राजनीतिक हिंसा पीड़ितों पर त्रिपुरा सरकार की पहल
२८ दिसम्बर २०२०त्रिपुरा में 2018 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा लगातार हिंसा के लिए सुर्खियों में रहा है. राज्य में खासकर विपक्षी वामपंथी नेताओं और कार्यकर्ताओं व पत्रकारों पर हमले लगातार तेज हो रहे हैं. पश्चिम बंगाल में जहां पार्टी सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस पर हिंसा के आरोप लगाती रही है वहीं त्रिपुरा में जारी हिंसा पर उसने चुप्पी साध रखी है. वैसे, राजनीतिक हिंसा भारत में नई नहीं है. लेकिन हाल के वर्षों में धर्म के आधार पर तेजी से बढ़ते धुव्रीकरण की वजह से यह लगातार तेज हो रही है. अब हालत यह है कि ज्यादातर राज्य इसकी चपेट में हैं. वह चाहे पूर्वोत्तर के सातों राज्य हों या फिर केरल या कर्नाटक. तमिलनाडु में भी अक्सर ऐसी हिंसा की खबरें सामने आती रही हैं.
अब लगातार बढ़ती राजनीतिक हिंसा के बीच बिप्लब देव के नेतृत्व वाली त्रिपुरा सरकार ने वर्ष 2018 से पहले यानी लेफ्ट के शासनकाल के दौरान राजनीतिक हिंसा में मारे लोगों के एक-एक परिजनों को सरकारी नौकरी देने का एलान किया है. देश के विभिन्न राज्यों में बढ़ती राजनीतिक हिंसा के बीच त्रिपुरा सरकार का यह फैसला अपनी किस्म का पहला तो है. लेकिन इस पर भी सवाल उठ रहे हैं. विपक्ष का आरोप है कि इस योजना के जरिए खासकर भगवा पार्टी के समर्थकों और कार्यकर्ताओं को उपकृत करना ही सरकार का मुख्य मकसद है. दूसरी ओर, सीपीएम ने राज्य में हिंसा के लगातार तेज होने के मुद्दे पर सरकार की खिंचाई की है. पार्टी ने इसके खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू करने की चेतावनी दी है.
सरकार की योजना
त्रिपुरा सरकार ने उन लोगों के परिजनों को सरकारी नौकरी देने का फैसला किया है जो वर्ष 2018 में मार्च से पहले राजनीतिक हिंसा में मारे गए हैं. उस समय विपक्ष में रही बीजेपी सत्तारुढ़ लेफ्ट पर अपने कार्यकर्ताओं की हत्या के आरोप लगाती रही थी. कानून मंत्री रतन लाल नाथ बताते हैं, "नौ मार्च, 2018 से पहले राज्य में होने वाली हिंसा में बड़े पैमाने पर लोगों की मौत हुई थी. बीजेपी के सत्ता में आने के बाद ऐसे तमाम परिवार सरकार से आर्थिक सहायता या सरकारी नौकरी की गुहार लगा रहे थे. सरकार को ऐसे सैकड़ों आवेदन मिले हैं.” इन आवेदनों के निपटारे के लिए सरकार ने कानून मंत्री के नेतृत्व में एक छह-सदस्यीय समिति का गठन किया था. पहले दौर में आवेदन करने वाले दस में से सात लोगों को नौकरी के योग्य पाया गया है. सरकार का कहना है कि इस कोटे के तहत नौकरी के लिए आवेदकों का कम से कम आठवीं पास होना अनिवार्य है. नाथ बताते हैं, "जो लोग शैक्षिक योग्यता पर खरे नहीं उतरेंगे उनको आर्थिक सहायता देने पर विचार किया जाएगा. इस योजना के तहत नौकरी पाने के लिए जिलाशासक के जरिए आवेदन भेजना होगा. उसके बाद समिति उन पर विचार कर अपनी सिफारिशें सरकार को सौंपेगी.”
यह योजना त्रिपुरा के गठन के बाद से नौ मार्च 2018 तक यानी बीजेपी के सत्ता में आने से ठीक पहले तक हुई मौतों के मामले में लागू होगी. वैसे, इस योजना के तहत नौकरी पाने की शर्तें आसान नहीं होंगी. रतन लाल नाथ के मुताबिक, "ऐसे परिवार में किसी एक को ही नौकरी दी जाएगी. इसके अलावा परिवार में दूसरा कोई कमाने वाला नहीं होना चाहिए. आवेदक के परिवार के बाकी सदस्यों के हस्ताक्षर वाला अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) भी आवेदन के साथ संलग्न करना होगा." इसके अलावा संबंधित पुलिस अधीक्षक से इस बात की पुष्टि की जाएगी क्या परिवार के व्यक्ति की मौत राजनीतिक हिंसा में ही हुई थी. बीजेपी की युवा शाखा ने इससे पहले बीते 11 नवंबर को राजधानी अगरतला में रैली निकाल कर पुलिस महानिदेशक को एक ज्ञापन सौंपा था. इसमें राजनीतिक हत्या के तमाम पुराने मामलों को दोबारा शुरू कर सरकार को रिपोर्ट सौंपने की मांग की गई थी.
विपक्ष का आरोप
विपक्षी सीपीएम ने सरकार की इस योजना पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया है कि इसका मकसद बीजेपी के लोगों को सरकारी नौकरियां देना है. इस योजना की आड़ में सरकार भगवा पार्टी के काडरों को सरकार में भरना चाहती है. सीपीएम के वरिष्ठ नेता और पूर्व लोकसभा सदस्य जितेंद्र चौधरी कहते हैं, "इस योजना में इतनी शर्तें थोप दी गई हैं कि आम आदमी के लिए उसे पूरा करना संभव नहीं है. इसके अलावा उससे संबंधित दस्तावेज जुटाने में भी भारी परेशानियों का सामना करना होगा.” पार्टी ने आरोप लगाया है कि बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से ही राज्य में राजनीतिक हिंसा लगातार बढ़ती जा रही है और लेफ्ट के नेताओं व कार्यकर्ताओं को चुन-चुन कर निशाना बनाया जा रहा है.
जितेंद्र चौधरी बताते हैं कि 24 दिसंबर की रात को सीपीएम के तीन नेताओं पर हमले हुए. लेकिन इन मामलों में पुलिस अब तक एक भी हमलावर को गिरफ्तार नहीं कर सकी है. इसी तरह एक सप्ताह पहले पार्टी के वरिष्ठ नेता पवित्र कर के आवास पर ही उन पर हमला हुआ था. लेकिन पुलिस या प्रशासन ने इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की है. सीपीएम का आरोप है कि राजनीतिक हिंसा पर मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब की चुप्पी से हमलावरों के हौसले बढ़ते जा रहे हैं. इस हिंसा में लेफ्ट कार्यकर्ताओं व नेताओं के अलावा आम लोग भी पिस रहे हैं. विपक्ष ने चेतावनी दी है कि अगर इस हिंसा पर अंकुश नहीं लगाया गया तो बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू किया जाएगा. लेकिन सरकार पर उसकी चेतावनी का कोई असर फिलहाल नहीं नजर आ रहा है.
__________________________
हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore