विश्व कप के दौरान जर्मन हॉकी टीम का सहिष्णुता संदेश
१८ जनवरी २०२३कतर में हुए फुटबॉल विश्वकप के विपरीत भारत में चल रहे हॉकी विश्व कप के दौरान कोई हंगामा नहीं हुआ, कोई विरोध नहीं. जर्मन टीम के कैप्टन माट्स ग्रामबुश ने जापान के खिलाफ अपने पहले मैच में कप्तान की पट्टी लगाने के बदले इंद्रधनुषी पट्टी लगाकर मैच खेला, तो भुवनेश्वर के कलिंग हॉकी स्टेडियम में कोई हंगामा नहीं हुआ. एलजीबीटीक्यू प्लस समुदाय के इस रंग-बिरंगे वैश्विक प्रतीक को बिना किसी विरोध के स्वीकार किया गया.
अब वे चाहे स्टेडियम में आए दर्शक रहे हों या अंतरराष्ट्रीय हॉकी फेडरेशन के पदाधिकारी, जर्मन हॉकी संघ ने अंतरराष्ट्रीय हॉकी संघ के अधिकारियों को मैच के पहले ही ये बता दिया था. ग्रामबुश ने डॉयचे वेले से कहा, "मैं सचमुच मानता हूं कि खेल के माध्यम से समाज के मूल्यों को लोगों तक पहुंचाया जा सकता है. हमने ये तब भी किया होता यदि विश्वकप नीदरलैंड, जर्मनी या कतर में हुआ होता." वे अपने अभियान को लेकर इतने आश्वस्त हैं कि कहते हैं, "हम इन मूल्यों का समर्थन करते हैं और इसे विश्व कप के दौरान भी दिखाना चाहते हैं. "
उम्मीद और एकजुटता का प्रतीक
दिसंबर में कतर में हुए फुटबॉल विश्व कप के दौरान समस्या ये थी कि अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल महासंघ फीफा ने खेल के दौरान वन लव वाली पट्टी को बांधे जाने पर सख्त रोक लगा दी थी. इसकी वजह ये भी थी कि मेजबान कतर को इससे अनुचित व्यवहार की शिकायत थी. लेकिन हॉकी विश्व कप के दौरान ऐसी कोई दिक्कत सामने नहीं आई है. इसके विपरीत स्थानीय समुदाय में जर्मन हॉकी फेडरेशन के इस कदम पर सकारात्मक प्रतिक्रिया हुई है. एलजीबीटीक्यू प्लस एक्टिविस्ट अनीश गवांडे ने डॉयचे वेले को बताया, "खुले प्रदर्शन में बड़ी शक्ति है, खासकर तब जब एक प्रमुख खिलाड़ी एलजीबीटीक्यू प्लस समुदाय के समेकन का खुला समर्थन करता है." उनका कहना है कि सहिष्णुता के ऐसे प्रदर्शन को रैडिकल कदम नहीं समझा जाना चाहिए.
अनीश गवांडे जर्मन हॉकी फेडरेशन के कदम को खेल जगत में क्वियर और ट्रांस सेक्सुअल लोगों की व्यापक स्वीकृति का प्रतीक मानते हैं. एक्टिविस्ट हरीश अय्यर ने डॉयचे वेले को बताया, "हर किसी को खुद को स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त करने का अधिकार है. इंद्रधनुषी रंग एलजीबीटीक्यू प्लस समुदाय के लिए उम्मीद और एकजुटता का प्रतीक है." वे कहते हैं कि सवाल ये नहीं होना चाहिए कि तुम ये पट्टी क्यों बांधे हो, बल्कि ये कि क्यों नहीं?
ग्रामबुश चाहते हैं कि सामान्य हो सेक्सुअल पहचान
भारत में एलजीबीटीक्यू प्लस समुदाय को सामाजिक मान्यता, सामाजिक प्रक्रिया के दौर से गुजर रही है. सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद समलैंगिकता अपराध नहीं है. इसके बावजूद इस समुदाय के लोग अभी खुलकर सामने आने की हिम्मत नहीं कर पाते, क्योंकि परिवार और समाज अभी तक इसे पूरी तरह स्वीकार नहीं कर रहा. अय्यर का कहना है कि भारत के सुप्रीम कोर्ट ने वयस्क लोगों के बीच सहमति से यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटा लिया है और ऐसे लोगों को मान्यता दी है, जो खुद को ट्रांसजेंडर समझते हैं. वे कहते हैं कि अभी इस दिशा में और भी कदम उठाए जाने की जरूरत है , लेकिन सेक्शन 377 को खत्म कर इस दिशा में पहला कदम उठाया गया है.
जर्मन हॉकी टीम के कप्तान माट्स ग्रामबुश इस तथ्य से वाकिफ हैं कि होमोफोबियाका मामला सिर्फ भारत की समस्या नहीं है. वे कहते हैं, "इस मुद्दे को विभिन्न समाजों में बहस का विषय बनना चाहिए. यह बात सामान्य होनी चाहिए कि लोगों की विभिन्न सेक्शुअलिटी होती है, और इस पर सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए." माट्स ग्रामबुश पूरी दुनिया में स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में अपनी बांह पर इंद्रधनुषी पट्टी बांधकर खेल रहे हैं.
रिपोर्ट: मनीरा चौधरी, यॉर्ग श्ट्रोशाइन