस में सोशल डेमोक्रैटिक सांसद जॉल हॉवर्थ ने कहा कि भारत में दक्षिणपंथी सरकार प्रमुख अपने देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को खतरे में डाल रहे हैं.

भारत सरकार की आलोचना में नरमी

क्रिश्चियन डेमोक्रैटों के विदेश नीति प्रवक्ता मिषाएल गालर ने इस बात का स्वागत किया कि संसद फिलहाल इस प्रस्ताव पर मतदान नहीं करा रही है, बल्कि पहले और तथ्य इकट्ठा करना चाहती है. गालर ने इस पर जोर दिया कि अब भी सभी धार्मिक समूहों के लोगों के लिए भारत में 12 साल रहने के बाद नागरिकता हासिल करना संभव है. विवादित नागरिकता कानून शरणार्थियों के कुछ समूहों का समर्थन करता है, यहां केवल मुसलमानों को बाहर रखा गया है. छह संसदीय दलों के साझा प्रस्ताव में भारत सरकार से नागरिक संशोधन कानून के भेदभाव वाले हिस्से को हटाने और नागरिकों की शिकायतों को शांतिपूर्ण संवाद के जरिए सुलझाने की मांग की गई थी.

Indien Treffen Premierminister Narendra Modi mit EU Delegation in Neu-Delhi
अक्टूबर में प्रधानमंत्री यूरोपीय सांसदों से मिलेतस्वीर: Reuters/Handout/India's Press Information Bureau

राष्ट्रवादी ईसीआर संसदीय दल ने अपना स्वयं का प्रस्ताव संसद में रखा था, जिसमें भारत की हिंदू-राष्ट्रवादी सरकार के कदमों के लिए समझ दिखाई गई है. प्रस्ताव में कहा गया है कि भारत को अपना कानून बनाने का अधिकार है. ईसीआर के सांसदों ने स्वीकार किया कि सीएए विवादास्पद है और देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन का कारण बना है. उग्र दक्षिणपंथी समूह "आईडी", जिसमें जर्मन की एएफडी और इटली की लीगा पार्टी भी शामिल है, उसने स्वयं अपना कोई प्रस्ताव नहीं रखा था. यूरोपीय संसद में दक्षिणपंथी समूह के कुछ सांसदों ने अक्टूबर में सरकार के निमंत्रण पर कश्मीर की यात्रा की थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस समय 27 सांसदों से मुलाकात की थी और कश्मीर का विशेष स्वायत्तता का दर्जा खत्म करने के फैसले को उचित ठहराया था.

नागरिकता रजिस्टर भी निशाने पर

यूरोपीय संसद ने नए राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को भी निशाना बनाया है. सांसदों की चिंता है कि इसका इस्तेमाल बहुत से मुस्लिम भारतीयों को नागरिकता से वंचित करने के लिए किया जा सकता है. संसद के प्रस्ताव में कहा गया है, "यह नागरिकता निर्धारित करने की प्रक्रिया में खतरनाक बदलाव है." क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक सांसद गालर ने इसे महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि कई नागरिकों के लिए आवश्यक सबूत देना बहुत मुश्किल होगा. प्रस्ताव के मसौदे के अनुसार, असम राज्य में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर तैयार करने की प्रक्रिया में 12 लाख लोग अपनी नागरिकता खो चुके हैं और उन्हें देश से बाहर निकाला जा सकता है.

यूरोपीय संघ के सूत्रों के अनुसार आयोग और यूरोपीय मंत्रिपरिषद अब भारतीय सहयोगियों से संपर्क और बातचीत करेगा. उसके बाद ही ब्रसेल्स में मसौदे पर मतदान होगा. मिषाएल गालर ने कहा, "भारत एक महत्वपूर्ण साझेदार है. हम बेहतर संबंध चाहते हैं." सोशल डेमोक्रेट हावर्थ ने इस रवैये को "राजनयिक ब्लैकमेल" बताया. संयोग से यूरोपीय संसद में हॉवर्थ का अंतिम दिन था. वे ब्रिटिश हैं और ब्रेक्जिट के कारण शुक्रवार से संसद सदस्य नहीं रहेंगे.

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