विजय दिवस की परेड और पुतिन का परिवार
९ मई २०२४रूस दूसरे विश्व युद्ध में घिरा था, मोर्चे पर घायल होने के बाद सैन्य अस्पताल से घर पहुंचे व्लादिमीर ने देखा कि वर्कर उनकी पत्नी मारिया को मृत घोषित कर घर से ले जा रहे थे. व्लादिमीर नहीं माने कि उनकी पत्नी मर चुकी है. उनका कहना था कि भूख और कमजोरी से वह सिर्फ बेहोश हुई है. व्लादिमीर के पहले बच्चे विक्टर की युद्ध के दौरान 3 साल की उम्र में ही मौत हो चुकी थी. वह लेनिनग्राद के उन 10 लाख से ज्यादा लोगों में शामिल था जिनकी दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान करीब 872 दिनों तक चली शहर की घेराबंदी में मौत हुई. ज्यादातर लोग भूख से मरे.
इसी व्लादिमीर की संतान पुतिन आज रूस के राष्ट्रपति हैं. युद्ध खत्म होने के कई साल बाद पैदा हुए पुतिन अपने परिवार की यह कहानी कई बार सुना चुके हैं. पुतिन अपने पिता के बारे में बताते हैं कि वह नाजी घेराबंदी के दौरान मोर्चे पर लड़े और बुरी तरह घायल हुए थे.
25 साल से पुतिन
71 साल के व्लादिमीर पुतिन बीते 25 सालों से रूस पर शासन कर रहे हैं. 79 साल पहले दूसरे विश्वयुद्ध में नाजी जर्मनी पर मिली जीत का जश्न रूस विजय दिवस के रूप में पहले भी मनाता रहा है. पुतिन के राष्ट्रपति बनने के बाद इसकी भव्यता और बढ़ गई.
क्या है रूस में पुतिन की भारी जीत का मतलब
इसी हफ्ते अपना पांचवां कार्यकाल शुरू करने वाले व्लादिमीर पुतिन इस मौके का इस्तेमाल राष्ट्रवादी उद्देश्यों को पूरा करने और अपनी सरकार की वैधानिकता और लोकप्रियता बढ़ाने के लिए करते हैं. इसके जरिए उनकी कोशिश यूक्रेन पर हमले को भी उचित ठहराने की रहती है.
नाजी जर्मनी, रेड आर्मी के सामने 79 साल पहले पराजित हुआ, युद्ध में शामिल हुए लोगों में से अब मुट्ठी भर ही जिंदा हैं. हालांकि रूस उसे महान देशभक्ति का युद्ध बताता है, और उसे देश की ताकत और राष्ट्रीय पहचान का प्रमुख तत्व मानता है. देश भर में होने वाले समारोहों से यु्द्ध में किए गए बलिदान को याद किया जाता है. 9 मई का यह दिन देश में सबसे बड़ा धर्मनिरपेक्ष उत्सव है.
2.7 करोड़ लोगों की जान गई
युद्ध में सोवियत संघ के करीब 2.7 करोड़ लोगों ने जान गंवाई. कई इतिहासकार मानते हैं कि यह आंकड़ा सही नहीं है, वास्तव में रूस के लगभग हरेक परिवार ने किसी ना किसी को खोया था. जून 1941 में जब नाजी सेना ने धावा बोला तो सोवियत संघ के ज्यादातर पश्चिमी हिस्से को अपने कब्जे में ले लिया. इसके बाद जब सोवियत सेना ने नाजियों को खदेड़ना शुरु किया तो वह बर्लिन तक घुस आई. यहां ध्वस्त हुई राजधानी पर रूसी झंडा लहराया, दूसरी तरफ से अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस की सेनाएं भी पहुंचीं और यूरोप में 8 मई को युद्ध बंद हो गया.
युद्ध के 15 महीने बाद भी पुतिन की ताकत नहीं घटी
युद्ध में अत्यधिक नुकसान झेलने वाले स्टालिनग्राद, कुर्स्क, पुतिन का गृहनगर लेनिनग्राद (सेंट पीटर्सबर्ग) अब चुनौतियां झेल कर उबरने वाले ताकत के प्रतीक बन गए हैं. 1999 के आखिरी दिन पुतिन ने रूस की बागडोर संभाली थी और तभी से 9 मई उनके एजेंडे में काफी अहम स्थान रखता है.
इस दिन का इस्तेमाल वह रूस की सैन्य ताकत के प्रदर्शन के लिए करते हैं. रेड स्क्वेयर पर एक तरफ जहां टैंक, मिसाइल और पैदल सेना की टुकड़ियां पूरे लाव लश्कर के साथ मार्च करती हैं, तो आसमान में लड़ाकू विमानों का जत्था फ्लाइ पास्ट करता है. सीने पर तमगे सजाए पूर्व सैनिक भी पुतिन के साथ परेड का निरीक्षण करने आते हैं.
कई सालों तक तो पुतिन अपने पिता की तस्वीर लेकर विजय दिवस की मार्च में भी शामिल होते रहे हैं. कई और लोग भी पूर्व सैनिक परिजनों के सम्मान में यह काम करते हैं. इन्हें "इम्मोर्टल रेजिमेंट" कहा जाता है. कोरोना वायरस की महामारी के दौरान इस तरह के प्रदर्शन निलंबित कर दिए गए. इसके बाद यूक्रेन युद्ध शुरू होने पर सुरक्षा कारणों से इसे फिर रोक दिया गया है.
सोवियत विरासत का गौरव
सोवियत विरासत को बनाए रखने और उस पर सवाल उठाने वालों को रौंदने के लिए रूस ने कानून बनाए हैं. इसके तहत 'नाजीवाद के पुनर्वास' को अपराध घोषित किया गया है साथ ही स्मारकों को अपवित्र करने और दूसरे विश्वयुद्ध के इतिहास के क्रेमलिन संस्करण को चुनौती देने पर सजा का प्रावधान है.
24 फरवरी 2022 को यूक्रेन में अपनी सेना भेजते समय पुतिन ने दूसरे विश्वयुद्ध का जिक्र करते अपने कदमों को उचित ठहराया. यूक्रेन और उसके पश्चिमी सहयोगी देश इसे बगैर उकसावे का आक्रामक युद्ध बता कर इसकी निंदा करते हैं. पुतिन ने यूक्रेन से "नाजीवाद मिटाने" को देश का प्रमुख मकसद माना है. वह यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को नवनाजी बताते हैं, जबकि जेलेंस्की यहूदी हैं और उन्होंने होलोकॉस्ट में अपने रिश्तेदारों को खोया है.
पुतिन यूक्रेन के कुछ राष्ट्रवादी नेताओं का नाम ले कर उसे यूक्रेन को नाजियों के प्रति सहानुभूति का संकेत बताते हैं. इन लोगों ने दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान नाजियों के साथ सहयोग किया था.
कई पर्यवेक्षक दूसरे विश्वयुद्ध पर पुतिन का ज्यादा ध्यान रहने को, सोवियत संघ का दबदबा और सम्मान फिर से जिंदा करने की उनकी कोशिशों के रूप में देखते हैं. कार्नेगी रशिया यूरेशिया सेंटर के निकोलाय एपली ने एक कमेंट्री में कहा है, "यह नाजीवाद पर जीत के रूप में यूएसएसआर के साथ अपनी पहचान की निरंतरता है. नाजीवाद को मिटाने के मकसद से युद्ध पर मजबूर होने की कोई मजबूत वैधानिकता नहीं है." एपली ने यह भी कहा है कि रूसी नेतृत्व ने दुनिया के प्रति नजरिए को सोवियत अतीत के दौर तक सीमित कर लिया है.
एनआर/आरपी (एपी)