हमेशा विवादों में रही है वेदांता परियोजना
१९ मार्च २०१९जमीन अधिग्रहण के बदले ठेके पर जिन लोगों को नौकरी मिली थी वे स्थायी नियुक्ति की मांग में प्रदर्शन कर रहे थे. नाराज भीड़ ने संयंत्र पर तैनात ओडीशा औद्योगिक सुरक्षा बल (ओआईएसएफ) के एक जवान को भी जिंदा जला दिया. हिंसक संघर्ष में एक प्रदर्शनकारी की भी मौत हो गई. इससे पहले बीते साल तमिलनाडु के तूतीकोरीन में वेदांता के एक कॉपर संयंत्र के खिलाफ आंदोलन के दौरान पुलिस फायरिंग में 13 लोगों की मौत हो गई थी. वेदांता समूह 23 लाख टन सालाना उत्पादन क्षमता के साथ देश में अल्युमीनियम का सबसे बड़ा उत्पादक है और भारत के अल्युमीनियम उद्योग के 40 फीसदी बाजार पर उसका कब्जा है.
हिंसा की वजह
समूह ने कुछ साल पहले अपनी इस परियोजना के लिए कालाहांडी जिले के लांजीगढ़ में जमीन का अधिग्रहण किया था. इसके एवज में नकद मुआवजे के अलावा कंपनी ने संबंधित परिवारों के एक-एक सदस्य को संयंत्र में नौकरी देने का भरोसा दिया था. लेकिन उसने उनमें से कुछ लोगों को ठेके पर नौकरी दी है. स्थानीय लोगों में इस बात पर भारी नाराजगी है. स्थायी नौकरी और अपने बच्चों को स्कूलों में मुफ्त दाखिले की मांग में प्रभावित परिवारों के सत्तर से ज्यादा लोग सोमवार सुबह संयंत्र के गेट पर धरना व प्रदर्शन कर रहे थे. कालाहांडी के पुलिस अधीक्षक बी. गंगाधर बताते हैं, "रेंगापोली और आस-पास के गावों के कुछ लोग लांजीगढ़ में संयंत्र के सामने प्रदर्शन कर रहे थे. वह लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में मुफ्त दाखिले व शिक्षा दिलाने के अलावा स्थानीय युवकों को नौकरी देने की भी मांग कर रहे थे.” पुलिस का कहना है कि प्रदर्शनकारियों ने संयंत्र के भीतर घुसने का प्रयास किया. ओआईएसएफ के जवानों के रोकने पर उन लोगों ने पथराव शुरू कर दिया.
प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि ओआईएसएफ ने उनके शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बावजूद वहां से तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज किया. महेश्वर पति नामक एक प्रदर्शनकारी ने बताया, "हम अपनी मांगों के समर्थन में शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे थे. लेकिन ओआईएसएफ के जवानों ने हमें जबरन वहां से भगाने का प्रयास किया. हमारे विरोध करने पर उन्होंने लाठीचार्ज शुरू कर दिया.” लेकिन पुलिस ने इस आरोप से इंकार किया है. पुलिस अधीक्षक गंगाधर कहते हैं, "भीड़ संयंत्र के भीतर घुसकर तोड़-फोड़ करने लगी और उसने कई जगह आग लगा दी. भीड़ के हमले में एक ओआईएसएफ जवान की भी मौत हो गई. प्रदर्शनकारियों की ओर से पथराव की वजह से कई सुरक्षा कर्मचारी घायल हो गए हैं.”
केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इस घटना के लिए राज्य सरकार की खिंचाई की है. उन्होंने कहा है, "पुलिस ने कंपनी के गुंडों का समर्थन करते हुए गरीब गांव वालों पर हमला किया है.” दूसरी ओर वेदांता ने अपने एक बयान में कहा है, "कुछ प्रदर्शनकारी अचानक हिंसा पर उतारू हो गए. ओआईएसएफ के जवानों ने उनको रोकने की कोशिश की. लेकिन हिंसा पर उतारू भीड़ ने एक जवान की हत्या कर दी और कंपनी की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया. घायलों को अस्पताल में दाखिल कराया गया है.” बयान में कहा गया है कि कंपनी इस घटना की जांच में हर संभव सहयोग देने के लिए तैयार है.
विवाद
अनिल अग्रवाल के मालिकाना हक वाला लंदन स्थित वेदांता समूह ओडीशा में अपनी विभिन्न परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण को लेकर हमेशा विवादों में रहा है. इससे पहले नियामगिरी पहाड़ियों में समूह को बॉक्साइट के खनन की अनुमति देने पर भी काफी विवाद हुआ था. इसके लिए नवीन पटनायक की अगुवाई वाली बीजू जनता दल सरकार को भी कटघरे में खड़ा किया गया था. जंगल इलाके में आदिवासियों की जमीन के अधिग्रहण का बड़े पैमाने पर विरोध हुआ था. यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था. वर्ष 2014 में उस परियोजना की अनुमति वापस ले ली गई थी. वेदांता की लांजीगढ़ और नियामगिरी परियोजनाओं के विरोध में एक दशक पहले सुप्रीम कोर्ट में पहली याचिका दायर करने वाले ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया के सदस्य विश्वजीत मोहंती कहते हैं, "ओडीशा में खनन से संबंधित नियमों की जमकर अनदेखी की गई है. तमाम कंपनियां अफसरों व राजनेताओं को रिश्वत देकर मनमाने तरीके से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करती रही हैं.” भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ता भालाचंद्र सारंगी कहते हैं, "आदिवासी-बहुल इस इलाके में फल प्रसंस्करण उद्योगों की स्थापना की स्थिति में स्थानीय लोग अपने वन उत्पादों को बेच कर कुछ पैसे कमा सकते थे.”
इससे पहले बीते साल मई में तमिलनाडु के तूतीकोरीन स्थित समूह के कॉपर संयंत्र को बंद करने की मांग में हुए विरोध-प्रदर्शनों के दौरान पुलिस की गोली से 13 लोगों की मौत हो गई थी. वर्ष 1997 में उस संयंत्र की शुरुआत से ही उसके खिलाफ कई मामले दायर हो चुके हैं. स्थानीय लोगों का आरोप है कि इस संयंत्र के प्रदूषण के चलते पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंच रहा है. लोग इसे स्थायी तौर पर बंद करने की मांग करते रहे हैं. मद्रास हाईकोर्ट ने 2010 में इसे बंद करने का आदेश दिया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पहले उस फैसले पर रोक लगा दी और बाद में समूह को संयंत्र चलाने की अनुमति दे दी. पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के मामले में वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने समूह पर लगभग 100 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था. गोवा और छत्तीसगढ़ समेत देश के विभिन्न हिस्सों में भी समूह की तमाम परियोजनाएं विवादों में रही हैं.
ओडीशा के एक सामाजिक कार्यकर्ता विश्वरूप पांडा कहते हैं, "वेदांता समूह तमाम राज्यों में राजनेताओं व प्रशासन की मिलीभगत से पर्यावरण और दूसरे नियमों को ठेंगा दिखाता रहा है. नियामगिरी मामले में मुंहकी खाने के बावजूद कंपनी के रवैए में कोई बदलाव नहीं आया है.” वह कहते हैं कि आदिवासियों के रुख से साफ है कि कालाहंडी में वेदांता की परियोजना के खिलाफ आंदोलन और तेज होगा. इससे समूह की मुश्किलें बढ़ने का अंदेशा है.