विदेशों में फंसे भारतीय ऐसे निकाले जा रहे हैं
३ जून २०२०मुझे 20 मार्च को भारत आना था. जर्मनी से आने वाली फ्लाइट्स पर पाबंदी की वजह से मैं नहीं आ सका. 1 महीने 17 दिन बाद भारत सरकार ने 7 मई से वंदे भारत मिशन चलाकर विदेश से भारतीयों को लाने का काम शुरू किया. इसके लिए विदेशों में मौजूद भारतीय दूतावासों ने ऑनलाइन फॉर्म जारी कर भारत जाने के लिए आवेदन मांगे. इसमें वापसी का कारण भी बताना पड़ता है. मैंने भी फॉर्म भरा और एम्बैसी ने संपर्क किया. प्रॉसेस पूरा होने पर 583 यूरो का फ्रेंकफर्ट से दिल्ली का टिकट बुक हुआ. 28 मई के दिन की ये फ्लाइट तय थी.
फ्रैंकफर्ट जर्मनी का मुंबई है. देश की वित्तीय राजधानी. वहां का एयरपोर्ट जर्मनी के व्यस्ततम एयरपोर्टों में से एक है. फ्लाइट का समय रात सवा नौ बजे का था. प्रक्रिया लंबी होने के चलते भारतीय दूतावास ने कम से कम चार घंटे पहले आने के लिए कहा था. महीनों से इंतजार कर रहे लोगों के लिए घंटों का इंतजार क्या मायने रखता है. अधिकांश लोग चार घंटे से भी पहले ही पहुंच गए थे जिनमें मैं भी शामिल था. मैंने कई बार फ्रैंकफर्ट एयरपोर्ट से यात्रा की है लेकिन इतना सूना एयरपोर्ट पहली बार देखने को मिला. शायद फिर कभी ऐसा देखने का मौका भी न मिले.
एयर इंडिया द्वारा बताए गए काउंटर के पास मेरे से पहले ही 100 से ज्यादा लोग जमा थे. मैं भी उनमें शामिल हो गया. दूतावास के कुछ कर्मचारी मदद के लिए मौजूद थे. जब और यात्री आने लगे तो सबको सोशल डिस्टैंसिंग का पालन कर लाइन लगाने को कहा गया. सभी लोग अपने सामान के साथ लाइन में खड़े हो गए. वापस लौट रहे लोगों में विद्यार्थी, अपने परिजनों से मिलने आकर यहां फंसे लोग और कुछ नौकरी छोड़कर परिवार के पास वापस जा रहे लोग शामिल थे.
लाइन लगने पर एयरलाइंस के और भी कर्मचारी आ गए. उन्होंने बुजुर्ग और अस्वस्थ लोगों को प्राथमिकता देते हुए लाइन में आगे बुलाया. बिजनेस क्लास कैटगरी के लोगों को भी प्राथमिकता दी गई. समय ज्यादा लगने की वजह से इकोनॉमी और बिजनेस क्लास वालों को एक के बाद एक बुलाया जाने लगा.
प्रोटोकॉल के हिसाब से विमान पर सवार होने से पहले यात्री का तापमान चेक करना था. काउंटर पर पहुंचने वाले व्यक्ति का तापमान दर्ज किया गया. उसके बाद दूतावास द्वारा ईमेल किए गए एक फॉर्म को जमा किया गया था. इस फॉर्म में स्वघोषणा थी कि ये यात्रा अपने जोखिम पर की जा रही है. साथ ही दूतावास की तरफ से आई यात्रियों की सूची के साथ जानकारियों का मिलान किया गया. तापमान सामान्य आने पर ई टिकट के प्रिंट आउट पर एक मुहर लगाई गई जिस पर पेड यानी भुगतान किए जाने की बात लिखी थी. अगले काउंटर पर बोर्डिंग पास दिया गया और फिर सामान जमा किया गया.
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सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद बारी थी सुरक्षा जांच की. इमिग्रेशन से पहले हुई सुरक्षा जांच में भी दूरी का ख्याल रखा गया था. मशीन से स्कैनिंग हुई, यात्री को छूने या जेब टटोलने वाली तलाशी की जरूरत नहीं थी. इमिग्रेशन के बाद जब अंदर पहुंचे तो एयरपोर्ट पर लगी कुर्सियां एकदम खाली पड़ी थीं. दो कुर्सियों के बीच एक कुर्सी खाली छोड़ी गई थी. इस उम्मीद में कि जब हवाई यात्रा होने लगेगी और ज्यादा लोग आने लगेंगे तो वे दूर दूर बैठेंगे. बीच की कुर्सियों पर ना बैठने के संकेत लगे थे. लाइन में खड़े होने से बोर्डिंग गेट तक पहुंचने में करीबन 2 घंटे का समय लगा. बोर्डिंग गेट के पास भी एयरलाइन कर्मचारियों ने सबके नाम और पासपोर्ट नंबर का फिर से मिलान किया. सारी प्रक्रियाएं पूरी हो चुकी थीं और अब जहाज पर बैठने का इंतजार था.
फ्लाइट में बोर्ड होने की घोषणा के साथ सबसे पहले पिछली और खिड़की के साथ वाली सीट वाले लोगों को फ्लाइट में बैठने के लिए बुलाया गया. फिर बीच वाली और अंत में गैलरी वाली सीट के यात्रियों को बुलाया गया. फ्लाइट के गेट पर क्रू सदस्य पीपीई किट पहनकर खड़े थे. सीट पर एयर इंडिया की तरफ से पूरी किट रखी हुई थी. इस किट में फेस शील्ड, फेस मास्क, सैनिटाइजर, वेफर्स, रात का खाना, सुबह का नाश्ता, दो पानी की बोतल और एक पैन था. फ्लाइट में हुई घोषणा में कहा गया था कि क्रू द्वारा दी जाने वाली सुविधाएं सीमित होंगी. साथ ही बिना जरूरत अपनी सीट से खड़े होने की मनाही थी. फ्लाइट की कोई सीट खाली दिखाई नहीं पड़ रही थी.
फ्लाइट अपने निर्धारित जर्मन समय पर चली. फ्लाइट में एक और फॉर्म दिया गया जिसके साथ एक कॉपी पेपर भी था. इस फॉर्म में अपना भारतीय पता, पिछले 1 महीने की यात्रा का विवरण और किसी तरह की बीमारी या उसके लक्षणों के बारे में जानकारी भरनी थी. अपने निर्धारित समय यानी भारतीय समयानुसार करीब साढ़े आठ बजे दिल्ली एयरपोर्ट पर लैंड हुई. दिल्ली में मौसम खुशनुमा था. लग रहा था कि बीती रात बारिश हुई है.
फ्लाइट से एक-एक कर सारे यात्री उतरे. एयर इंडिया ने दी गई किट को साथ ले जाने की अनुमति दी थी. साथ ही फेस मास्क और शील्ड को लगाए रखने को कहा गया. दिल्ली एयरपोर्ट भी फ्रैंकफर्ट की तरह खाली ही था. वहां यात्रियों के लिए दूरी पर रखी गई कुर्सियां लगी थीं. राज्यों के हिसाब से दस-दस के समूह बनाकर यात्रियों को आगे बुलाया गया. हर यात्री का तापमान दर्ज किया गया और फ्लाइट में दिया गया फॉर्म जमा किया गया. इसके बाद सबके पासपोर्ट पर हर 10 के ग्रुप पर एक स्टीकर लगा दिया. हर ग्रुप को दो सीआईएसएफ के जवान एस्कॉर्ट कर रहे थे.
ये ग्रुप इमिग्रेशन पर पहुंचे और फिर लगेज बेल्ट से अपना सामान उठाया. इसके बाद की प्रक्रिया में थोड़ा समय लगा. बाहर राज्यों के हिसाब से काउंटर लगे थे. किसी काउंटर पर एक साथ भीड़ ना लग जाए इसलिए एक-एक ग्रुप को बुलाया जा रहा था. इस प्रक्रिया में थोड़ा समय लगा. सीआईएसएफ जवानों ने एस्कॉर्ट कर राज्य के काउंटर तक लोगों को पहुंचाया. मुझे राजस्थान जाना था इसलिए मैं राजस्थान सरकार के काउंटर पर पहुंचा. वहां राजस्थान सरकार की तरफ से बैठे एक डॉक्टर ने स्क्रीनिंग की और फ्लाइट में मिले फॉर्म की कॉपी जमा की. उसके बाद वहां बैठे दूसरे विभाग के लोगों ने राजस्थान सरकार द्वारा दिए गए कई फॉर्म भरवाए. इनमें कुछ स्वघोषणा पत्र थे और कुछ पिछले दिनों की जानकारी और आगे के प्लान को लेकर मांगी गई जानकारी थी.
इन कर्मचारियों ने दिल्ली या जयपुर में क्वारंटीन रहने का विकल्प दिया. मैंने जयपुर चुना. उन्होंने जयपुर के होटलों के विकल्पों की सूची दी. दिल्ली से जयपुर जाने के लिए दो लोगों के लिए एक कैब की व्यवस्था की गई. इन कैब का खर्च यात्रियों को ही वहन करना था. साथ में एक पुलिसकर्मी भी भेजा गया जिसके पास यात्रा का अनुमति पत्र भी था. पुलिसकर्मी ने सब यात्रियों के पासपोर्ट जमा किए. हरियाणा राजस्थान सीमा पर एक चैकपॉइंट बना था. यहां अनुमति पत्र दिखाने पर भी सारी जानकारियां नोट की गईं. करीब पांच घंटे बाद हम जयपुर पहुंचे. जयपुर में हमें चयन किए गए होटल में ले जाया गया. वहां पुलिसकर्मी ने पासपोर्ट होटल में मौजूद अधिकारियों को सौंप दिए. सात दिन के लिए होटल का रूम बुक किया गया जिसका खर्चा यात्रियों को ही उठाना है. होटल में सुबह के नाश्ता, लंच और डिनर की व्यवस्था इस खर्च में शामिल है. जरूरी काम के अलावा रूम से ना निकलने की हिदायत दी गई है. होटल छोड़ने से पहले कोविड जांच की जाएगी. लक्षण लगने पर पहले भी करवाई जा सकती है. रिपोर्ट निगेटिव आने पर सात दिन के होम क्वांरटीन के लिए भेजा जाएगा.
यात्रा के अनुभव की बात की जाएं तो प्रॉसेस में हुई बढ़ोत्तरी के चलते समय ज्यादा लगना लाजिमी था. लेकिन सफर आरामदायक ही रहा. फ्लाइट में सोशल डिस्टैंसिंग की पालना करना मुश्किल है लेकिन फेस मास्क और फेस शील्ड संक्रमण के खतरे को कम कर देते हैं. एयरपोर्ट पर बहुत हद तक सोशल डिस्टैंसिंग का पालन देखने को मिला. जर्मनी में कई हफ्तों से फंसे यात्रियों के चेहरे पर अपने देश पहुंचने की तसल्ली बहुत स्पष्ट दिख रही थी.
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