सीमा-विवाद: सेनाओं के पीछे हटने पर आधिकारिक जानकारी का अभाव
७ जुलाई २०२०सोमवार से अज्ञात सूत्रों के हवाले से मीडिया में खबरें आ रही हैं कि दोनों सेनाएं अपने अपने स्थानों से पीछे हट रही हैं. विशेष रूप से चीनी सेना के गलवान घाटी, पैंगोंग झील के पास 'फिंगर्स' इलाकों, हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा इलाकों से पीछे हटने की खबरें आई हैं. यह भी बताया गया है कि गलवान में जहां दोनों सेनाओं के बीच 15 जून को मुठभेड़ हुई थी वहां चीनी सेना ने अपने बनाए टेंट और अन्य ढांचे हटाने शुरू कर दिए हैं और सैन्य वाहन भी पीछे खींचने शुरू कर दिए हैं.
यह भी कहा जा रहा है कि कम से कम गलवान में भारतीय सेना भी पीछे हटी है और दोनों सेनाओं के बीच एक 'बफर' इलाका बनाया गया है. जानकारों का मानना है कि अगर ये खबरें सच्ची हैं तो ये वाकई एक बड़ी घटना है. 15 जून की मुठभेड़ में भारत के कम से कम 20 सैनिकों के मारे जाने की पुष्टि हुई थी. उसके बाद से दोनों देशों ने सीमा पर भारी संख्या में सेना की तैनाती कर दी थी और युद्ध जैसे हालात बन गए थे. ऐसे मोड़ से वापस आना, सेनाओं का पीछे हटना, भारत जिस इलाके पर अपने स्वामित्व का दावा करता आया है उन इलाकों पर फिर से उसका नियंत्रण होना, यह सब तनाव से पहले की स्थिति की तरफ लौट जाने के संकेत हैं.
लेकिन ये सवाल भी उठ रहे हैं कि अगर ऐसा वाकई हो रहा है तो इस पर सरकार आधिकारिक रूप से वक्तव्य क्यों जारी नहीं कर रही है और क्यों सिर्फ अनाम सूत्रों के हवाले से खबरें आ रही हैं. सैन्य मामलों के जानकार अजय शुक्ला ने ट्वीट कर सवाल उठाया कि चीनी सेना के पीछे हटने पर भारत सरकार ने आधिकारिक बयान क्यों नहीं दिया है और इसे लेकर सैटेलाइट चित्र भी क्यों अभी तक सामने नहीं आए हैं? साथ ही शुक्ला ने यह भी कहा है कि यह जानना भी जरूरी है कि दोनों सेनाएं अगर पीछे हटी हैं तो कितना पीछे हटी हैं.
पत्रकार सुशांत सिंह का कहना है कि दोनों सेनाओं के बीच इतना गहरा अविश्वास है कि अलग होने की प्रक्रिया शुरू हो जाने के बावजूद सीमा पर सैन्य तैनाती लंबे समय तक बनी रहेगी.
इसके अलावा दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच हुई बातचीत को लेकर भी दोनों तरफ से जारी हुए बयानों में अंतर पर भी जानकार ध्यान दिला रहे हैं. भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और चीन के विदेश-मंत्री वांग ई के बीच सोमवार को गतिरोध को शांत करने के उद्देश्य से बातचीत हुई थी. इस बातचीत के बारे में भारत की तरफ से जारी वक्तव्य में सेनाओं के पूरी तरह अलग होने और गतिरोध के खत्म होने की जरूरत को रेखांकित किया गया.
इसके अलावा भारत ने वास्तविक नियंत्रण रेखा का सम्मान करने की भी बात की, लेकिन चीन के विदेश मंत्री ने अपने देश की "भौगोलिक अखंडता की रक्षा" करने की बात की. चीन के वक्तव्य में वास्तविक नियंत्रण रेखा की चर्चा नहीं थी. जानकार इसे भारत के अभी भी सजग रहने की जरूरत का संकेत मान रहे हैं.
हालांकि, डोभाल और ई के बीच बातचीत होना इस बात का संकेत जरूर है कि दोनों देशों के बीच तनाव में कमी आई है. तीन सप्ताह बाद दोनों में एक बार फिर बातचीत होगी. देखना होगा कि तब तक सीमा पर तनाव में कितनी कमी आती है.
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