हुमायूं का मकबरा देख अभिभूत हुए ओबामा
७ नवम्बर २०१०मुंबई की भागमभाग और डेढ़ दिन के व्यस्त कार्यक्रम से फारिग होकर ओबामा दंपति जब दिल्ली आए तो एयरपोर्ट पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उनकी अगवानी की. ओबामा उनके गले ऐसे मिले लगा जैसे दो बिछड़े भाई हों मनमोहन सिंह तो कुछ लड़खड़ा से गए. बहरहाल एयरपोर्ट से निकलने के बाद ओबामा दंपति ने थोड़ा आराम किया और फिर कार में बैठ दिल्ली के दिल में बसे हुमायूं के मकबरे की शांत फिजा में सैर को निकल गए.
लाल पत्थरों से बनी 450 साल पुरानी इमारत के विशाल दरवाजे पर ही आर्कियोलोजी सर्वे ऑफ इंडिया, एएएसआई के अधिकारियों ने उनका इस्तकबाल किया और फिर उन्हें मुगल काल के इस धरोहर से मिलवाने ले गए. दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में 32 एकड़ में बना हुमायूं का मकबरा अपनी बाहें फैलाए बूढ़ीं आंखों से दुनिया के सबसे ताकतवर इंसान की राह तक रहा था.
आगा खां ट्रस्ट की कोशिशों से हाल ही में चमकी दीवारों को देखते ही अमेरिकी राष्ट्रपति के चेहरे पर एक नई चमक खिल गई और ओबामा के मुंह से भी निकला," शानदार". एएसआई के सुपरिटेंडेंट के के मुहम्मद ने मकबरे की हर दीवार और कोने से ओबामा दंपति की पहचान कराई और कुछ पल के लिए उन्हें इस विरासत की आगोश में सिमटने के लिए छोड़ दिया. मोहम्मद ने उन्हें बताया कि इसके शानदार इमारत की बनावट में पर्सियन, मध्य एशियाई और भारतीय कला की छाप है. मिशेल ने ज्यादा सवाल तो नहीं किए लेकिन मुहम्मद की बातों को बड़े ध्यान से सुनती रहीं.
जिन मजदूरों ने इस विरासत की काया बदलने में मेहनत की है वो भी अपने परिवार के साथ आज यहां मौजूद थे. अपनी मेहनत पर खुश होते ओबामा दंपति को देखना उनके लिए बड़ा सकून देने वाला साबित हुआ. ओबामा ने उनके काम की तारीफ की और उनके परिवार के लिए लाए तोहफे अपने हाथों से उन्हें बांटा. मजदूरों के बच्चों से ओबामा ने बात की और उनके साथ फोटो भी खिंचवाई.
बांह तक मुड़ी शर्ट पर टाई लगाए ओबामा ने कोट नहीं पहनी थी और वो पूरे मूड में थे. ओबामा ने एएएसआई के काम की भी खूब तारीफ की और उन ठेकेदारों की भी जिन्होंने मकबरे का रंग रूप बदला है. चलने से पहले ओबामा दंपति ने गेस्ट बुक में अपने दस्तखत भी किए. ओबामा ने लिखा, "साम्राज्यों के बनने और बिखरने के दौर में भी भारतीय सभ्यता बनी रही और दुनिया को एक नई ऊंचाई पर ले जाने में अपना योगदान देती रही. पूरी दुनिया इस बात के लिए भारत की कर्जदार है."
रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन
संपादनः महेश झा