हर साल हजारों कीट लुप्त हो रहे हैं दुनिया से
१२ जनवरी २०२१जलवायु परिवर्तन, कीटनाशक, प्रकाश प्रदूषण और खर पतवार नाशकों की वजह से धरती हर साल 1 से 2 फीसदी कीटों को खो रही है. कनेक्टिकट यूनिवर्सिटी के कीटविज्ञानी डेविड वागनर प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमीज ऑफ साइंसेज की 12 रिसर्चों के पैकेज के प्रमुख लेखक हैं. इन रिसर्चों में दुनिया भर के 56 वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया है. वागनर के मुताबिक वैज्ञानिकों को यह पता लगाना होगा कि क्या कीटों के लुप्त होने की दर दूसरे जीवों की तुलना में ज्यादा बड़ी है. वागनर का कहना है, "कुछ कारण हैं जो चिंता बढ़ा" रहे हैं क्योंकि वे कीटनाशकों, खरपतावार नाशकों और प्रकाश प्रदूषण के "हमलों का निशाना" बन रहे हैं.
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस पहेली के सारे टुकड़े उनके सामने नहीं आए हैं, इसलिए उन्हें इसका परिमाण और जटिलता समझने में दिक्कत हो रही है. इसी वजह से वे दुनिया का ध्यान भी इस ओर ठीक से नहीं दिला पा रहे हैं. रिसर्च रिपोर्ट के सह लेखक और इलिनोय यूनिवर्सिटी की कीटविज्ञानी मेय बेरेनबाउम का कहना है, "कीटों का कम होने की मात्रा का आकलन करना और घटने की दर का पता लगाना बहुत मुश्किल है."
मामला और ज्यादा इसलिए बिगड़ गया है क्योंकि लोग कीटों को पसंद नहीं करते. कीट दुनिया भर में खाने पीने की चीजों के लिए जरूरी परागण में मदद करते हैं, खाद्य श्रृंखला में अहम भूमिका निभाते हैं और कूड़े के निपटारे में मदद करते हैं. बावजूद इसके इंसान को इनकी परवाह नहीं है. वागनर कीटों को ऐसा धागा मानते हैं जिनसे धरती और जीवन का आधार बना है.
कीटों में सबसे ऊंचा दर्जा है मधुमक्खियों और तितलियों का. इन्हें देख कर कीटों की समस्याों और उनकी घटती तादाद का आकलन किया जा सकता है. खासतौर से मधुमक्खी. बीमारियों, परजीवियों, कीटनाशकों, खर पतवार नाशकों और भोजन की कमी के कारण उनकी संख्या में नाटकीय कमी आई है. जलवायु परिवर्तन के कारण जिन इलाकों का वातावरण सूख रहा है, वहां तितलियों को भोजन की दिक्कत हो रही है. इसके अलावा खेती से खर पतावार और फूल हटाए जाने के कारण उन्हें मकरंद नहीं मिल पा रहा. वागनर कहते हैं कि अमेरिका में तो एक विशाल जैविक रेगिस्तान बन रहा है जिसमें बस सोयाबीन और मक्का ही बाकी बचेगा.
सोमवार को जारी हुए रिसर्च पेपर में कोई आंकड़ा नहीं दिया गया है लेकिन समस्या की एक विशाल और अधूरी तस्वीर दिखाई गई है ताकि लोगों का ध्यान खींचा जा सके. वैज्ञानिकों ने अब तक करीब 10 लाख कीटों की प्रजातियों का पता लगाया और माना जाता है कि अभी करीब 40 लाख प्रजातयों की खोज होनी बाकी है.
डेलावेयर यूनिवर्सिटी के डग टेलेमी इस रिसर्च में शामिल नहीं थे लेकिन उनका कहना है कि दुनिया ने, "बीते 30 सालों में कीटों को मारने के नए तरीके ढूंढने पर अरबों डॉलर खर्च किए हैं और उसकी तुलना में उन्हें संरक्षित करने पर महज चवन्नी अठन्नी ही खर्च किया है."
एनआर/आईबी (एपी)
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