सितारों से आगे जहां खोजती तिकड़ी को नोबेल
४ अक्टूबर २०११सिर्फ 42 से 52 साल के तीनों खगोल वैज्ञानिक अमेरिका से जुड़े हैं. अमेरिका के सॉल पर्लमुटर और एडम राइस के अलावा ऑस्ट्रेलियाई अमेरिकी ब्रायन श्मिट ने दो अलग अलग शोधों में इस बात का पता लगाया है कि ब्रह्मांड के विस्तार की गति बढ़ रही है.
इन्होंने पता लगाया है कि करीब 14 अरब साल पहले बिग बैंग की घटना के बाद अस्तित्व में आए ब्रह्मांड के बढ़ने की गति तेज होती जा रही है. स्टॉकहोम में इन तीनों वैज्ञानिकों को नोबेल देने का एलान करते हुए नोबेल जूरी ने कहा, "इस बात का पता लगाना कि विस्तार में एक्सीलीरेशन (तेजी) आ रही है, बहुत ही हतप्रभ करने वाला है. अगर यह विस्तार ऐसा ही होता रहा तो हो सकता है कि पूरा ब्रह्मांड बर्फ में बदल जाए."
घुटने हिल गए
जिस वक्त नोबेल समिति का फोन आया, ऑस्ट्रेलिया में ब्रायन श्मिट अपने परिवार के साथ डिनर कर रहे थे. उन्होंने कहा, "स्वीडिश लहजे में फोन पर कुछ कहा जा रहा था और मुझे थोड़ा थोड़ा अहसास होने लगा. मैं रोमांचित हो उठा. मेरे घुटने कांपने लगे." श्मिट का कहना है, "मुझे वैसा ही लगने लगा, जैसा मेरे बच्चे की पैदाइश के वक्त लग रहा था."
इस खोज के बारे में श्मिट ने बताया, "मैं और राइस साथ में काम कर रहे हैं. हम हर वक्त टेलीफोन पर बात करते रहते हैं और अटपटे परिणामों के बारे में बतियाते रहते हैं."
क्या है खोज
इन तीनों वैज्ञानिकों ने 1990 के दशक में अपना काम शुरू किया और इसके लिए उन्होंने सुपरनोवा को आधार बनाया. किसी तारे के टूटने से वहां जो ऊर्जा पैदा होती है, उसे ही सुपरनोवा कहते हैं. कई बार एक तारे से जितनी ऊर्जा निकलती है, वह हमारे सौरमंडल के सबसे मजबूत सदस्य सूरज के पूरे जीवन से निकलने वाली ऊर्जा से भी ज्यादा होती है.
इन वैज्ञानिकों ने 50 सुपरनोवा के आधार पर ध्यान केंद्रित किया. इन्होंने पाया कि उनसे निकलने वाला प्रकाश वक्त के साथ अपेक्षा से कहीं ज्यादा कमजोर हो गया है. इसी तथ्य के आधार पर इन्होंने पता लगाया कि ब्रह्मांड का विस्तार तेजी से हो रहा है और तभी सुपरनोवा की दूरी पृथ्वी से बढ़ गई है और इस वजह से उनसे निकलने वाला प्रकाश दूर हो गया है.
उलटा नतीजा
नोबेल समिति का कहना है कि ये तीनों वैज्ञानिक खुद ही अपने खोज से हैरान रह गए थे क्योंकि यह लोग उम्मीद कर रहे थे की ब्रह्मांड का विस्तार घट रहा होगा और वे इस बात का पता लगा पाएंगे. लेकिन दोनों ही टीमें बिलकुल विपरीत निष्कर्ष पर पहुंचीं और उन्होंने पता लगाया कि सुदूर आकाशगंगाएं और दूर होती जा रही हैं.
यूनिवर्सिटी ऑफ मेरीलैंड के फीजिक्स विज्ञानी फिलिप शेवे का कहना है, "यह खोज फिजिक्स के क्षेत्र में पिछले 30 साल की सबसे हैरान करने वाली खोज है. मुझे याद है कि उस वक्त सभी लोग सोच रहे थे कि कुछ गलती हो गई होगी." लेकिन कोई गलती नहीं हुई थी और बुनियादी खोज की दूसरे खोजों से भी पुष्टि हो गई.
पर्लमुटर ने पुरस्कार जीतने के बाद कहा, "कई महीनों बाद लोग हमारी बात पर विश्वास करने लगे. यह उन्हें अब हैरान करने वाला नहीं लग रहा था. मैंने लोगों से कहा कि यह उनका सबसे लंबा अनुभव होगा."
एक विस्तृत ब्रह्मांड का अर्थ अंतरिक्ष में ज्यादा स्थान घेरना होगा. इसके पीछे की वजह अंतरिक्ष की एक अज्ञात शक्ति है, जिसे डार्क एनर्जी या स्याह ऊर्जा कहा जाता है. यह ब्रह्मांड के सबसे बड़े रहस्यों में एक है. अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ फीजिक्स के चार्ल्स ब्लू का कहना है, "यह रिसर्च बताता है कि आज से अरबों साल बाद यह संसार एक बहुत बड़ी लेकिन बहुत ठंडी और एकदम अकेली जगह हो जाएगी."
सॉल पर्लमुटर
52 साल के पर्लमुटर का जन्म 1959 में अमेरिका में हुआ और वह यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में प्रोफेसर हैं. उन्होंने 1981 में हार्वर्ड से ग्रेजुएशन करने के बाद 1986 में पीएचडी हासिल की. उन्हें 2002 में अमेरिका के राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी का सदस्य चुना गया. वह अंतरराष्ट्रीय सुपरनोवा कॉस्मोलॉजी प्रोजेक्ट से भी जुड़े, जिसने सबसे पहले 1998 में दावा किया था कि ब्रह्मांड हमेशा बढ़ता रहेगा और इसके बढ़ने की गति भी बढ़ती रहेगी.
ब्रायन श्मिट
44 साल के श्मिट ऑस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय यूनिवर्सिटी के कैनबेरा स्थित माउंट स्ट्रोमलो ऑब्जरवेट्री में फेलो हैं. 1967 में पैदा हुए श्मिट ने यूनिवर्सिटी ऑफ एरीजोना से 1989 में खगोलशास्त्र और फीजिक्स में ग्रेजुएशन किया और 1993 में हावर्ड से खगोल शास्त्र में पीएचडी हासिल की. उन्होंने 1994 में पांच महाद्वीपों के वैज्ञानिकों को एक साथ जुटा कर हाईजेड एसएन सर्च टीम बनाई, जिसका काम ब्रह्मांड के विस्तार के बारे में पता लगाना था. साइंस पत्रिका ने 1998 में उनके खोज को उस साल की सबसे बड़ी घटना बताया था. उन्हें भारत का प्रतिष्ठित वैनु बापू मेडल भी मिल चुका है.
एडम राइस
सिर्फ 42 साल के राइस 1969 में पैदा हुए हैं और बाल्टीमोर के जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी में काम करते हैं. उन्होंने मैसेचूसेट्स यूनिवर्सिटी से 1992 में फिजिक्स की पढ़ाई पूरी की और बाद में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में फेलो के तौर पर काम किया. दूसरे दोनों नोबेल पुरस्कार विजेताओं की तरह राइस भी हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ चुके हैं और वहीं से अपनी पीएचडी हासिल की है. राइस और श्मिट लंबे वक्त से मिल कर काम कर रहे हैं. वैसे इन तीनों वैज्ञानिकों को 2006 में भी इकट्ठे तौर पर शॉ प्राइज मिल चुका है. तब उन्होंने डार्क एनर्जी का पता लगाया था.
रिपोर्टः रॉयटर्स/ एपी/एएफपी/ ए जमाल
संपादनः आभा मोंढे