अंगेला मैर्केल 20 साल से संभाल रही हैं सीडीयू पार्टी की कमान
११ अप्रैल २०२०जर्मनी इस वक्त दुनिया के बाकी के देशों की तरह कोरोना संकट से जूझ रहा है. लेकिन इस बीच एक अहम तारीख को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. शुक्रवार, 10 अप्रैल को अंगेला मैर्केल को जर्मनी की सीडीयू पार्टी की प्रमुख बने ठीक दो दशक हो गए. हालांकि 2018 में उन्होंने यह पद छोड़ दिया था और आनेग्रेट क्रांप कारेनबावर को पार्टी प्रमुख चुना गया था. उस वक्त ऐसा भी लगने लगा था कि कारेनबावर ही मैर्केल के बाद चांसलर पद संभालेंगी. लेकिन कई विवादों में घिर जाने के बाद कारेनबावर को जल्द ही पद छोड़ देना पड़ा. इसके बाद से नए प्रमुख को अब तक चुना नहीं जा सका है. इसका मतलब है कि अनौपचारिक रूप से मैर्केल ही इस वक्त पार्टी का नेतृत्व कर रही हैं.
बतौर चांसलर यह मैर्केल का आखिरी साल भी है और इस दौरान उन्हें कोरोना वायरस के संकट से जूझना पड़ रहा है. यह एक ऐसा संकट है जो दुनिया भर के नेताओं के लिए एक बड़ी चुनौती बन कर आया है, फिर चाहे वे नए चुने गए नेता हों या लंबे तजुर्बे वाले. घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अर्थव्यवस्था पर बेहद बुरा असर पड़ रहा है.
यूं हुई शुरुआत
10 अप्रैल 2000 को पश्चिमी जर्मनी के एसेन शहर में सीडीयू पार्टी की बैठक हुई जिसमें 935 में से 897 पार्टी सदस्यों ने मैर्केल के पक्ष में वोट डाले और उन्हें पार्टी अध्यक्ष चुना. यह वह पल था जब जर्मनी में किसी राजनीतिक पार्टी ने पहली बार एक महिला को अपना प्रमुख चुना था. मैर्केल पूर्वी जर्मनी से नाता रखती थीं और राजनीति में आए हुए उन्हें केवल दस साल ही हुए थे. लेकिन इस दौरान चांसलर हेल्मुट कोल उनके गुरु रहे जिसका उन्हें काफी फायदा मिला.
कोल का नाम एक बड़े विवाद में आने के बाद मैर्केल ने अपनी राह खुद चुनी. देश के लिए यह एक बहुत बड़ा विवाद था जिसमें कोल के साथ साथ वोल्फगांग शॉएब्ले जैसा बड़ा नाम भी शामिल था. कोल के बाद शॉएब्ले चांसलर पद के उम्मीदवार थे. इस दौरान मैर्केल ने अकेले ही राजनीति में आगे बढ़ने का फैसला किया. यह उनके करियर का एक महत्वपूर्ण कदम था.
पांच साल बाद मैर्केल देश की चांसलर बनीं. कोल के बाद मैर्केल ही इतने लंबे समय तक इस पद पर रह पाई हैं. उनके कार्यकाल के दौरान जर्मनी आर्थिक रूप से एक स्थिर देश के रूप में दुनिया में छाया रहा. लेकिन इस दौरान देश को कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा, घरेलू स्तर पर भी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी. एक के बाद एक मैर्केल हर चुनौती का सामना करती रहीं और पहले से भी ज्यादा मजबूत नेता साबित हुईं.
एक के बाद एक चुनौती
साल 2008 में पूरी दुनिया आर्थिक संकट से गुजर रही थी. इसके बाद यूरोजोन ऋण संकट से गुजरा. लेकिन इसके बावजूद 2013 में मैर्केल की सीडीयू पार्टी को रिकॉर्ड वोट पड़े. 2015 में शरणार्थी संकट के दौरान मैर्केल ने दस लाख शरणार्थियों को जर्मनी में जगह देने का फैसला किया. देश में कुछ लोगों ने इसके लिए उनकी आलोचना भी की. यही वह वक्त था जब उग्र-दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी का उदय हुआ. पर फिर भी 2017 में एक बार फिर वे चांसलर चुनी गईं.
पिछले दो दशकों में मैर्केल की पार्टी कमजोर हुई है. पिछले चुनाव में सीडीयू को पहले की तुलना में कम वोट मिले. वहीं ग्रीन पार्टी और एएफडी को फायदा मिला. मैर्केल की पार्टी का भले ही जो भी हाल हो लेकिन मैर्केल के मुकाबले में आज भी कोई नहीं है. आज भी वह देश की सबसे लोकप्रिय नेता बनी हुई हैं.
मैर्केल कह चुकी हैं कि यह उनका आखिरी कार्यकाल है. और इस वक्त वे कोरोना महामारी से देश को बचाने में लगी हैं. उन्होंने इस महामारी को दूसरे विश्व युद्ध के बाद देश की सबसे बड़ी चुनौती बताया है. इन बीस सालों में शायद यह उनकी सबसे बड़ी परिक्षा है. इस आखिरी और निर्णायक चुनौती में जर्मनी के लोग उनके नेतृत्व को सराह रहे हैं. एक सर्वे के अनुसार देश में 80 फीसदी लोगों का कहना है कि मैर्केल जिस तरह से कोरोना संकट से निपट रही हैं उससे वे संतुष्ट हैं. उनकी सीडीयू/सीएसयू और एसपीडी की गठबंधन सरकार की अप्रूवल रेटिंग भी इस बीच 28 फीसदी से बढ़ कर 37 फीसदी हो गई है. लोग अब पहले से भी ज्यादा मैर्केल के संकट से निपटने के तजुर्बे पर भरोसा करते दिख रहे हैं.
रिपोर्ट: जेनिफर केमिनो गोंजालेज/आईबी
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